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कोरोना के इस डर के ही आगे है ज़िंदगी की जीत

कोविड-19 या कोरोना वायरस कुछ हफ्तों पहले सुदूर देशों की बीमारी माना जा रहा था लेकिन आज ये भारत में तेजी से पैर पसार रहा है। चंद दिनों में संक्रमित लोगों का आंकड़ा आठ गुना बढ़ चुका है।

Dharmendra kumar
Published on: 28 March 2020 6:41 AM GMT
कोरोना के इस डर के ही आगे है ज़िंदगी की जीत
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नीलमणि लाल

लखनऊ: कोविड-19 या कोरोना वायरस कुछ हफ्तों पहले सुदूर देशों की बीमारी माना जा रहा था लेकिन आज ये भारत में तेजी से पैर पसार रहा है। चंद दिनों में संक्रमित लोगों का आंकड़ा आठ गुना बढ़ चुका है। स्थिति डराने वाली है और यकीन मानिए, डरेंगे तभी जीत पाएंगे। ये वक्त मूर्खतापूर्ण बहादुरी का नहीं है। इसे युद्ध की तरह समझना होगा। बड़े-बड़े युद्ध सिर्फ आक्रमण करके नहीं जीते गए हैं। जीते गए हैं रणनीति और बुद्धिमानी से। और इन रणनीति में पीछे हटना, छिपना शामिल होता है। ठीक उसी तरह कोविड-19 से युद्ध में पीछे हटना, छिपना शामिल है। ये रणनीति है पीछे हटने और अपने घर में छिपने की। 21 दिन तक दुश्मन से छिप कर रहना है।

कुछ सुकून भी

कोरोना वायरस के बारे में भले ही भयावह आंकड़े आ रहे हैं लेकिन कुछ सुकून देने वाली खबरें भी हैं। प्रतिष्ठित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के बायोफिजिसिस्ट नोबेल पुरस्कार विजेता माइकल लेविट ने एक भविष्यवाणी की है कि सोशल डिस्टेंसिंग ने दुनिया को एक बूस्टर शॉट दिया है जो इस समय महामारी से लड़ने के लिए जरूरी है। इसलिए कोविड-19 का कहर जल्द ही खत्म हो जाएगा। माइकल लेविट ने ही भविष्यावाणी की थी कि चीन में सवा तीन हजार लोग मरेंगे। लेविट ने 'द लॉस एंजिल्स टाइम्स' को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि कोरोना के बढ़ते प्रकोप को रोकने के लिए जो करना चाहिए, वो हम कर रहे हैं। हम सब ठीक होने जा रहे हैं।

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पूरा देश एकजुट

पूरा देश लॉक डाउन होने से निश्चित ही बहुत फायदा मिलेगा। संकट के इस दौर में पूरी देश एकजुट है। सभी राजनीतिक दलों ने प्रधानमंत्री के फैसलों की सराहना करते हुये उनको पूरा समर्थन दिया है। महिंद्रा जैसी दिग्गज कंपनियों ने वेंटिलेटर जैसे जीवन रक्षक उपकरण निर्माण में ताकत लगा दी है। खिलाड़ियों से लेकर फिल्मी हस्तियाँ सरकार को राहत कार्य के लिए बड़े पैमाने पर दान दे रहे हैं। सामाजिक संस्थाएं और आम जन भी अपने अपने स्तर से सहायता कार्य कर रहे हैं।

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डब्लूएचओ ने की भारत की तारीफ

ये अच्छी बात है कि भारत ने कोरोना वायरस के संकट को जल्दी जान लिया था और एक के बाद एक उपाए किए जाते रहे। ये जल्दी अमेरिका और यूरोप के देशों ने नहीं दिखाई थी। भारत दुनिया का पहला देश है जिसने पूरे देश में लॉक डाउन किया है। सभी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस फैसले को बहुत साहसिक और दूरदर्शितापूर्ण बताया है। भारत सरकार के अभी तक उठाए गए सभी कदमों की विश्व में सराहना हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी कहा है कि भारत ने काफी जल्द ही देश में लॉकडाउन का जो फैसला किया है वह एक बहुत ही सराहनीय कदम है मगर भारत को कुछ अन्य फैसले भी करने होंगे। डब्ल्यूएचओ के चेयरमैन डॉक्टर ट्रेडोस ने कहा है कि भारत के पास कोरोना को हराने की क्षमता है। उन्होंने कहा कि जिन देशों ने सही समय पर कड़े फैसले नहीं लिए और सावधानियां नहीं बरतीं, उन देशों को इसका बुरा खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। अब भारत को पीड़ितों की तलाश करनी होगी और इसके साथ ही पीड़ित के

