चूड़ी बेचने वाला गरीब बना 'कविता सृजक', लिख डाली आरके श्रीवास्तव की जीवनी पर कविता
बिहार का चूड़ी बेचने वाला एक गरीब बना 'कविता सृजक' बन गया। उसने आरके श्रीवास्तव की जीवनी पर कविता लिख डाली है।
बिहारः बिहार का चूड़ी बेचने वाला एक गरीब बना 'कविता सृजक' बन गया। उसने आरके श्रीवास्तव की जीवनी पर कविता लिख डाली है।आरके श्रीवास्तव के संघर्षो को कविता के रूप में दर्शाया है। आरके श्रीवास्तव ने बताया की जल्द ही मेरे संघर्षो पर आधारित यह कविता बिहार सहित पूरे देश के लोगो तक पढने और सूनने को मिलेगा।
1 रूपया में पढ़ाकर इंजीनियर बनाता है यह शिक्षक
न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया के इंजीनियरिंग स्टुडेंट्स के बीच एक चर्चित नाम है 1 रूपया में पढ़ाकर इंजीनियर बनाने वाला शिक्षक। बिहार के आरके श्रीवास्तव ने मैथेमैटिक्स गुरू बन सैकड़ों निर्धन परिवार के स्टूडेंट्स के सपने को पंख लगाया है। आरके श्रीवास्तव अब लाखों युवाओं के रोल मॉडल बन गए हैं। अपने कड़ी मेहनत, पक्का इरादा और ऊंची सोच के दम पर ही शीर्ष स्थान को प्राप्त कर लिया है।
करीब एक दशकों से भी अधिक समय से आरके श्रीवास्तव देश के शिखर शिक्षक बने हुए है। देश के टॉप 10 शिक्षकों में भी इन बिहारी शिक्षकों का नाम है। इनके शैक्षणिक कार्यशैली एक दशकों से चर्चा का विषय बना हुआ है।
पूरे देश की दुआएं आरके श्रीवास्तव को मिलती हैं। विदेशों में भी इन बिहारी शिक्षकों के पढाने के तरीकों को पसंद किया जाता हैं। उन सभी देशों में भी इनकी शैक्षणिक कार्यशैली को पसंद किया जाता हैं, जहां पर भारतीय मूल के लोग बसे हुए हैं।
आरके श्रीवास्तव का व्यक्तित्व सरल है। पिता के गुजरने के बाद अपने पढ़ाई के दौरान गरीबी के कारण उच्च शिक्षा में होने वाले परेशानियों को नजदीक से महसूस किया है। ये शिक्षक बताते है की पैसों के अभाव के कारण हमें बड़े बड़े शैक्षणिक संस्थानों में पढने का सौभाग्य नहीं मिला। ये जरूरतमंद स्टूडेंट्स के सपने को पंख दे रहे जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर है, जो आज के समय के कोचिंग की लाखों फी देने में सक्षम नहीं है परन्तु उनका सपना बड़ा है।
कैसे बना बिहार का एक चूड़ी बेचने वाला कविता सृजक-
कवीता सृजक का जीवन वृतांत---
बिहार राज्य के रोहतास जिले के बिक्रमगंज स्थित धनगाई के रहने वाले चतुर्थवर्गीय कर्मी धर्मदेव प्रसाद के प्रथम पुत्र संतोष भंडारी की अध्ययन काल से ही हिन्दी के अक्षर एवं शब्दो से खेलने की रूचि जगी। जिसके बाद अक्षर से शब्द बनाना, शब्द से वाक्य फिर उन्हें तोड़ना और उसे बेहतर तरीके से सजाना उनके अंतर्मन में समाहित हो गया। वर्ग 5 में इन्होनें "अफसोस दुनिया में क्यू आया, जब दुनिया में आया तो मुझपर ही क्यूँ छाया" कविता का सृजन कर विधालय में चर्चा का विषय बन गये।
विषम परिस्थितियां बनी बाधक, फिर भी बने रहे शब्द साधक-
अध्यापन के साथ स्वयं को स्थापित करने की ललक ने बनाया बिहार के लाल संतोष भंडारी को कविता सृजक। अब तक की इनकी रचनाये " कर कदर इस कद्र की हो तुम्हारी कद्र" , "नित्य दिनचर्या में शामिल करे व्यायाम, पाये स्वस्थ शरीर और स्वक्ष्य ज्ञान" , " कहते है कूड़ा के जनक कूड़ा वाला आया है", " चेहरा के साथ चरित्र दिखता आईना समक्ष", " कोई कहता किस्मत का मारा , सम्बोधन शब्द बना बेचारा", " चलो मै ही प्यास बुझाता हूँ", " निरंतर हो पथ संचलन हो, जिसकी लम्बी कतार हो", " अबोध अनियंत्रित गती का तुम अवरोध बनो" इत्यादि बहुचर्चित कविता समाज को नई दिशा देने का काम कर रही है।