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हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष-एक थे सौरभ सिंह
इसलिए हिंदी पत्रकारिता दिवस पर जो लोग हम पर भरोसा मान कर हमारा लिखा पढ़ते हैं यानी हमारे सुधि पाठक हैं। जो हमारे सहयोगी हिंदी पत्रकारिता में काम करने वाले देश भर के साथी हैं, दोनों से दो बार क्षमा मांगने का अवसर है।
योगेश मिश्र
इस घटना का मेरे पत्रकारीय जीवन से बेहद गहरा संबंध है। शायद यह मेरे जीवन की पहली ऐसी घटना रही जिसके लिए हमें बहुत बुरी तरह से डाँट अपने संपादकों से सुननी पड़ी। ऐसा नहीं कि हमने इसके पहले और इसके बाद कोई गलती नहीं की।
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पर उस समय लगा कि इससे बड़ी गलती हमने न पहले की थी, न आगे कर पाऊँगा। ऐसा भी नहीं कि इसके बाद डाँट नहीं खानी पड़ी। पर इस घटना की तरह की डाँट ज़रूर नहीं खानी पड़ी। न ही ऐसी आगे कभी तौहीन झेलनी पड़ी।
रातों रात पैदा हो गया स्पेस साइंटिस्ट
साल था 2005 का । यूपी में बलिया जिले में एक बहुत बड़े स्पेस साइंटिस्ट सौरभ सिंह रातों रात पैदा हो गए । देशी विदेशी मीडिया में यह खबर सनसनी फैलाने लगी कि सौरभ सिंह ने नासा द्वारा आयोजित परीक्षा में देश विदेश में टाप कर लिया है। खबर बड़ी थी। बलिया का लड़का। इतनी बड़ी उपलब्धि ।
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हमारे यहाँ मीडिया में आज भी प्रमाणिकता के लिहाज़ से बीबीसी को खबर के मामले में सबसे भरोसेमंद माना जाता है। उसने भी बलिया की इस सौरभ सिंह वाली खबर को ख़ास तवज्जों दी थी। नतीजतन, दुनिया के सभी पत्रकारों ने अपनी खबरों का मुँह बलिया की ओर ही घूमा दिया। देश का कोई अख़बार , हिंदी , अंग्रेज़ी , उर्दू , तमिल ,तेलुगू का ऐसा नहीं था जिसमे लंबे लंबे लेख न लिखे गए हों।
स्टार बन गया सौरभ
खबर फैली तो खबरिया चैनल भी पहुँचने लगे सौरभ के गाँव । सौरभ स्टार बन गया । जब देश में इतना बवाल मचा हो, तो उस स्कूल की प्रिंसिपल कैसे पीछे रहती , जिसने इस नायाब कोहिनूर को तराशा था । वह भी बहती गंगा में कूद पड़ी ।
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सौरभ का स्कूल में अभिनंदन हुआ। हाथी पर बिठा कर जुलूस के शक्ल में उसे स्कूल लाया गया। बलिया भी फूला नहीं समा रहा था। चंद्रशेखर जी के प्रधानमंत्री बनने पर बलिया जितना इतराया होगा, सौरभ सिंह की उपलब्धि पर उससे कम इतराता नहीं दिखा था।
भारी पड़ गया मूर्खता पर ध्यान न देना
पर हमने मूर्खता कि इस खबर पर कोई ध्यान ही नहीं दिया। उस समय मैं आउटलुक पत्रिका में काम करता था। उत्तर प्रदेश का प्रभारी था। बलिया में हमारे प्रतिनिधि अनूप हेमकर थे। मैं उन पर काफ़ी भरोसा करता था। पर इतनी बड़ी विश्वव्यापी खबर पर अनूप ने ध्यान नहीं दिया। मेरी तरह उनकी बुद्धि भी मारी गयी थी। गलती तो हो ही गई थी।
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विनोद मेहता जी हमारे प्रधान संपादक थे। आम तौर पर हिंदी वालों से बात कम करते थे। पर उन्होंने जब इस खबर का प्रचार प्रसार देखा तब तो उनका वज्र हमारे ऊपर टूटना ही था। टूटा भी। पर गलती तो हो ही गयी थी। मेरे पास अपनी गलती मानने का कोई रास्ता नहीं था। उस समय तक मैं अपनी गलती मानने की आदत से बेहद दूर था। हालाँकि अब तो गलती और माफ़ी दोनों माँग लेता हूँ।
कोरम पूरा करने की गलती