संपर्क में जो भी आया है, ऐसे लोगों पर निगरानी रखनी होगी। अगर भारत यह सब कदम उठाने में कामयाब रहा तो निश्चित रूप से देश में कोरोना को बढ़ने से रोका जा सकता है।

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टेस्ट, दवा और टीके पर काम

भारत समेत पूरी दुनिया में पूरी ताकत से कोरोना वायरस की दवाई, टीका और परीक्षण किट बना का काम हो रहा है। दवाओं और टीके पर ट्राइल भी शुरू कर दिये गए हैं। कोरोना वायरस के बढ़ते प्रसार के बीच सबसे बड़ी समस्या प्रभावित लोगों को जल्द टेस्ट करने की है। अब कार कंपनियों को कल पुर्जों की सप्लाई करने वाली जर्मन कंपनी बॉश ने जल्द और सुरक्षित टेस्टिंग का रास्ता निकाला है। इस तकनीक की मदद से सैंपल को कहीं दूर किसी लैब में भेजे बिना ढाई घंटे के अंदर टेस्ट किया जा सकेगा कि वह वायरस से संक्रमित है या नहीं। कंपनी के प्रमुख फोल्कमर डेनर का कहना है कि इस जानलेवा वायरस के खिलाफ संघर्ष में समय बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है। नई तकनीक के बारे में कहा जा रहा है कि लैब में किए गए विभिन्न टेस्ट में नतीजे 95 फीसदी सटीक रहे हैं।

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जापानियों की आदतें आयीं काम

कोरोना पर काबू पाने में जापान द्वारा उठाए गए कदमों को भी देखना जरूरी है। चीन के करीब होने के बावजूद जापान में कोरोना वायरस उतना नहीं फैला जितना यूरोप और अमेरिका में। जापान में 26 मार्च तक कोरोना के कुल मामले 2 हजार के आसपास थे जबकि 55 लोग इस वायरस के चलते मारे गए हैं। हर दिन वहां कुछ ही दर्जन नए मामले सामने आ रहे हैं लेकिन बेहद सघन आबादी, दुनिया में सबसे ज्यादा बुजुर्ग जनसंख्या और चीन के साथ बहुत नदजीकी संपर्क होने के बावजूद स्थिति बहुत ज्यादा खराब न होना संतोष की ही बात है। इस साल जनवरी में 9.2 लाख चीनी लोगों ने जापान की यात्रा की थी जबकि फरवरी में 89 हजार लोग चीन से जापान गए थे।

कैसे रोका फैलाव

-स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि बड़े पैमाने पर टेस्ट करने की बजाय उन्होंने कोविड19 के बढ़ते केसों पर नजर रखी। जब उत्तरी द्वीप होक्काइदो में एक प्राइमरी स्कूल में वायरस फैलने का मामला सामने आया तो पूरे प्रीफैक्चर (जिले) में स्कूलों को बंद करके इमरजेंसी लगा दी गई। इसके तीन हफ्ते बाद वायरस रुक गया।

-जापानी लोग जब एक दूसरे से मिलते हैं तो हाथ मिलाने या फिर गाल पर चुंबन करने की बजाय वे झुकते हैं। साथ ही जापान में बचपन से ही लोगों को बहुत साफ सफाई रखना सिखाया जाता है।

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-अपने हाथ धोना, डिसइंफेक्ट मिश्रण से गारगल करना और मास्क पहनना रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा है।

-जब फरवरी में यह वायरस फैलने लगा तो पूरा समाज एकदम एंटी-इंफेक्शन मोड में आ गया। दुकानों और अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों के दरवाजे पर सैनिटाइजर रख दिए गए और मास्क पहनना सबकी जिम्मेदारी बन गया।

जापान में लोग आमतौर पर भी मास्क पहनते हैं। देश में हर साल 5.5 अरब मास्क की खपत होती है, यानी एक व्यक्ति यहां औसतन 43 मास्क इस्तेमाल करता है। सो संक्रमण फैलने पर लोगों ने बड़े पैमाने पर मास्क का इस्तेमाल शुरू कर दिया। लोगों ने यह समझ लिया कि किसी व्यक्ति में लक्षण ना दिखने के बावजूद संक्रमण हो सकता है। मास्क पहनने की वजह से भी कोरोना के मामलों को रोकने में मदद मिली है।

