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चीन का बहिष्कार सही या गलत, ये रिपोर्ट उड़ा देगी आपके होश

हमें चीन के बहिष्कार के बीच यह सब सोचना होगा। चीन को भी सोचना होगा कि वह भारत से दो दो हाथ करके अपना इतना बड़ा बाज़ार खोना चाहेगा ? वह भी तब जब नरेंद्र मोदी एक्ट ईस्ट की अपनी २०१४ की नीति पर मुखर हो रहे हों।

राम केवी
Published on: 22 Jun 2020 5:37 PM IST
चीन का बहिष्कार सही या गलत, ये रिपोर्ट उड़ा देगी आपके होश
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योगेश मिश्र

चीन ख़ामोश है। भारत में चीन की सीमा पर हरकत को लेकर कोहराम मचा है। कहीं चीनी सामान के बहिष्कार की बात चल निकली है। कहीं सरकार को घेरा जा रहा है। कहीं चीन से बदला लेने के लिए उकसाया जा रहा है। चैनलों पर तो मानो कभी युद्ध की रणभेरी बज सकती है, ऐसा लग रहा है।

’62 में मारे गए चीनी सैनिकों की संख्या 2010 में बताई

1962 में चीन ने भारत को पराजित किया था। हालाँकि यह हमारी सैन्य पराजय कम राजनय पराजय अधिक थी। लेकिन 2010 में चीन की सरकार यह बता पाई कि 1962 में उसके भी 2000 सैनिक मारे गये थे। यही गोपनीयता आज भी गलवान घाटी में चीनी और भारतीय सेना के बीच हुई हिंसक झड़प में चीन को क्या और कितना नुक़सान हुआ, इसे लेकर चीन बरत रहा है।

दो बार चीन को हराया है

यही नहीं, पता नहीं क्यों हमारे लबों पर यह बात नहीं आ रही है कि हमने चीन को दो बार पराजित भी किया है। चीन वियतनाम से बुरी तरह हारा है। चीन को जापान ने बेदम करके हराया है। चीन कोई अजेय राष्ट्र नहीं है।

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चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन को आर्थिक राष्ट्रवाद का सपना दिखा कर बने हुए हैं। वह मार्च 2013 में चीन को आर्थिक शक्ति बनाने का संकल्प लेकर दस साल तक चीन के राष्ट्रपति रहे हूँ जिन्ताओ की जगह आये।

हूँ जिन्ताओ के उत्तराधिकारी शी जिनपिंग

शी ने इस दिशा में हालाँकि बहुत दूरी भी तय की है। दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं जिसके साथ चीन के कारोबारी रिश्ते घाटे के हों।

पर जो शी की लोकप्रियता का आधार हो वही कोरोना कांड के बाद खिसकने लगा तो क्या चीन के युद्ध में उतरने के हालात बनते हैं।

एक दर्जन देश चीन से नाराज

हांगकांग के लिए चीन के नये सुरक्षा क़ानून ने अमेरिका , ब्रिटेन, कनाडा व आस्ट्रेलिया को नाराज़ कर लिया है। दक्षिण चीन सागर के नटूना आइलैंड पर अधिकार को लेकर चीन इंडोनेशिया आपने सामने हैं।

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दक्षिण चीन सागर स्थित पारसेल और स्पार्टी आइलैंड्स को लेकर चीन व वियतनाम में लड़ाई है। यहीं जेम्स शोल पर चीन व मलेशिया दोनों का दावा है।

अमेरिका, आस्ट्रेलिया व जापान ने भी दक्षिण चीन सागर को लेकर चीन को चेतावनी दी है। पाकिस्तान समेत पाँच छह छोटे ऐसे देश होंगें जो कोरोना के लिए चीन को ज़िम्मेदार न मानते हों। पर बाक़ी दुनिया मानती है।

