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रोटी-बेटी के रिश्तों में चीनी दीवार
चाणक्य ने कहा है कि दो पड़ोसी कभी मित्र नहीं हो सकते। पाकिस्तान और चीन जैसे धूर्त देशों को लेकर यह बात भले ही वर्षों से सही साबित हो रही हो लेकिन भारत और नेपाल...
पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: चाणक्य ने कहा है कि दो पड़ोसी कभी मित्र नहीं हो सकते। पाकिस्तान और चीन जैसे धूर्त देशों को लेकर यह बात भले ही वर्षों से सही साबित हो रही हो लेकिन भारत और नेपाल मित्र राष्ट्र बनकर इसे झुठलाते रहे हैं। आज स्थितियां उलट हैं। चीन के इशारे पर नेपाल की पैंतरेबाजी से दोनों देश के रिश्तों में खटास साफ दिख रही है। असल में, नेपाल में वामपंथी सरकार बनने और चीन के प्रभावी हस्तक्षेप से स्थितियां तेजी से बदल रही हैं।
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नागरिकता कानून हो या दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक-धार्मिक संबंध, चीन दोनों देशों के रिश्तों में दीवार बनता दिख रहा है। नेपाली एफएम चैनलों पर भारत विरोध, नये नक्शे में भारतीय क्षेत्र को शामिल करना या फिर कारोबारी रिश्ता सभी जगहों से मित्र राष्ट्र नेपाल से शत्रु संकेत मिल रहे हैं।
नेपाल से पलायन
गलवन घाटी में चीन और भारतीय सैनिकों के बीच हिंसक झड़पों के बीच नेपाल भी आंखें दिखा रहा है। आधिकारिक रूप से लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाली क्षेत्र के रूप में दिखलाये जाने के बाद भारत और नेपाल के बीच तनाव की स्थिति है। विवाद के बीच खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे भारतीय मूल के लोग नेपाल से लगातार पलायन कर रहे हैं। महराजगंज जिले के सोनौली बार्डर से ही 24 जून तक 28 हजार से अधिक भारतीय नेपाल से वापस आ चुके हैं।
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पहले भारतीय बेरोकटोक नेपाल आते-जाते थे, लेकिन कोरोना के चलते अंतर्राष्ट्रीय बार्डर सील है और अब काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास की मदद से ही भारतीय वतन वापसी कर पा रहे हैं। भारतीयों का पलायन वैसे तो 26 मई से ही शुरू हो गया था, लेकिन दोनों देशों के तनाव के बाद इसमें लगातार तेजी दिख रही है। नौतनवां क्षेत्राधिकारी राजू कुमार राव का कहना है कि नेपाल से लौट रहे भारतीयों को इमीग्रेशन कार्यालय में जरूरी प्रक्रिया पूरी कराने के बाद रोडवेज बसों से उनको घर भेजा जा रहा है।
भारत विरोधी गतिविधियां
सीमा विवाद के बाद नेपाल में भारत विरोधी गतिविधियां बढ़ रही हैं। नेपाल के एफएम रेडियो चैनल भारत विरोधी कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे हैं। गीतों के बीच परिवर्तित नक्शे की जानकारी दी जा रही है। इससे नेपाल में रह रहे भारतीय सहमे हुए हैं। नेपाल में एक माह पहले नया कानून बना है। जिसके मुताबिक अब श्रम स्वीकृति के बाद ही भारतीय मजदूर नेपाल आ सकेंगे। इससे नेपाल के कारखानों व अन्य कामर्शियल एरिया में काम रहे मजदूर सशंकित हैं और घर वापसी कर रहे हैं। नेपाल-भारत मैत्री समाज रूपनदेही नेपाल के अध्यक्ष अजय गुप्ता का कहना है कि इन दिनों नेपाल में कोरोना का कहर है ही। इसके अलावा भारत के साथ सीमा विवाद, अंगीकृत नागरिकता आदि ऐसे मुद्दे हैं जिसके वजह से नेपाल में भारत विरोधी गतिविधियां बढ़ रही हैं।
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नागरिकता पर संकट
भारत-नेपाल सीमा पर रहने वाले लोगों के बीच रोटी-बेटी का संबंध है। नेपाल के लोग भारत में तो बड़ी संख्या में भारतीय भी नेपाल में अपनी बेटियों की शादी करते हैं। लेकिन नेपाल में ब्याही भारतीय बेटियां प्रस्तावित नागरिकता कानून में संशोधन से मुश्किल में फंस गई है। दरअसल, नेपाल सरकार ने एक प्रस्तावित संशोधन का समर्थन किया है, जिसके तहत नेपाली पुरुषों से विवाह करने वाली 'गैर-नेपाली' मूल की महिलाओं को सात साल तक नेपाल की नागरिकता के लिए इंतजार करना होगा। इस संशोधन पर मधेशियों ने तराई इलाकों में जोरदार विरोध शुरू कर दिया है। सीमावर्ती रुपनदेही, नवलपरासी आदि जिलों में इसे लेकर मधेशी (भारतीय मूल के नेपाली नागरिक) विरोध कर रहे है।
