Anand Mohan Release Case: पूर्व आईएएस की पत्नी ने पूछा, आनंद मोहन को कैसे रिहा कर सकते हैं नीतीश
Anand Mohan Release Case: 1994 में गोपालगंज के जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या उस समय कर दी गई थी जब वह अपनी सरकारी गाड़ी से गोपालगंज के रास्ते में थे। मुजफ्फरपुर जिले के पास उनकी कार 'गैंगस्टर' छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार में शामिल भीड़ के बीच फंस गई थी। भीड़ ने 35 वर्षीय कृष्णैया को कार से खींच कर निकाल कर पीट पीटकर मार डाला था।
Anand Mohan Release Case: आईएएस अधिकारी जी. कृष्णय्या की हत्या में उम्र कैद की सज़ा काट रहे पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह की रिहाई पर कृष्णय्या की पत्नी को यकीन नहीं आ रहा कि नीतीश कुमार सरकार भला ऐसा कैसे कर सकती है।
आनंद मोहन सिंह को जेल से रिहा करने के आदेश पर कृष्णय्या की पत्नी उमा देवी ने कहा है कि वह सरकार के निर्णय से “हैरान और नाराज” हैं। जो नहीं जानते उनको बता दें कि 1994 में गोपालगंज के जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या उस समय कर दी गई थी जब वह अपनी सरकारी गाड़ी से गोपालगंज के रास्ते में थे। मुजफ्फरपुर जिले के पास उनकी कार 'गैंगस्टर' छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार में शामिल भीड़ के बीच फंस गई थी। भीड़ ने 35 वर्षीय कृष्णैया को कार से खींच कर निकाल कर पीट पीटकर मार डाला था। छोटन शुक्ला लालगंज से जद (यू) के पूर्व विधायक विजय कुमार उर्फ मुन्ना शुक्ला का भाई था। 4 दिसंबर, 1994 को मुजफ्फरपुर में उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
आनन्द मोहन को सज़ा
अक्टूबर 2007 में एक स्थानीय अदालत ने भीड़ को कृष्णय्या की पीट-पीट कर हत्या करने के लिए उकसाने के लिए आनन्द मोहन सिंह को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन बाद में दिसंबर 2008 में पटना उच्च न्यायालय ने इस सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।
बदले गए नियम
आनंद मोहन की रिहाई की उम्मीद तब से की जा रही थी जब बिहार गृह विभाग ने 10 अप्रैल 2023 को बिहार जेल मैनुअल 2012 के नियम 481 (1) (ए) को हटाने के लिए एक अधिसूचना जारी की थी। पहले नियम यह था कि किसी ड्यूटी पर तैनात किसी लोक सेवक की हत्या के दोषी व्यक्ति की समय पूर्व रिहाई नहीं होगी। अब नया बदलाव करके ये नियम हटा दिया गया है। बताया गया है कि राज्य के ब्यूरोक्रेट्स ने आनंद मोहन सिंह की रिहाई को सुविधाजनक बनाने के लिए नियमावली में संशोधन का विरोध किया था। लेकिन इत्तेफाक से विपक्षी दलों द्वारा इस कदम का विरोध बहुत कम हुआ है। आनंद मोहन की अपेक्षित रिहाई का विरोध राज्य के बाहर के दलित नेताओं से कहीं अधिक हुआ है।
बता दें कि कृष्णैया दलित थे। हालांकि, बिहार आईएएस एसोसिएशन, राजनीतिक दलों और राज्य के दलित नेताओं ने भी इस मुद्दे पर कोई सार्वजनिक बयान देने से परहेज किया है। पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने मीडिया से बात करते हुए आनंद मोहन सिंह का बचाव तक कर दिया था। हालांकि कृष्णैया को समर्थन राज्य के बाहर से मिला है। बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने रविवार को जारी एक बयान में नीतीश कुमार सरकार को "दलित विरोधी" कहा। पूर्व आईपीएस अधिकारी और बसपा की तेलंगाना इकाई के प्रमुख आर एस प्रवीण कुमार ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मांग की कि नीतीश कुमार जेल मैनुअल में संशोधन को वापस लें।
कैदियों की रिहाई
बिहार के कानून विभाग ने आनंद मोहन सिंह सहित पूरे बिहार की जेलों से 27 कैदियों की रिहाई का आदेश 24 अप्रैल को जारी किया। इस पर उमा देवी ने कहा, “यह एक अपराधी को जेल से राजनीति में वापस लाने का कदम है। यह घोर अन्याय है और यह सब वोट पाने के लिए किया गया है।”
बिहार के राजनीतिक हलकों में यह माना जाता है कि आनंद मोहन को रिहा करने का कदम नीतीश कुमार सरकार द्वारा राजपूत मतदाताओं को लुभाने का एक प्रयास है, जो कथित तौर पर राज्य में लगभग चार प्रतिशत मतदाता हैं। आनंद मोहन वर्तमान में अपने बेटे, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के विधायक चेतन आनंद की सगाई में शामिल होने के लिए पैरोल पर बाहर हैं। रिहा होने वालों की सूची में जद (यू) विधायक बीमा भारती के पति अवधेश मंडल का नाम भी शामिल है, जो हत्या के दोषी होने के बाद 2008 से जेल में हैं।