भारत के साथ हैं जापान, आस्ट्रेलिया

अंतरिक्ष और बैलेस्टिक मिलाइए के क्षेत्रों भारत व जापान मिलकर काम कर रहे हैं। यह बताता है कि दोनों के रिश्ते बेहतर हैं।आस्ट्रेलिया के साथ भी भारत के सात समझौते हैं। चीन ने आस्ट्रेलिया पर प्रतिबंध लगाये हैं। चीन के विकास में आस्ट्रेलिया का बड़ा हाथ है। आस्ट्रेलिया के किसानों का जौ या खदानों के लौह अयस्क, कोयला और गैस की आपूर्ति आस्ट्रेलिया चीन को करता है।

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२५ साल बाद पहली बार किसी आस्ट्रेलियाई नेता का वियतनाम दौरा हुआ है। प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन.की कोशिश है कि चीन पर निर्भरता कम करें। इंडोनेशिया, जापान और दक्षिण कोरिया से रिश्ते सुधरे हैं।

कितने मोर्चों पर लड़ेगा चीन

सवाल यह उठता है कि चीन एक साथ कितने मोर्चे पर लड़ सकता है। नेपाल, पाकिस्तान के साथ ही साथ बांग्लादेश को भारत के ख़िलाफ़ मोर्चाबंदी करने को तैयार कर यदि चीन भारत की शिकस्त की बात सोचता हो तो उसे कैसे भूलना चाहिए कि उसके ख़िलाफ़ एक दर्जन देशों ने मोर्चा बना रखा है।

ताइवान और तिब्बत को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का मन चीन के साथ पूरी तरह नहीं है। ऐसे में चीन अपनी सफलता का ख़्वाब कैसे देख सकता है। चीन पड़ोसियों के लिए भरोसेमंद कभी नहीं रहा है। हर देश चीन से व्यापार को लेकर नये ढंग से सोचने को मजबूर है।

भारत की कार्रवाई

भारत ने शंघाई टनल इंजीनियरिंग कंपनी के 1126 करोड़ रूपये के दिल्ली मेरठ आरआरटीएस प्रोजेक्ट का टेंडर निरस्त कर दिया। रेलवे ने चीन को दिया 471 करोड़ का ठेका रद कर दिया।

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इसके तहत कानपुर से दीनदयाल उपाध्याय सेक्शन में सिंगलिंग और टेलिकम्युनिकेशन का काम होना था। आधार यह है कि चार साल में महज़ बीस फ़ीसदी काम हुआ है।

रेल ट्रांसिट उपकरण आपूर्ति करने वाली चीनी कंपनी सीआरआरसी को कोलकाता, नोएडा नागपुर मेट्रो के लिए 11276 और 69 कोच देने का काम मिला था।

इसी कंपनी के साथ रेलवे ट्रैक के काम में उपयोग आने वाले तमाम उपकरणों की आपूर्ति का काम 4,87,3000 अमेरिकी डॉलर का ठेका मिला था।

चीन से ये भी हैं अनुबंध

चीन की जेमैक इंजीनियरिंग कंपनी को एक करोड़ डॉलर से अधिक व यहीं की हंपबैक कंपनी के छह लाख डॉलर की क़ीमत का काम दिया गया।

पैसेंजर ट्रेन के पहिये की ख़रीद का चीन के साश ९६ लाख डॉलर का अनुबंध हुआ है।

4जी का सामान अब चीन से नहीं लेंगे

भारत में टेलीकॉम के 1.2 अरब उपभोक्ता हैं। चींन की जेडटीई,ख्वावे, जेडटीटी कंपनियों के लिए यह बड़ा बाज़ार है। फ़ोर जी के लिए अब चीनी कंपनियों से सामान नहीं लिया जायेगा।

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भारतीय दूरसंचार के लिए उपकरणों की सालाना बाज़ार बारह हज़ार करोड़ रूपये का है। चीन ने भारत में छह अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कर रखा है। पाकिस्तान में यह निवेश तीस अरब डॉलर से कम का है।