पर बात पंद्रह साल पहले की थी। मैंने विनोद मेहता जी के वज्रपात से बचने के लिए कहानी गढ़ी कि सर! यह सब ग़लत है। बलिया का लड़का इतनी अच्छी अंग्रेज़ी नहीं जान सकता कि नासा की परीक्षा में टॉप कर जाये। वह भी ऐसा लड़का जो बलिया से निकल कर केवल कोटा तक ही गया हो। अब तो वह मोबाइल से ही हमारे ऊपर टूट पड़े। आप ही एक पत्रकार हैं। बाक़ी सब मूर्ख हैं। दुनिया भर में यह खबर छप रही है। थक हार कर अपनी खीझ मिटाने के लिए एक अंक बाद संक्षिप्त खबर में इसे छाप कर हम लोगों ने कोरम पूरा किया। पर गलती का अहसास तो हो ही रहा था। क्योंकि मीडिया यह बता रहा था कि सौरभ सिंह ऐसी परीक्षा पास कर गया है जिसमें कल्पना चावला, ए.पी, अब्दुल कलाम फेल हो गये थे।
सम्मान दर सम्मान
सौरभ अमेरिका जायेगा। नासा में अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनेगा। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में प्रस्ताव पास कर सौरभ सिंह की तारीफ़ की गयी। एक दिन विधानसभा में बुलाकर उनके सम्मान की बात भी हुई।
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प्रिंसिपल साहिबा ने राष्ट्रपति से मिलने का टाइम मांगा। इतनी बड़ी उपलब्धि के बाद समय मिलना ही था। राष्ट्रपति थे कलाम साहब। मीडिया के लिहाज़ से कलाम साहब जिस परीक्षा में पास न हो पायें हो उस परीक्षा के टॉपर को समय तो मिलना ही था।
सौरभ सिंह की प्रिंसिपल साहिबा और सौरभ दोनों को दिल्ली पहुँचाने के लिए बलिया से जुलूस कैफ़ियत एक्सप्रेस ट्रेन में चंढाने आज़मगढ़ तक आया।
नासा में मेल से खुल गई पोल
सौरभ का जन्म सामान्य कृषक परिवार में हुआ था। सीबीएसई की बारहवीं की परीक्षा में उन्होंने ५२ फ़ीसदी नंबर पाये थे। उनके पिता ने उन्हें इंजीनियरिंग की तैयारी करने के लिए कोटा भेजा था। पर आईआईटी और इंजीनियरिंग की परीक्षा नहीं पास कर पाये ।
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हाँ, नासा की परीक्षा पास कर गये। लेकिन सवाल ज़्यादा उछल गया था तो नासा से मेल डालकर किसी ने पूछ लिया। बस सारा मामला साफ़ हो गया। आमतौर पर हम पत्रकार ऐसे मामले में पुलिसकर्मियों की तरह इंट्रोगेशन में जुट जाते हैं। पर इस मामले में हम सबको साँप सूँघ गया।
गणेश और रूबी को नहीं भूले होंगे
किसी भी पत्रकार ने निजी तौर पर या फिर किसी समूह ने इसके लिए गलती मानना तो दूर औपचारिक खेद भी नहीं जताया। झारखंड के गिरडीह के गणेश कुमार का नाम याद होगा।उन्होंने बारहवीं कक्षा में बिहार बोर्ड की परीक्षा में 2017 में टॉप किया था।
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एक चैनल के इंट्रोगेशन में ऐसे फँसे कि पोल पट्टी खुल गयी। बेचारे जेल चले गये। 2016 की बिहार की बारहवीं की साइंस की टॉपर रूबी राय पॉलिटिक्स साइंस में खाना बनाने की बात कह कर फँस गयीं। पर सौरभ सिंह भाग्यशाली रहे।
दो बार क्षमा
सौरभ सिंह की खबर आज मेरे लिए दो वजहों से महत्वपूर्ण हो गयी। पहला, हमारे भाई सरीखे अरूण उपाध्याय जी ने हमें कल ही यह बात याद दिलाई। दूसरी वजह आज हमें हिंदी पत्रकारिता दिवस पर बहुत से साथियों ने बधाई संदेश भेजे हैं। ऐसे में मेरे लिए यह प्रायश्चित का दिन भी बनता है।
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हालाँकि मेरे मन में इस खबर को लेकर हमेशा यह मलाल रहा कि जब डाँट खा ही चुका था। तब मुझे अगले अंक में संक्षिप्त कॉलम में इसे छापना ही नहीं चाहिए था। एक ही गलती हुई होती। दूसरी गलती से बच जाता। पर हमने दो ग़लतियाँ कीं।
इसलिए हिंदी पत्रकारिता दिवस पर जो लोग हम पर भरोसा करके हमको पढ़ते हैं यानी हमारे सुधि पाठक हैं। जो हमारे सहयोगी हिंदी पत्रकारिता में काम करने वाले देश भर के साथी हैं, दोनों से दो बार क्षमा मांगने का अवसर है। इन दोनों से दो बार क्षमा मांगता हूं।