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भारत में बड़े मानसिक स्वास्थ्य संकट की आहट

कोरोना महामारी से उपजी अनिश्चितता, आर्थिक संकट और दहशत का असर करोड़ों लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। इस महामारी ने करोड़ों लोगों को अलग थलग....

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Published on: 3 July 2020 3:15 PM GMT
भारत में बड़े मानसिक स्वास्थ्य संकट की आहट
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नीलमणि लाल

लखनऊ: कोरोना महामारी से उपजी अनिश्चितता, आर्थिक संकट और दहशत का असर करोड़ों लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। इस महामारी ने करोड़ों लोगों को अलग थलग और बेरोजगार कर दिया है। डॉक्टरों की चेतावनी है कि इस महामारी की वजह से चिंता, डिप्रेशन और आत्महत्या के मामले बढ़ सकते हैं और मानसिक स्वास्थ्य नए संकट का रूप ले सकता है। डब्लूएचओ ने खास तौर पर दक्षिण पूर्व एशिया के देशों से कहा है कि वे मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या रोकने पर अधिकाधिक ध्यान दें। वैसे पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के कारण लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत खराब असर पड़ रहा है।

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दहशत भरे दिन

कोरोना संकट को देखते हुए भारत ने 24 मार्च को देश भर में लॉकडाउन लागू किया जिससे 135 करोड़ लोगों की जिंदगी अचानक एकदम थम गई। काम धंधे बंद हो जाने से बहुत से लोग बेरोजगार हो गए। महामारी से पहले जिन्हें कभी मानसिक समस्याएं नहीं हुई उन्हें भी तनाव और चिंता घेरने लगी।

मानसिक स्वास्थ्य पर असर

इंडियन सायकाइट्री सोसाइटी (आईपीएस) के एक हालिया सर्वे में पता चला है कि लॉकडाउन लागू होने के बाद से मानसिक बीमारियों के मामले बीस फीसदी बढ़े हैं और हर पांच में से एक भारतीय इनसे प्रभावित है। आईपीएस ने चेतावनी दी है कि भारत में हाल के दिनों में कई कारणों से मानसिक संकट का खतरा पैदा हो रहा है। इनमें रोजी-रोटी छिनना, आर्थिक तंगी बढ़ना, अलग थलग होना और घरेलू हिंसा बढ़ना शामिल हैं। ये कारण किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए भी उकसा सकते हैं। मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर अब दिखने लगेंगे। यह संकट अब लोगों को प्रभावित कर रहा है।

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युवा सबसे ज्यादा प्रभावित

मानसिक तनाव, चिंता, घबराहट और बेचैनी के सबसे ज्यादा शिकार युवा हो रहे हैं। लखनऊ के फिजीशियन व हात स्पेशलिस्ट डॉ अतुल खरबन्दा बताते हैं कि उनकी क्लीनिक में 50 फीसदी मामले स्ट्रेस और एंक्जाइटी से पीड़ित युवाओं के आ रहे हैं। पेरेंट्स अच्छी ख़ासी नौकरी कर रहे और उच्च शिक्षा प्राप्त अपने बच्चों को ले कर आ रहे हैं। ऐसे सभी पेशेंट्स में में एक जैसे लक्षण दिखते हैं और सब चिंता से ग्रसित हैं। डॉ खरबन्दा का कहना है कि युवाओं में स्ट्रेस और संकट झेलने की क्षमता न होने की वजह से ऐसा हो रहा है। पेरेंट्स अपने बच्चों की परवरिश बहुत अधिक सुरक्षित वातावरण में करते हैं जिस कारण बच्चे किसी भी विपरीत परिस्थिति में बहुत जल्दी स्ट्रेस में आ जाते हैं।

दरअसल, हालात का सामना करने की हमारी सबकी एक सीमा है और अगर ज्यादा समय तक बहुत ज्यादा तनाव रहे तो हम उससे निपटने की अपनी क्षमता खो देते हैं।

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बच्चों के लिए जोखिम

मनोवैज्ञानिक चेतावनी देते हैं कि महामारी के इस दौर में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए खासतौर से दिक्कतें हो सकती हैं। उन्हें दोस्तों से अलग थलग अपने घरों में रहना पड़ रहा है। वे घर में तनाव और कहीं कहीं हिंसा का गवाह भी बन रहे हैं ऐसे में उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। अगर बड़ों में तनाव और गुस्सा है तो वह बच्चों पर हिंसा के रूप में निकल सकता है। इसलिए यह बड़ी चिंता का कारण है।