75 ई कामर्स कंपनियों में चीनी निवेश

भारत की 75 ई कामर्स कंपनियों में चीन के निवेश हैं। भारत की तीस में से 18 यूनिकॉर्न में चीनी निवेश है। यह निजी स्टार्टअप कंपनी होती है। जिसमें एक अरब का निवेश होता है।

बाइटडांस टिक-टॉक की मूल कंपनी है। जो यू ट्यूब के मुक़ाबले ज़्यादा लोकप्रिय है। चीनी विडियो ऐप टिक टॉक के भारत में 20 करोड़ सब्सक्राइबर है।

अलीबाबा, टेंसेंट और बाइटडांस ने भारत में फेसबुक, गूगल और अमेज़न जैसी अमेरिकी दिग्गज कंपनियों को पीछे कर दिया है।

इन पर चीन पर निर्भरता

भारत में आटोमोबाइल पुर्जों की 20 फीसदी पूर्ति चीन से होती है। इलेक्ट्रानिक पुर्जों में से 70 फीसदी की पूर्ति चीन से होती है। उपभोक्ता सामग्री यानी कंज़्यूमर ड्यूरेबल्स में 45 फीसदी की आपूर्ति चीन से है।

औषधि निर्माण में एक्टिव फार्मा इंग्रेडियंट्स (एपीआई) की 70 फीसदी आपूर्ति चीन से है।

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चमड़े के समान में 40 फीसदी चीन से आता है। भारत में मिल रहे एयरकंडीशनर में से 28 फीसदी आयातित हैं। इसके अलावा कंप्रेसर जैसे एसी के पुर्जे भी चीन से आते हैं।

चीन से कारोबार में घाटा 53.5 बिलियन डालर

मार्च 2019 में समाप्त हुये वित्त वर्ष में भारत - चीन के बीच व्यापार 88 बिलियन डालर का था जिसमें चीन के पक्ष में व्यापार घाटा 53.5 बिलियन डालर है।

दरअसल, पहले तो चीन ने भारत को अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल होने का आग्रह किया, दबाव डाला और हर तरह से कोशिशें कीं।

जब भारत नहीं माना तो चीन ने धन-बल के जरिये भारत में घुसपैठ करनी शुरू कर दी, जैसा कि वह कई देशों में करता आया है।

चीन ने स्टार्टअप्स में धन लगाया, ऑनलाइन इकोसिस्टम में स्मार्ट फोन और ऐप्स के जरिये जड़ें फैला दीं।

चीन की जड़े गहरी

भारत ने भले ही बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से किनारा कस लिया हो लेकिन अन्जाने में चीन के लिए वर्चुअल गलियारे का रास्ता खोल दिया। इस रास्ते पर चलते हुये चीन ने डेटा से लेकर अर्थव्यवस्था तक अपनी गहरी पहुँच बना ली है।

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2018 में चीन की कंपनियों ने भारत में 5 बिलियन डालर का निवेश किया। ये धन उपभोक्ता सामग्री, इलेक्ट्रानिक्स, लॉजिस्टिक्स, खुदरा व्यापार आदि में सामान्य एफडीआई के जरिये लगा है।

लेकिन इन सबसे बड़े निवेश इंटरनेट, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस जैसे सॉफ्ट पावर प्रोजेक्ट्स में हुये हैं। इसके अलावा भारत के स्टार्टअप्स में चीन के टेक निवेशकों ने करीब चार बिलियन डालर लगाए हैं।

इन पर है कब्जा

इनकी सफलता की कहानी इसी से पता चलती है कि मार्च 2020 तक के 5 साल में भारत के सफलतम 30 स्टार्टअप में से 18 चीन द्वारा फंडेड हैं।

ओप्पो और शियोमी का भारत के स्मार्टफोन बाजार के 72 फीसदी हिस्से पर कब्जा है। सैमसंग और ऐपल बहुत पीछे चले गए हैं।