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क्या हैं लक्षण और कैसे कर सकते हैं बचाव

इंसान के शरीर में पहुंचने के बाद कोरोना वायरस उसके फेफड़ों में संक्रमण करता है। इस कारण सबसे पहले बुख़ार, उसके बाद सूखी खांसी आती है। बाद में सांस लेने में समस्या हो सकती है। बीमारी के शुरुआती लक्षण सर्दी और फ्लू जैसे ही होते हैं जिससे कोई आसानी से भ्रमित हो सकता है। कुछ ब्रिटिश डाक्टरों का कहना है कि सूंघने की क्षमता घटना या खत्म हो जाना भी एक

लक्षण है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायरस के शरीर में पहुंचने और लक्षण दिखने के बीच 14 दिन का समय हो सकता है। हालांकि कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि ये समय 24 दिनों तक का भी हो सकता है। वैज्ञानिकों ने ये भी पाया है कि बहुत से मामलों में संक्रमित व्यक्ति में कोई लक्षण उत्पन्न ही नहीं होते।

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किसी जगह पर कितनी देर तक टिक सकता है यह वायरस

-यह वायरस छींक या खांसी के दौरान बाहर निकलने पर बूंदों में तीन घंटे तक जीवित रह सकता है।

-कार्डबोर्ड पर ये वायरस 24 घंटे तक और प्लास्टिक व स्टेनलेस स्टील की सतहों पर 2-3 दिन तक टिका रह सकता है।

-वायरस दरवाज़ों के हैंडल्स, प्लास्टिक कोटेड और लैमिनेटेड वर्कटॉप्स और दूसरी सख़्त सतहों पर ज़्यादा वक़्त के लिए जीवित बना रह सकता है।

-कॉपर यानी तांबे की सतह पर यह वायरस क़रीब चार घंटे में ही मर जाता है।

-यह वायरस ज़्यादा लंबे वक़्त तक मल पर टिक सकता है, ऐसे में टॉयलेट होकर आने वाला कोई शख़्स अगर अच्छी तरह से अपने हाथ नहीं धोता है तो इससे वो अपनी छुई जाने वाली दूसरी किसी भी चीज़ को संक्रमित कर सकता है।

-तापमान में बदलाव और ह्यूमिडिटी से भी वायरस को ज़्यादा देर टिकने में मुश्किल होती है। यानी गरम और हयूमिड वातावरण में वायरस ज्यादा देर बचा नहीं रह सकता।

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तत्काल रोकने का उपाय

62-71 फीसदी एल्कोहल या 0.5 फीसदी हाइड्रोजन परऑक्साइड ब्लीच या 0.1 फीसदी सोडियम हाइपोक्लोराइट वाली घरेलू ब्लीच से सतह को साफ़ करने से कोरोना वायरस को एक मिनट के भीतर निष्क्रिय किया जा सकता है।

कोरोना वायरस की संरचना तेजी से नहीं बदल रही

कोरोना वायरस अपनी जेनेटिक संरचना तेज़ी से नहीं बदल रहा है और यह राहत की बात है। एक रिपोर्ट के अनुसार, ''चार महीने पहले चीन के वुहान में उसकी संरचना जैसी थी अब भी लगभग वैसी ही है। इसके कारण कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ लंबे समय तक काम करने वाला वैक्सीन बनाना आसान होगा. वहीं इंफ्लुएंजा जैसे कई वायरस लगातार अपनी जेनेटिक संरचना बदलते रहते हैं और उनके लिए हर बार नई वैक्सीन तैयार करनी पड़ती है।

भारत में कोरोना वायरस के स्वरूप पर नज़र रख रहे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के वैज्ञानिकों के अनुसार भारत में पाए गए कोरोना वायरस काफ़ी हद तक एक समान हैं। ये कई देशों में रहने वाले लोगों के माध्यम से भारत पहुंचे हैं। सामान्य रूप से वायरस एक से दूसरे मानव शरीर के भीतर गुजरते समय अपनी संरचना बदलता रहता है, जिसे म्यूटेशन कहते हैं। कोरोना वायरस में म्यूटेशन की यह प्रक्रिया नहीं देखी जा रही है। पूरी दुनिया में यह वायरस काफ़ी हद तक एक समान ही पाया जा रहा है।

Dharmendra kumar

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