नेपाली सरकार के नुमाइंदे इन्हें समझा रहे हैं कि यह प्रस्ताव नया नहीं है और पहले से ही यह नेपाली संसद के सामने लंबित था। मामला तब से तूल पकड़े हुए है जब बीते दिनों संसद की स्टेट अफेयर्स एंड गुड गवर्नेंस कमेटी ने सभी दलों को प्रस्ताव पर निर्णय लेने को कहा। सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ने घोषणा कर दी है कि वो प्रस्तावित संशोधन का समर्थन करती है लेकिन सरकार और विपक्ष में इस प्रस्ताव को लेकर सहमति नहीं है। प्रमुख विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस प्रस्ताव का विरोध कर रही है। नेपाल में भैरहवा क्षेत्र से विधायक संतोष पांडेय के नेतृत्व में पिछले एक सप्ताह से प्रदर्शन हो रहा है।
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सीमा-पार रिश्तों पर पड़ेगा असर
उनका कहना है कि नेपाल के तराई के इलाके में ऐसे कई परिवार हैं जिनके सीमा के उस पार बसे भारतीय परिवारों के साथ पारिवारिक रिश्ते हैं। अगर यह संशोधन पारित हो जाएगा तो इससे इन मधेसी परिवारों के सीमा-पार रिश्तों पर असर पड़ेगा। हमारी मांग है कि पहले से जारी व्यवस्था लागू की जाए। पांडेय कहते हैं कि अभी यह व्यवस्था है कि विवाह के दूसरे दिन ही भारत से विवाह कर आई बेटियां नागरिकता के लिए आवेदन कर सकती है। मुश्किल यह है कि बेटियों को अमेरिका, यूरोप आदि के देशों में जाना है तो उन्हें पासपोर्ट बनवाने में दिक्कत होगी। इस भेदकारी नीति को पुरजोर विरोध जारी रहेगा। कई मधेसी नेताओं ने इस प्रस्ताव को नस्लीय भेदभाव की प्रवृत्ति से प्रेरित भी बताया है।
चीन का 1955 से नेपाल में प्रभावी हस्तक्षेप
चीन वैसे तो वर्ष 1955 में ही नेपाल में प्रभावी हस्तक्षेप को लेकर कोशिश कर रहा है लेकिन राजशाही और नेपाली कांग्रेस की सरकारों में उसका दखल असरकारी नहीं रहा। लेकिन केपी ओली के नेतृत्व में बनी बामपंथी सरकार में चीनी ड्रैगन को फुफकारने का व्यापक आधार मिल गया है। नेपाल पर करीबी नजर रखने वाले पत्रकार मनोज जोशी कहते हैं कि नेपाल को लेकर भारत चूक दर चूक करता रहा है।
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भारत विरोध की नींव नेपाल में तभी पड़ गई थी, जब अभिनेता ऋतिक रोशन के बयान के बाद नेपाल में हिंसक आंदोलन हुए थे। रही सही कसर केन्द्र की मोदी सरकार ने पूरी कर दी। जोशी बताते हैं कि भूकंप के बाद जब नेपाल भारत से मदद की उम्मीद कर रहा था तब सोनौली और रक्सौल बार्डर पर नाकाबंदी की स्थिति रही। इसे लेकर नेपाल के युवा वर्ग के साथ ही बुद्धिजीवी वर्ग में गुस्सा दिखा।
दरअसल, नेपाल की मजबूरी है कि वह भारत या चीन के संपर्क में रहे। दोनों देशों के लिए सामरिक दृष्टि से अहम है कि वह नेपाल को अपने पाले में रखे। चीन नेपाल पर प्रभावशाली दखल के लिए वर्ष 1955 से ही प्रयास कर रहा था, लेकिन परिस्थितियां उसके अनुकूल नहीं बनीं। लेकिन ड्रैगन जहां नेपाल में दखल को लेकर लगातार प्रयास करता रहा। इतना सब कुछ जानते हुए भी भारत की तरफ से लगातार कूटनीतिक गलतियां होती रहीं।
सीमा पर प्रभाव बनाने में काफी हुआ सफल
नेपाल पर नजर रखने वाले पत्रकार आलोक जोशी बताते हैं कि भारत और नेपाल के संबंधों के बीच राजपरिवार एक सेतु की तरह था। चालक चीन के लिए नरसंहार की घटना काफी अहम साबित हुई। वह नेपाल की 1414 किमी लंबी सीमा पर प्रभाव बनाने में काफी सफल हुआ।
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भारत से दूरी का बड़ा कारण...
