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कैफ़े टॉक चर्चा! मीडिया को महिला मुद्दों पर और लिखने की ज़रूरत
प्राय: ऐसा देखा गया है कि मीडिया में महिलाओं का चित्रण हमेशा एक अलग ढ़ंग से दिखाया जाता है। यह चित्रण रूढ़ीवादी मानसिकता को दर्शाता है। ऐसी ही कुछ बातें महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था ब्रेकथ्रू द्वारा गोमतीनगर के एक होटल में आयोजित कैफ़े टॉक चर्चा
लखनऊ: प्राय: ऐसा देखा गया है कि मीडिया में महिलाओं का चित्रण हमेशा एक अलग ढ़ंग से दिखाया जाता है। यह चित्रण रूढ़ीवादी मानसिकता को दर्शाता है। ऐसी ही कुछ बातें महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था ब्रेकथ्रू द्वारा गोमतीनगर के एक होटल में आयोजित कैफ़े टॉक चर्चा कार्यक्रम में कही गईं।
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इस कार्यक्रम में लेखिका डॉ. वन्दिता मिश्रा और ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती उर्दू अरबी फ़ारसी विश्वविद्यालय के मॉस कम्युनिकेशन विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. तनु डंग ने अपने विचार रखे।कार्यक्रम का संचालन व समन्वय ब्रेकथ्रू के सुनील ने किया।
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नॉवेलिस्ट डॉ. वन्दिता मिश्रा ने कहा कि मीडिया में महिलाओं की स्थिति को हमेशा से एक अलग ढ़ंग से चित्रित किया जाता है।
उन्होंने आगे कहा कि यह वक़्त की ज़रूरत है कि जो युवा लेखकों की पीढ़ी को महिला मुद्दों पर और अधिक लिखने की ज़रूरत है, जिससे महिलाओं की असल स्थिति आम लोगों तक पहुँच सकें। प्राय: हिंसा की जब भी बात करते हैं तो अक्सर ऐसी कहानियां अनसुनी रह जाती हैं।
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मीडिया हमेशा ऐसी कहानियों को या तो जगह नहीं देता है या फ़िर अगर उन्हें उठाता है तो एक अलग ढ़ंग से पेश करता है जो उस कहानी के पीछे छिपे सच को भूल जाता है और मुद्दे की हकीक़त भी बदल जाती है।
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उन्होंने यह भी कहा कि नॉवेल और दूसरे माध्यमों में महिलाओं का चित्रण करते वक़्त हमें विशेष सावधानी बरतनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि कभी भी किसी की निजी जानकारी या चित्र प्रकशित ना हो जाए जो उसके निजता के अधिकार का हनन करता हो।
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ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती उर्दू अरबी फ़ारसी विश्वविद्यालय के मॉस कम्युनिकेशन विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. तनु डंग ने कहा कि बाज़ार में उपभोक्तावाद अपने चरम पर है और इस वक़्त हर मुद्दे और कहानी को बेचने पर ज़्यादा ज़ोर रहता है।
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विज्ञापनों में महिलाओं को वस्तु बेचते हुए दिखाना एक ट्रेंड बन गया है। यही नहीं महिलाओं से सम्बंधित ख़बरों को लिखने तक में एक पैटर्न का इस्तेमाल किया जाने लगा है।
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यही नहीं बल्कि महिलाओं से सम्बंधित ख़बरों तक में विसुअल और फ़ोटो के सहारे से भी महिलाओं की स्थिति को हमेशा एक पीड़ित के तौर पर पेश किया जाता है।
उन्होंने यह भी कहा कि इस दिशा में मीडिया संस्थानों और सरकार को भी पहल करनी चाहिए ताकि इस तरह की ख़बरों को प्रकाशित करते किन बातों का ध्यान रखना चहिए। इस दिशा में पहल करने के साथ ही साथ सतत प्रयासों की भी बहुत ज़रूरत है।
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चर्चा के दौरान ब्रेकथ्रू के सुनील ने कहा की आज के डिजिटल युग में हिंसा को बहुत ज़्यादा महिमामंडित किया जाता है | पहले जहाँ लोग थोड़े बहुत संवेदनशील थे,वहीँ अब आज की भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में यह देखने को कम मिलता है। यहाँ तक कि टीवी,ऑनलाइन वेब सीरीज और वेबसाइट भी ऐसे कंटेंट को जारी करने में बहुत ज़्यादा सावधानी नहीं बरतते हैं। अगर हमें यह नैरेटिव बदलना है तो हमें बेशक ऐसे कंटेंट पर लगाम लगाने की ज़रुरत है साथ ही साथ हमें संवेदनशील बनने की भी ज़रूरत है।
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ब्रेकथ्रू के बारे में...
ब्रेकथ्रू एक स्वयंसेवी संस्था है जो महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ होने वाली हिंसा और भेदभाव को समाप्त करने के लिए काम करती है। कला, मीडिया, लोकप्रिय संस्कृति और सामुदायिक भागेदारी से हम लोगों को एक ऐसी दुनिया बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, जिसमें हर कोई सम्मान, समानता और न्याय के साथ रह सके।
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हम अपने मल्टीमीडिया अभियानों के माध्यम से महिला अधिकारों से जुडें मुद्दों को मुख्य धारा में ला कर इसे देश भर के समुदाय और व्यक्तियों के लिए प्रासंगिक भी बना रहे हैं। इसके साथ ही हम युवाओं, सरकारी अधिकारियों और सामुदायिक समूहों को प्रशिक्षण भी देते हैं, जिससे एक नई ब्रेकथ्रू जेनरेशन सामने आए जो अपने आस-पास की दुनिया में बदलाव ला सके।