बिहार चुनाव 2020: कोशिशें नतीजे प्रभावित करने की, मुस्लिम वोट पर घमासान
बिहार के सीमांचल यानी बांग्लादेश और बंगाल की सीमा से सटे इअलकों में कई सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं। इस स्थिति को देखते हुए इस बार के विधानसभा चुनाव में भी मुसलमानों के वोट बटोरने के लिए कई पार्टियाँ जुट गयीं हैं और इनकी कोशिश चुनाव नतीजों को किस न किसी तरह प्रभावित करने की है।
नीलमणि लाल
लखनऊ: बिहार के सीमांचल यानी बांग्लादेश और बंगाल की सीमा से सटे इअलकों में कई सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं। इस स्थिति को देखते हुए इस बार के विधानसभा चुनाव में भी मुसलमानों के वोट बटोरने के लिए कई पार्टियाँ जुट गयीं हैं और इनकी कोशिश चुनाव नतीजों को किस न किसी तरह प्रभावित करने की है। इन पार्टियों में सबसे आगे है एआईएमआईएम जो पिछले विधानसभा चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है। बिहार की राजनीति में जगह तलाश रहे असदुद्दीन ओवैसी पिछले काफी समय से अपनी पार्टी को हैदराबाद से निकालकर दूसरे प्रदेशों में फैलाने की कोशिश में लगे हुए हैं।
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ओवैसी ने इस मर्तबा बिहार के लिए लम्बी चौड़ी प्लानिंग कर रखी है। ओवैसी ने पिछला चुनाव अकेले लड़ा था और मुसलमान मतदाताओं में कुछ प्रभाव भी देखा गया था लेकिन वो सीमांचल में कोई बड़ी राजनीतिक ताकत नहीं बन पाए थे। इस बार ओवैसी ने दूसरे दलों को गठबंधन के लिए ऑफर दे दिया है। वैसे ओवैसी की पार्टी को मुस्लिम लीग से भी चुनौती मिल रही है।
मुस्लिम, यादव वोट बैंक
बिहार की राजनीति का सबसे मजबूत वोटिंग समीकरण मुस्लिम यादव वोटबैंक है जिसे एमवाई समीकरण कहा जाता है। अभी तक ये परंपरागत रूप से लालू प्रसाद यादव की जनता दल के साथ रहा है। राज्य में एमवाई वोटर लगभग 30 प्रतिशत है। इसमें 16 फीसदी मुस्लिम मतदाता है जबकि 14 फीसदी यादव वोट हैं।
पिछला चुनाव
बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने अपने प्रत्याशी उतारे थे लेकिन पार्टी खाता खोलने में असफल रही। हालांकि बाद में हुए उपचुनाव में पार्टी ने एक सीट पर जीत हासिल कर विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी।
ओवैसी का गठबंधन
ओवैसी की आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन और पूर्व सांसद देवेंद्र यादव की समाजवादी जनता दल (डेमोक्रेटिक) ने गठबंधन कर भी लिया है और इस गठबंधन को संयुक्त जनतांत्रिक सेक्लुयर गठबंधन नाम दिया है। इन दोनों पार्टियों के मिलने को राजनीतिक दल भले ही महत्व न देने का दिखावा कर रहे हों लेकिन ये माना जा रहा है कि इसके आने से लड़ाई रोचक होने वाली है।
ओवैसी जानते हैं कि वो मुस्लिम वोट बैंक में तो कुछ सेंध लगा सकते हैं लेकिन सिर्फ इसके सहारे राज्य में अपनी पैठ नहीं बनाई जा सकती है। इसलिए जरूरी है कि यादव को साधने की कोशिश की जाए। जिन वोटों पर नजर है वो अभी तक राजद के समर्थक माने जाते रहे हैं। ऐसे में ओवैसी और देवेंद्र यादव का गठबंधन जो वोट पाएगा वह महागठबंधन के खाते से ही निकलेगा। यूडीएसए को फायदा महागठबंधन को नुकसान ही पहुंचाएगा। यही वजह है कि महागठबंधन के नेता ओवैसी पर बीजेपी की टीम बी होने का आरोप लगाकर उन्हें खारिज करते हैं।
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मुस्लिम लीग
चुनाव नजदीक आते ही इंडियन मुस्लिम यूनियन लीग सक्रिय हो गए हैं। लीग के नेता बिहार को केरल मॉडल पर ले जाना चाहते हैं यानी केरल की तरह सौ फीसदी शिक्षा दर हो औऱ केरल की तरह मुसलमानों को 12 फीसदी रिजर्वेशन। इंडियन मुस्लिम यूनियन लीग के प्रदेश अध्यक्ष सैय्यद नईम अख्तर का कहना है कि इस बार इंडियन मुस्लिम यूनियन लीग 243 सीटों में से 30 सीटों पर प्रत्याशी खड़े करेगी, जिसमें से सिर्फ सीमांचल से 13 उम्मीदवार होंगे।
प्रदेश अध्यक्ष ने एआइएमआइएम पर वार करते हुए कहा है कि मुस्लिम लीग चाहती हैं कि सेकुलर वोटों का बिखराव ना हो जिसके लिए एआइएमआइएम से गठबंधन कर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती है, लेकिन एआइएमआइएम गठबंधन के लिए आगे नहीं आ रहा है।
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