अलीबाबा, टेंसेंट और बाइटडांस जैसी कंपनियों ने भारत में 92 भारतीय स्टार्टअप्स को फंडिंग की हुई है। जिनमें पेटीएम, बाइज्यू, ओला और ओयो शामिल हैं।

क्या है वजह

भारत में चीन की टेक कंपनियों की गहरी जड़ों का कारण भारतीय स्टार्ट अप्स को फंडिंग देने वालों की नितांत कमी है। भारतीय वेंचर इन्वेस्टर पैसा लगाने से हाथ रोके रहते हैं जिसका फायदा चीनी निवेशक उठाते हैं। अलीबाबा ने 2015 में भारत के पेटीएम में पैसा लगाया और आज पेटीएम एक बड़ा प्लेयर बन चुका है।

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चीनी निवेशक काफी आगे के फायदे देख कर काम करते हैं। इसी कारण घाटा उठा रहे स्टार्ट अप्स में पैसा लगाते चले जाने से परहेज नहीं करते।

हमने मौका दिया

इंडियन काउंसिल ऑन ग्लोबल रिलेशंस से जुड़े थिंक टैंक ‘गेटवे हाउस’ की ओर से प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है, भारत में अधिकतर वेंचर-कैपिटेलिस्ट धनी व्यक्ति/ पारिवारिक कार्यालय हैं-

और वो 10 करोड़ डॉलर की प्रतिबद्धता नहीं जता सकते जो कि स्टार्टअप्स के शुरुआती घाटे के दौर में उन्हें फंड करने के लिए चाहिए होती है।

उदाहरण के लिए, पेटीएम ने वित्त वर्ष 19 में 3,690 करोड़ रुपये का नुकसान उठाया, जबकि फ्लिपकार्ट को इसी साल 3,837 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

ऐसे में भारतीय स्टार्ट-अप स्पेस प्रमुख खिलाड़ियों के रूप में पश्चिमी और चीनी निवेशकों के लिए अहम प्लेयर्स के तौर पर खुली रह गई है।

चीनी कंपनियों की रणनीति

इसके अलावा चीनी कंपनियाँ रणनीतिक तरीके से काम करती हैं। मिसाल के तौर पर चीन ने बिजली से चलने वाले वाहनों का भविष्य बहुत पहले समझ लिया।

इस सेक्टर में चीन की विशेषज्ञता है और भारत दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा ऑटो बाजार है। चीन की बीवाईडी कंपनी इलेक्ट्रिक वाहनों की अग्रणी कंपनी है।

ये भारत में इलेक्ट्रिक बसों के बाजार में आगे बढ़ती जा रही है। चीन के ऑटो निर्माताओं ने 575 मिलियन डालर का निवेश कर रखा है।

टेक कंपनियों और वेंचर का रास्ता

भारत में चीन ने निवेश की खेती करने के लिए टेक कंपनियों और वेंचर कैपिटल फंड्ज का सहारा लिया है। जबकि पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार, बांग्लादेश, केन्या, ज़िम्बाब्वे, आदि देशों में चीन ने फिजिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी कारखाने, बिल्डिंग आदि में निवेश लगा रखा है।

चीन का भारत में एफडीआई सिर्फ 6.2 बिलियन डालर का है लेकिन टेक उद्योग के फैलाव के कारण इसका प्रभाव व्यापक है। चीन ने किसी रेलवे लाइन, बन्दरगाह, हाइवे, में निवेश नहीं किया है बल्कि ऐसी चीजों को पकड़ा है जिससे भारतीय सोसाइटी, इकॉनमी, और टेक्नोलोजी ईको सिस्टम प्रभावित होता है।

भारत में चीन के असेट अदृश्य

चीन के भारत में असेट या परिसंपत्तियाँ अदृश्य और बहुत थोड़ी हैं और सभी निवेश प्राइवेट सेक्टर द्वारा किया गया है। इन सब वजहों से ऊपरी तौर पर कोई खतरे वाली बात भी नहीं दिखती है।

