Bihar Politics: जन्मदिन पर जदयू जेपी की 'जाति' से जुड़ रहा, भाजपा उनकी 'जमीन' से
Bihar News Today: जय प्रकाश नारायण पर दावेदारी बिहार में सभी प्रमुख पार्टियां करती रही हैं, लेकिन इस बार 11 अक्टूबर को उनके जन्मदिन पर शक्ति-परीक्षण भी है।
Bihar News in Hindi: बस एक कांग्रेस ही है, जो ऐतिहासिक कारणों से सीधे-सीधे लोकनायक जय प्रकाश नारायण (Jai Prakash Narayan), यानी जेपी से खुद को जोड़ने में असहज महसूस कर रही है, वरना बिहार में राजनीति (Bihar Politics) करने वाले सभी प्रमुख दलों के लिए यह स्थायी रूप से भुनाने वाला नाम रहा है। लेकिन, इस बार भुनाने के लिए भी शक्ति परीक्षण हो रहा है और वह भी थोड़ा उल्टा। वजह यह कि कुछ दिनों पहले संपूर्ण क्रांति (Sampoorn Kranti) के अग्रदूत जेपी को कुछ नेताओं ने 'शुरुआती दौर में जातिवादी' करार दिया। इसके बाद और शायद देश की राजनीति में पहली बार जेपी की जाति को लेकर भी राजनीति आगे बढ़ती नजर आ रही है।
जेपी की जयंती 11 अक्टूबर को बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल यूनाईटेड (जदयू) कुछ अलग तरीके से जुड़ रहा है। जदयू के रणनीतिकारों में से एक, पार्टी प्रवक्ता और पूर्व विधान पार्षद रणवीर नंदन ने 'कलम-दावात क्लब' की ओर से जयंती पर कार्यक्रम रखा है और नाम है- "जेपी की कहानी, नीतीश कुमार की जुबानी"।
जयंती की तारीख इस बार इसलिए भी शक्ति परीक्षण का मौका बन रही है, क्योंकि जनादेश से उलट बिहार की सत्ता से बेदखल हुई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस दिन जेपी की जन्मभूमि सिताबदियारा में देश के गृहमंत्री अमित शाह का कार्यक्रम रख दिया है। कौन कार्यक्रम कितना जोरदार होता है, यह बिहार की राजनीति में अक्टूबर आते ही चर्चा का विषय बन गया है।
लालू की नई पीढ़ी लोकनायक से दूर, जदयू करीब
जेपी की जयंती पर भाजपा, जदयू के साथ राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की भागीदारी हमेशा रही है, लेकिन इस बार जिस दिन से जेपी की जाति की बात निकली है तो जदयू और भाजपा सीधे तौर पर एक्टिव है, जबकि राजद ने किनारा कर रखा है। राजद के राष्ट्र्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद खुद को जेपी का सबसे करीबी बताते रहे हैं, लेकिन उनकी नई पीढ़ी ने लोकनायक को तवज्जो कम कर दी है। इस हालत में जेपी को लेकर असल लड़ाई भाजपा-जदयू में ठनी है। जेपी की जाति की आवाज उठने के बाद जदयू में कायस्थ के गिने-चुने नेताओं में से एक डॉ. रणवीर नंदन ने कमान संभाली है। कार्यक्रम में वह राज्य के सभी हिस्सों से कायस्थों को बुलाने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। डॉ. रणवीर नंदन ही मुख्यमंत्री को लगभग हर बार चित्रगुप्त पूजा में भी ले जाते रहे हैं, ताकि सत्ता को इस जाति का साथ मिलता रहे।
पटना विवि के छात्र संघ चुनाव में जदयू को पहली बार कुर्सी दिलाने में भी डॉ. नंदन की अहम भूमिका जातिगत नजरिए से ही रही थी। उन्होंने कायस्थ जाति के भाजपा समर्थित नेता को हराने और जदयू समर्थित प्रत्याशी को जिताने के लिए व्यूह रचना रची थी। खैर, अब जब जेपी की जाति पर बात निकली है तो डॉ. नंदन ने ही कमान संभालते हुए भाजपा की व्यूह रचना तोड़ने और नीतीश कुमार को कायस्थों से जोड़ने का काम शुरू कर दिया है। बिहार में कायस्थों का लगभग एकमुश्त वोट भाजपा के खाते में जाता रहा है और जेपी की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में जदयू ने कायस्थों को ही आपने साथ लाने का मुख्य लक्ष्य रखा है।
सारे समीकरणों के साथ शाह का पूरा फोकस बिहार पर
इधर, गृहमंत्री अमित शाह सितंबर के बाद अब अक्टूबर में भी बिहार आ रहे हैं। कार्यक्रम जेपी की जन्मभूमि पर है, लेकिन वह समेटने की कोशिश हर समीकरणों को कर रहे हैं। सारण-सीवान में अल्पसंख्यकों की अच्छी तादाद है तो कायस्थों का जड़ भी विशेष रूप से सारण-सीवान के साथ पूरे भोजपुरी क्षेत्र में है। जदयू की ओर से कायस्थों को भाजपा से दूर करने की कोशिशों को देखते हुए भाजपा ने अपनी ताकत इस कार्यक्रम में झोंक रखी है। इस कार्यक्रम का एक बड़ा लक्ष्य अल्पसंख्यक भी बताए जा रहे हैं। सीवान के बाहुबली सांसद मो. शहाबुद्दीन के इंतकाल के बाद उनके परिवार वाले जिस तरह से राजद से खफा बताए गए और जिस तरह से दिवंगत सांसद के आधार वोटरों के बीच ऊहापोह की स्थिति है, भाजपा इसे मौके के रूप में देख रही है।
यही कारण है कि अल्पसंख्यक बहुल इलाकों के लिए चल रही योजनाओं को नए सिरे से नए रूप में लाने के बाद भाजपा इन्हें भी साध रही है। अल्पसंख्यक वर्ग से जो लोग कट्टर लालू समर्थक हैं, उन्हें छोड़ ज्यादातर मतदाताओं को भाजपा अपने साथ लाने के लिए प्रयासरत है। इसमें, मुस्लिम महिलाएं और पिछड़े मुसलमानों को भाजपा का साथ मिलने की उम्मीद जदयू वाले भी जता रहे हैं और राजद भी इस आशंका से डरी हुई है।
पिछले महीने गृह मंत्री ने बिहार भाजपा के उन नेताओं को भी सभी धर्मों को साथ लेकर चलने की सीख दी, जो सीमांचल में अल्पसंख्यकों की जनसंख्या बढ़ने की बात पर चिंता जताते हुए उनके पास पहुंचे थे। मतलब, अब भाजपा सारे जाति-धर्म के समीकरणों को एक साथ लेकर चल रही है। ऐसे में वह बिहार में अपने आधार कायस्थ वोटरों से किनारा करने के मूड में तो कतई नहीं है। यह एक बड़ा कारण है कि नीतीश कुमार जब जेपी के नाम पर जातिगत संगठन की ओर से आयोजित कार्यक्रम में जा रहे तो अमित शाह उनकी जन्मभूमि पर सीधे पहुंच रहे हैं।