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#NoBra: महिला आजादी की नई मुहिम

सन 1969 में ब्रा न पहनने का फैशन खूब चला। अमेरिका के एक स्टोर में एक प्रदर्शनकारी महिला ने सबके सामने ब्रा उतार कर अपना विरोध दर्ज किया था। सत्तर के दशक में सोशल एक्टिविस्ट ग्लोरिया स्टीनेम महिलाओं की आजादी के अभियान की प्रतीक बन कर उभरीं।

Manali Rastogi
Published on: 31 March 2023 3:58 AM IST
#NoBra: महिला आजादी की नई मुहिम
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नीलमणि लाल नीलमणि लाल

साल 1968 में मिस अमेरिका ब्यूटी कॉन्टेस्ट के दौरान महिलावादियों ने अंत:वस्त्र को गुलामी और शोषण का प्रतीक बता कर ब्रा जलाने और उसे कूड़े में फेंक कर अपना विरोध जताया था। ये पुरुषवादी सोच के खिलाफ बगावत और अपनी आजादी दिखाने का अभियान था।

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अब 50 साल बाद अब वही अभियान नए जमाने के नाम के साथ फिर लौट आया है। इस बार ये मुहिम दक्षिण कोरिया से शुरू हुई है और नाम है ‘#NoBra’ सोशल मीडिया पर ये खूब वायरल हो रहा है। महिलाएं बिना ब्रा के कपड़े पहनकर अपनी तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर कर रही हैं।

पुरुष भी दे रहे रिएक्शन

इस मसले पर पक्ष-विपक्ष में महिलाओं के साथ साथ पुरुष भी रिएक्शन दे रहे हैं। हॉलीवुड स्टार हैली बेरी, केटी होम्स समेत कई सेलेब्रिटीज ने नो ब्रा को समर्थन देने का ऐलान किया है। साठ के दशक में सोशल मीडिया तो था नहीं सो ब्रा त्यागने और जलाने का सिलसिला दुनिया भर में फैल नहीं सका लेकिन आज सोशल मीडिया ने इस मुहिम को आग की तरह फैलाने में मदद की है।

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#NoBra की शुरुआत दक्षिण कोरिया की गायिका और अभिनेत्री सुली द्वारा अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर बिना ब्रा वाली तस्वीर शेयर करने से हुई। इंस्टाग्राम पर उनके लाखों फॉलोअर हैं और आनन फानन मेें ये फोटो वायरल हो गई। महिलाएं अपनी ‘ब्रा लेस’ फोटो खींच कर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रही हैं। इन फोटो के जरिए ये मैसेज देने की कोशिश हो रही है कि ब्रा पहनना या न पहनना निजी आजादी का मसला है।

तरह तरह की परेशानियां

दक्षिण कोरिया में महिलाओं की सुंदरता के भी मानक हैं यही वजह है कि आंखों के आकार बदलने के लिए कॉस्मेटिक सर्जरी सबसे ज्यादा इसी देश में होती है। यही नहीं, ब्यूटी प्रोडक्ट्स का सबसे बड़ा बाजार भी दक्षिण कोरिया है। इसी देश में सर्वाधिक ब्यूटी प्रोडक्ट ईजाद किए जाते हैं। यहां महिलाओं को घूरना आम बात है जिसे ‘गेज़ रेप’ यानी आंखों से रेप करना कहा कहा जाता है।

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दक्षिण कोरिया में 2018 में महिलाओं के बीच ‘एस्केप द कॉर्सेट’ मुहिम चली थी। इसमें अपने बाल मुंडवा कर बिना मेक-अप वाली तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर की जाती थीं। एस्केप द कॉर्सेट नारा महिलाओं की खूबसूरती के सामाजिक पैमानों के खिलाफ था।

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दक्षिण कोरिया में सार्वजनिक ठिकानों जैसे होटल के कमरों, बाथरूम में कैमरा छुपाकर लगा दिया जाता है, ताकि महिलाओं के निजी पलों को कैमरे में रिकार्ड कर के देखा जा सके। इसके खिलाफ भी बहुत बड़ा महिला अभियान चल चुका है। खुफिया कैमरों पर पाबंदी लगाने की मांग करते हुए हजारों महिलाएं सडक़ों पर उतरी थीं।

ब्रा पहनना भी जरूरी

महिलाओं की आजादी की बात के इतर अगर ब्रा की उपयोगिता की बात की जाए तो इसके बारे में हमेशा से अलग-अलग राय रही है। डॉक्टरों का कहना है कि ब्रा पहनना न या न पहनना व्यक्गित च्वाइस की बात है लेकिन यदि किसी महिला के ब्रेस्ट भारी हैं, तो उन्हें सहारे की जरूरत होती है।

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नहीं तो शरीर की बनावट खराब हो जाती है। जिसका असर गर्दन और पीठ पर भी पड़ता है। इसके अलावा उम्र बढऩे पर ब्रेस्ट को प्राकृतिक रूप से मिलने वाला सहारा भी कमजोर पड़ जाता है। लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्रा पहनने से नुकसान ही ज्यादा होता है। एक रिसर्च में पाया गया है कि ब्रा से शरीर का नेचुरल शेप खराब होता है।

#NoBra है एंटी ब्रा मूवमेंट

#NoBra की शुरुआत करने वाली कोरियन अभिनेत्री सुली का कहना है कि उनके विचार से ब्रा पहनने का फैसला निजी च्वाइस की बात है। सुली कहती हैं उनका माना है कि ब्रा में तार होते हैं और ये सेहत के लिए नुकसानदेह है।

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बहरहाल, माना जाता है कि ब्रा की शुरुआत ईसा पूर्व 14वीं सदी में हुई थी। लेकिन वर्ष 1800 के आसपास वर्तमान स्वरूप वाली ब्रा प्रचलन में आई। ब्रा विरोधी अभियान की शुरुआत महिलाओं के प्रति पुरुषवादी सोच की मुखालफत के तौर पर हुई।

1968 में मिस अमेरिका ब्यूटी कांटेस्ट का यह कह कर विरोध किया गया कि ऐसी प्रतियोगिताओं में महिलाओं के दिमाग से ज्यादा उनके जिस्म को तरजीह दी जाती है। विरोध के प्रतीक के तौर पर ब्रा कूड़ेदान में फेंकी गईं और जलाईं गईं।

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सन 1969 में ब्रा न पहनने का फैशन खूब चला। अमेरिका के एक स्टोर में एक प्रदर्शनकारी महिला ने सबके सामने ब्रा उतार कर अपना विरोध दर्ज किया था। सत्तर के दशक में सोशल एक्टिविस्ट ग्लोरिया स्टीनेम महिलाओं की आजादी के अभियान की प्रतीक बन कर उभरीं। नब्बे के दशक में हॉलीवुड स्टार केंडेल जेनर, जेनिफर एनीस्टन और निकोल किडमैन नो ब्रा मुहिम का केंद्र बनीं थीं।



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Manali Rastogi

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