भारत में लॉकडाउन के दौरान आत्महत्या एक बड़ा कारण

स्वतंत्र रिसर्चरों के एक हालिया सर्वे में पता चला है कि भारत में लॉकडाउन के कारण कोरोना वायरस से इतर होने वाली मौतों में आत्महत्या एक बड़ा कारण है। इस साल मार्च में 125 लोगों की मौत संक्रमण के डर, अकेलेपन, बाहर आने जाने की आजादी छिन जाने या फिर घर न जा पाने की हताशा के कारण हुई। अध्ययन में वित्तीय तंगियों और शराब ना मिल पाने को भी आत्महत्या के कारणों में गिनाया गया है। एक अन्य सर्वे में पता चला है कि 19 मार्च से 2 मई के बीच महामारी के अनया प्रभावों के अकारण 338 मौतें हुईं।

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आईसीएमआर, आयुष मंत्रालय और मौलाना आज़ाद इंस्टीट्यूट और सफदरजंग अस्पताल द्वारा किए गए एक सर्वे से भी ये निकाल कर आया है कि कोरोना वाइरस की दहशत के कारण लोग अत्यधिक चिंता में हैं इस डर को लॉकडाउन के अकेलेपन ने और भी बढ़ा दिया है।

मुश्किलें कम नहीं

एक्स्पर्ट्स कहते हैं कि भारत में अगले छह से 12 महीनों के दौरान मानसिक स्वास्थ्य एक बड़ा संकट बन सकता है। सामने एक आर्थिक संकट मंडरा रहा है जिसकी वजह से ज्यादा आत्महत्याएं, शराब की लत और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मामले सामने आएंगे। पिछले वित्तीय संकट में भी ऐसा ही देखा गया था।

नहीं मिल पा रहा उचित इलाज नहीं

नरेंद्र मोदी सरकार ने 2017 में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम पेश किया था जिसके तहत सरकारी स्वास्थ्य देखभाल और इलाज के जरिए लोगों का अच्छा मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने की बात कही गई थी। लेकिन असल समस्या सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी है जिसके कारण कानून और नीतियों को जमीनी स्तर पर प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जाता। अब भी बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिनको उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है।

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जवाब देती हिम्मत

एक युवा प्रोफेशनल बताते है कि पिछले तीन महीनों से उन्होने खुद को बाहरी दुनिया की खबरों से अलग रखा है। वह अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल को भी देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। महामारी के इस दौर में वे अत्यधिक डिप्रेशन से गुजर रहे हैं। उनमें डिप्रेशन के लक्षण कभी ज्यादा हो जाते हैं और कभी कम। पता नहीं चलता कि आगे क्या करूं। मैं किसी और चीज पर ध्यान नहीं लगा पाता इससे मेरे मन में नकारात्मक बातें ही आती हैं। ऐसा भी एक समय आया जब उनको भूख लगनी ही बंद हो गई।

इस दौरान ठीक से नींद भी नहीं आती थी। हर समय यही चिंता लगी रहती थी कि कहीं उन्हें कोरोना वायरस ना लग जाए। वह बताते हैं कि वो हर दिन कम से कम बीस बार हाथ धो रहे थे। बाहर जाना बिल्कुल ही बंद कर दिया था। बार बार लॉकडाउन बढ़ाए जाने से उनमें लाचारी की भावना घर करती गई।

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डब्लूएचओ की चेतावनी

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना महामारी के व्यापक स्वरूप को देखते हुये दक्षिण पूर्व एशिया के देशों से कहा है कि वे अपने नागरिकों के मान्सिक स्वास्थ्य और उनमें सुसाइड की प्रवृति को रोकने के लिए उपायों पर तत्काल ध्यान दें। डब्लूएचओ ने अनुसार दुनिया भर में होने वाली आत्महत्याओं में से 39 फीसदी दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में होती हैं। स्थिति पहले से ही खराब है और अब महामारी की वजह से इसमें और भी इजाफा होने का अंदेशा है।

दिल्ली, मुंबई में बुरी स्थिति

एक नई स्टडी में पता चला है कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में डाक्टरों से ऑनलाइन परामर्श के मामले 180 फीसदी बढ़े हैं। सबसे ज्यादा मामले मुंबई (205 फीसदी) में और उसके बाद दिल्ली (180 फीसदी) बढ़े हैं। इसके बाद पुणे, अहमदाबाद, चेन्नई, बंगलुरु, कोलकाता और हैदराबाद का नंबर है। इस लिस्ट में इंदौर और लखनऊ भी हैं। जहां ऑनलाइन परामर्श क्रमशः 141 फीसदी और 135 फीसदी बढ़ा है। उमर्की बात करें तो सबसे ज्यादा मामले 25 से 45 आयु वर्ग के हैं इसके बाद 45 से 60 वर्ष के लोग आते हैं।

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