खुद ढिबरी की रोशनी में की पढ़ाई, अब सैकड़ों छात्रों को बना दिया आईआईटीयन

आरके श्रीवास्तव ने अपनी पढ़ाई हिंदी मीडियम से किया था, कभी स्कूल के दिनों में टाट-पट्टी पर बैठकर पढ़ने वाला लड़का आज उस मुकाम पर है जहां होने का सपना हर कोई देखता है।

Update: 2020-07-27 04:28 GMT

लखनऊ: ''जब बचपन अभावग्रस्त हो, इतनी कि पढ़ाई के लिये शुल्क कम लगे इसलिये निजी संस्थान की जगह सरकारी संस्थान में पढ़ाई करने की मजबूरी रहती थी।

जब अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई की तिलांजलि दे कर मातृ भाषा मे अंतरराष्ट्रीय मानकों से लड़ने को कहा जाता था तब वह मजबूरी और सालती थी।

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जब किताबों के पैसे न हो, और पुरानी आधे कीमत वाले भी खरीदने के लिये सोचनी पड़ती थी तब उनके सपने बेमानी हो जाते थे।

जब बचपन त्रासदी की भेंट चढ़ जाय, और आगे पीछे कोई प्रोत्साहित करने वाला कोई न हो तो जो जैसे हो रहा है, होने देने की मजबूरी पलती थी।

बिजली के अभाव में कैरोसिन तेल की बदबूदार अंगारों के रोशनी में पढ़ने की मजबूरी हो तो खाली पेट और गले की प्यास भी बेमानी होती थी।''

किसी ने क्या खूब कहा कि...

खुलकर सपने देखिए, जब तक आप सपने नहीं देखेंगे वो पूरे कैसे होंगे। सपने देखने का हक हर किसी का है। चाहे वह गरीब हो या अमीर, इंग्लिश मीडियम से हो या फिर हिंदी मीडियम से, आज हम आपको एक ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी बता रहे हैं, जिसे जानने के बाद आपके अंदर भी कुछ कर दिखाने का जज्बा पैदा होगा।

ये स्टोरी है चर्चित मैथेमैटिक्स गुरू फेम बिहार के आरके श्रीवास्तव की, जो सिर्फ 1 रूपया गुरू दक्षिणा लेकर सैकड़ों गरीबों को आईआईटी,एनआईटी, बीसीईसीई सहित देश के प्रतिष्ठित संस्थानो मे दाखिला दिलाकर उनके सपने को पंख लगा चुके है।

अंग्रेजी मीडियम के बच्चों के आगे कमजोर मानते थे

एक वक्त था जब हिंदी मीडियम के बच्चे खुद को अंग्रेजी मीडियम के बच्चों के आगे कमजोर मानते थे, लेकिन अब ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। बस आपको खुद पर भरोसा होना चाहिए। आरके श्रीवास्तव को खुद पर और खुद की मेहनत पर पूरा भरोसा था। मेहनत और संघर्ष के आगे वह कभी कोताही नहीं बरतते थे।

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कई कठिनाईओं का सामना करना पड़ा

आरके श्रीवास्तव ने अपनी पढ़ाई हिंदी मीडियम से किया था, कभी स्कूल के दिनों में टाट-पट्टी पर बैठकर पढ़ने वाला लड़का आज उस मुकाम पर है जहां होने का सपना हर कोई देखता है। हालांकि, आरके श्रीवास्तव को यहां तक पहुंचने में कई कठिनाईओं का सामना करना पड़ा, लेकिन मेहनत के आगे नामुमकिन कुछ भी नहीं।

आज माँ अपने बेटे की उपलब्धियो पर गर्व करती है

बिहार के रोहतास जिले के एक छोटे से गांव बिक्रमगंज में पले-पढ़े आरके श्रीवास्तव स्कूल के दिनों में कभी जमीन पर बैठकर पढ़ाई किया करते थे, बचपन में 5 वर्ष के उम्र में पिताजी पारस नाथ लाल के गुजरने के बाद माँ आरती देवी ने काफी संघर्ष कर पढाया। आरके श्रीवास्तव अपने सफ़लता का श्रेय माँ के संघर्षों को देते है। आज माँ अपने बेटे की उपलब्धियो पर गर्व करती है।

