बिहार में एलियन बच्चा: दूर-दूर से देखने आ रहे लोग, डॉक्टर भी हुए हैरान

बिहार के गोपालगंज जिले में हथुआ अनुमंडल अस्पताल में बृहस्पतिवार को एक एलियन बच्चे का जन्म हुआ। डिलीवरी के बाद बच्चे को देखकर स्वास्थ्यकर्मी बुरी तरह से डर गए। जैसे जैसे इसके बारे में लोगों को पता चला, देखने आए लोग भी बुरी तरह से सहम गए।

Update:2021-02-18 19:18 IST
बिहार के गोपालगंज जिले में हथुआ अनुमंडल अस्पताल में बृहस्पतिवार को एक एलियन बच्चे का जन्म हुआ। डिलीवरी के बाद बच्चे को देखकर स्वास्थ्यकर्मी बुरी तरह से डर गए।

पटना। बिहार के गोपालगंज में एक बच्चे के जन्म होने से पूरे महकमें में हड़कंप मच गया। जिले के हथुआ अनुमंडल अस्पताल में बृहस्पतिवार को एक एलियन बच्चे का जन्म हुआ। डिलीवरी के बाद बच्चे को देखकर स्वास्थ्यकर्मी बुरी तरह से डर गए। जैसे जैसे इसके बारे में लोगों को पता चला, देखने आए लोग भी बुरी तरह से सहम गए। पैदा हुए इस बच्चे की आंखें बड़ी-बड़ी और सूर्ख थी। बच्चे के शरीर की खाल सफेद थी। और जन्म के कुछ देर बाद ही बच्चे में दम तोड़ दिया।

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विचित्र बच्चे को जन्म दिया

अस्पताल में पैदा हुए इस बच्चे के बारे में मिली जानकारी के मुताबिक, गोपालगंज के मीरगंज के साहिबा चक्र गांव के चुनचुन यादव की पत्नी ने इस विचित्र बच्चे को जन्म दिया। चुनचुन यादव की गर्भवती पत्नी को बुधवार को हथुआ अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गुरुवार सुबह महिला ने उसकी प्रसूति कराई गई।

ऐसे में प्रसूति के बाद जब डॉक्टरों व स्वास्थ्यकर्मियों ने नवजात बच्चे को देखा तो उनकी आंखें एकदम से फटी-फटी की रह गईं। बच्चे की दोनों आंखें बड़ी-बड़ी व सुर्ख थीं। मुंह में ऊपर के जबड़े में वयस्कों जैसे बड़े—बड़े दांत थे। और शरीर की त्वचा पर सफेद रंग का आवरण था। जिसने भी उसे देखा हैरान रह गया।

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बच्चे की सांसें सिर्फ ढाई घंटे चलीं

फिर इस विचित्र बच्चे की सांसें सिर्फ ढाई घंटे चलीं। इसके बाद उसने दम तोड़ दिया। बताया जा रहा कि प्रसूता की ये दूसरी डिलीवरी थी। दो साल पहले उसने सामान्य बच्चे को जन्म दिया था, लेकिन 7 दिन बाद उसे बच्चे की भी मौत हो गई थी। फिलहाल जच्चा अभी स्वस्थ है। अस्पताल में उसका इलाज जारी है।

ऐसे में डॉक्टरों का कहना है कि माता-पिता के जीन में बदलाव, जिसे जेनेटिक म्यूटेशन कहा जाता है, के कारण ऐसे बच्चों का जन्म होता है। पूर्व में पैदा हुए विचित्र बच्चे भी ज्यादा वक्त तक जी नहीं पाए थे। इनकी अधिकतम सात दिन की आयु मानी गई है।

आगे बताते हुए ऐसे बच्चों के सभी अंग विकसित नहीं होते हैं। इनकी त्वचा पर एक परत होती है, जिसके कारण वह प्राणवायु ग्रहण नहीं कर पाती। इसे हर्लेक्विन इचथिस्योसिस बीमारी कहा जाता है।

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