अभी तक का चीन का सबसे बड़ा निवेश 1.1 बिलियन डालर का है। 2018 में चीनी कंपनी ग्लैंड फार्मा कंपनी का चीनी निवेशकों ने टेक ओवर किया था और एक निवेशक फंड कंपनी के जरिये धन लगाया गया।

इसके अलावा मात्र 5 ऐसे निवेश हैं जो 100 मिलियन डालर से अधिक के हैं और इनमें एमजी मोटर्स द्वारा 300 मिलियन डालर का निवेश शामिल है।

स्टार्ट अप पर नजर

चीन को भारत के स्टार्ट अप्स सबसे ज्यादा प्रिय हैं। ईकॉमर्स, फाइनेंशियल सर्विस, मीडिया, सोशल मीडिया, एग्रीगेटर सर्विस, और लॉजिस्टिक्स में 75 कंपनियों में चीनी पैसा लगा हुआ है।

इन कंपनियों में कुछ ये हैं -बिग बास्केट,बाइज्यू,फ्लिपकार्ट,हाइक, मेक माइ ट्रिप, ओला, ओयो, पेटीएम ,पॉलिसी बाजार, क्विकर, रिविगो, स्नैपडील, स्विगी, उड़ान, जोमैटो, रेपीडो, सिटी मॉल, हँगामा डिजिटल मॉल,शेयर चैट, डेलीहंट आदि।

चीनी कंपनियों के इको सिस्टम में मर्जर

अलीबाबा और टेंसेंट जैसी कंपनियों का अपना ईको सिस्टम है । जिसमें ऑनलाइन पेमेंट, पेमेंट गेटवे, मेसेजिंग सर्विस आदि शामिल हैं। जब चीनी कंपनी निवेश करती है तो भारतीय कंपनी इस ईको सिस्टम में चली जाती और डेटा पर उसका नियंत्रण समाप्त हो जाता है। इस तरह से चीनी कंपनियों का भारतीय डेटा पर काफी नियंत्रण हो चुका है।

चीनी ब्रैंड की पहचान मुश्किल

निवेश में बढ़ती जटिलताओं के साथ, एक चीनी ब्रैंड की पहचान करना भी मुश्किल हो रहा है।

गेटवे हाउस की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ चीनी फंड भारत में अपने निवेश को सिंगापुर, हांगकांग, मॉरीशस आदि में स्थित कार्यालयों के माध्यम से करते हैं, मिसाल के लिए, पेटीएम में अलीबाबा का निवेश अलीबाबा सिंगापुर होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से किया गया है।

ये भारत के सरकारी डेटा में चीनी निवेश के तौर पर दर्ज नहीं है। चीन के बहुत सारे हार्डवेयर, इलेक्ट्रॉनिक आइटम और होम यूटिलिटी प्रोडक्ट खुले बाजार में बिकते हैं, जिन पर कोई ब्रैंड नेम ही नहीं होता जिससे कि उनकी पहचान की जा सके।

बहिष्कार के बीच सोचने की जरूरत

हमें चीन के बहिष्कार के बीच यह सब सोचना होगा। चीन को भी सोचना होगा कि वह भारत से दो दो हाथ करके अपना इतना बड़ा बाज़ार खोना चाहेगा ?

वह भी तब जब नरेंद्र मोदी एक्ट ईस्ट की अपनी २०१४ की नीति पर मुखर हो रहे हों। दक्षिण पूर्वी देशों से संबंध सुधार की दिशा में बढ़े कदमों की गति तेज कर रहे हैं। म्यांमार, थाइलैंड, सिंगापुर, फ़िलिपींस, वियतनाम और कंबोडिया के साथ हमारे संबंध प्रगाढ़ हों।



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राम केवी

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