आज वह देश के चर्चित हस्तियाँ में शुमार हैं

देश के टॉप 10 शिक्षको में आरके श्रीवास्तव का नाम आ चूका है। वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्डस में भी दर्ज हो चूका है नाम। उनके शैक्षणिक कार्यशैली को महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद भी कर चुके है सराहना। आरके श्रीवास्तव बताते है की उनके यहाँ जब गांव में लाइट चली जाती थी, तो कुछ वर्षो तक ढिबरी की रोशनी में उसके बाद कई वर्षो तक लालटेन की रोशनी में पढ़ाई करना पड़ा। कभी भी अभावों को पढ़ाई के बीच नहीं आने दिया। हर मुश्किलों का डटकर सामना किया।

स्कूल की पढ़ाई के बाद जब कॉलेज गये, तो खुद को थोड़ा कमजोर समझने लगे, वजह थी अंग्रेजी बोलना। मैं स्कूल के दिनों में सबसे आगे बैठा करता था, और कॉलेज में अंग्रेजी के कारण सबसे पीछे। हालांकि, ये भी कुछ दिनों का था, मैं डरा नहीं बल्कि मेहनत किया और सफ़लता मिलती गयी।

कभी हार नहीं माना

एक वक्त ऐसा आया जब मैं टीवी की बीमारी से ग्रस्त हो गया, मै आईआईटी प्रवेश परीक्षा नही दे पाया उस समय ऐसा लगा जैसे मेरे आईआईटीयन न बनना मेरे सपने टुट गये, डॉक्टर की सलाह से घर आकर 1 वर्ष तक दवा खाया और रेस्ट किया। घर पर काफी बोर होने लगा, इसी दौरान घर बुलाकर अगल बगल के स्टूडेंट्स को निःशुल्क शिक्षा देने लगा। लेकिन इसके बावजूद पढ़ाई करता, मैंने कभी हार नहीं माना, पढ़ाई भी करते रहता। और आज आरके श्रीवास्तव सारी मुश्किलों को पार करके एक ब्रांड बन चुके हैं।

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दर्जनो अवार्ड से अब तक हो चुके हैं सम्मानित

आपको बताते चलें की बिहार के रोहतास जिले के बिक्रमगंज निवासी मैथेमैटिक्स गुरू फेम आरके श्रीवास्तव आज पहचान के मोहताज नहीं। उनके शैक्षणिक कार्यशैली के तहत गणित पढाने के तरीके का कायल है पूरी दुनिया। कबाड़ की जुगाड़ से प्रैक्टिकल कर गणित सिखाना और चुटकुले सुनाकर खेल-खेल में पूरी रात लगातार 12 घंटे गणित पढाना किसी चमत्कार से कम नहीं। बिहारी गुरू आरके श्रीवास्तव का नाम वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्डस लंदन सहित कई रिकॉर्ड्स बुक मे भी दर्ज है। दर्जनो अवार्ड से अब तक हो चुके हैं सम्मानित।

बढती लोकप्रियता ने बढ़ाया बिहार का मान सम्मान

अपने कड़ी मेहनत, उच्ची सोच, पक्का इरादा के बल पर बन चुके हैं लाखो युवायो के रॉल मॉडल। देश के महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी आर के श्रीवास्तव के शैक्षणिक कार्यशैली की प्रशंसा कर चुके है। शैक्षणिक मीटिंग के दौरान मैथेमैटिक्स गुरू के नाम से महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी कर चुके है सम्बोधित।

“जीतने वाले छोड़ते नहीं, और छोड़ने वाले जीतते नहीं”

आरके श्रीवास्तव ने युवाओ को हमेशा बताया कि “जीतने वाले छोड़ते नहीं, और छोड़ने वाले जीतते नहीं” के मार्ग पर हमेशा आगे बढ़े। आपको सफलता पाना है तो कई असफलता के बाद भी अपने लक्ष्य को छोड़े नहीं, उसे पाने के लिये निरंतर परिश्रम करते रहे, आपको एक दिन सफलता जरुर मिलेगी। देश के विभिन्न राज्यो के शैक्षणिक एवं समाजिक कार्यक्रमों में अपने सम्बोधन से बिहार के मान सम्मान को हमेशा आगे बढ़ाया है इस बिहारी गुरू ने।

दर्जनों अवार्ड से सम्मानित हो चुके बिहार के अनमोल रत्न है आर के श्रीवास्तव

शिक्षण कार्य के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में नि:स्वार्थ योगदान वाले ऐसे सारे गुरुओ को पुरा देश सलाम करता है। आपको बताते चले कि बिहार आदिकाल से ही महापुरुषो की भूमि रही है, जिन्होंने हिंदुस्तान सहित पूरे विश्व को मार्ग दिखाया।

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