नेपाल बार्डर ठूठीबारी से प्रधान रहे राजेश सिंह कहते हैं कि वर्ष 2015 में नेपाल में संविधान में हक को लेकर मधेशियों के आंदोलन के समय बार्डर पर लॉकडाउन की स्थिति रही। नेपाल में महंगाई चरम पर पहुंच गई। नेपाली जनता में यह संदेश गया कि भारत की तरफ से मदद नहीं की जा रही है। जबकि बार्डर पर ट्रकों में पर्याप्त मात्रा में रोजमर्रा की चीजें फंसी थी, जो आंदोलन के चलते अंदर नहीं पहुंच पा रही थीं। भारत से दूरी का यह बड़ा कारण बना। इतना ही नहीं नोटबंदी में बाद करीब 4 करोड़ की भारतीय मुद्रा नेपाल राष्ट्र बैंक के पास जमा थी। जिसे लेकर नेपाली प्रधानमंत्री से भारत से गुहार भी लगाई लेकिन यह मुद्रा एक्सचेंज नहीं की गई।
चीन की कामयाबी
चीन नेपाल को भारतीय निर्भरता से मुक्त करने में सफल रहा है। नेपाल के हिन्दू राष्ट्र की पहचान खत्म करने, राजमुकुट और मुद्रा पर से महायोगी गुरु गोरक्षनाथ के चित्र और प्रतीकों को हटाने की कोशिशों में भी चीन कामयाब रहा। नेपाल में बड़े पैमाने पर चाइना स्टडी सेंटर खोलने और नेपाली स्कूलों में चीन की मंदारिन भाषा की पढाई अनिवार्य करने जैसे उपायों के जरिये चीन कल्चरल डिप्लोमेसी तेज करता रहा, और भारत सरकार लगातार चूक करती रही।
प्रोफेसर हर्ष कुमार सिन्हा कहते हैं...
गोरखपुर विश्वविद्यालय में रक्षा एवं रणनीतिक अध्ययन विभाग में प्रोफेसर हर्ष कुमार सिन्हा कहते हैं कि 2005 से 2008 के बीच नेपाल में चीनी प्रभाव बहुत तेजी से बढ़ा। इसी साल उसने नेपाल को 1.3 मिलियन डॉलर की सैन्य सहायता दी और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने भी 2.6 मिलियन डॉलर की सैन्य सहायता का एलान किया। 2008 में उसने जह्गमु-काठमांडू के बीच 100 किलोमीटर लंबी ऑप्टिकल फाइबर का इंफॉर्मेशन हाईवे नेपाल को सौंपा जिससे संचार के मामले में नेपाल की भारत पर से निर्भरता तो खत्म हुई ही चीन के साथ उसके संचार संपर्क बेहतर हो गये। इसी तरह पिछले साल चीन ने नेपाल को अपने चार सी पोर्ट और तीन लैंड पोर्ट का इस्तेमाल करने की सुविधा देकर खुद को खास साबित किया।
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प्रो.सिन्हा कहते हैं कि 'वर्ष 2018 में नेपाल ने पुणे में आयोजित बिम्सटेक देशों के संयुक्त सैन्य अभ्यास में हिस्सा लेने से मना कर दिया लेकिन कुछ ही समय बाद उसने सितंबर में चीन के साथ 12 दिन का एक सैन्य अभ्यास संयुक्त रूप से किया। पिछले साल शी जिनपिंग के दौरे में 500 मिलियन डॉलर के पैकेज का ऐलान किया गया जो नेपाल के लिए खासी अहमियत रखता है।
भारत-नेपाल के बीच संबंधों में आई खटास अस्थाई
हालांकि प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा भारत-नेपाल के बीच संबंधों में आई खटास को अस्थाई मानते हैं। वह कहते हैं कि इससे भी बद्तर हालत मालदीव जैसे छोटे देश से हो गई थी। जब उसने भारत से जहाज जैसी मदद को वापस लेने की पेशकश कर दी थी। वहां की सरकार बदली और स्थितियां बदल गईं। पिछले कुछ वर्षों में भारत से कूटनीतिक चूक हुई है, उसे सुधारने की जरूरत है। नेपाल की आर्थिक धुरी पर्यटन है। भारत को नेपाल में फेस्टिवल से लेकर अन्य गतिविधियां बढ़ानी होगी। जिससे दोनों देशों के लोगों के बीच बातचीत हो और रुपयों का लेनदेन हो।
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