Beer Companies in India: दामों की फिक्सिंग का गेम खेला बियर कंपनियों ने, पकड़ में आईं तो लगा 870 करोड़ का जुर्माना
Beer Companies in India: बाजार में बियर के दामों में भी फिक्सिंग का खेल जारी...
नई दिल्ली: आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन ये सच है देश की बीयर कंपनियों ने बीयर के दामों की फिक्सिंग का खेल किया है। और इस खेल में नुकसान हुआ उपभोक्ताओं का। तो अब ये जान लें कि फिक्सिंग सिर्फ क्रिकेट मैचों तक सीमित नहीं है। बाजार में चीजों के दामों में भी फिक्सिंग की जाती है। ग्राहक इस खेल को समझ नहीं पाते कि अचानक किसी चीज के दाम बढ़ क्यों जाते हैं। दामों की फिक्सिंग कंपनियों की गिरोहबंदी के जरिये होती होती है। हाल में बीयर के मामले में ऐसा ही हुआ है। लेकिन ये हरकत पकड़ में आ गई और इस पर सख्ती जताते हुए कंपीटिशन कमीशन ऑफ इंडिया ने तीन कंपनियों को प्राइस फिक्सिंग (price fixing) के मामले में दोषी मानते हुए उन पर 870 करोड़ रुपये का जुर्माना ठोंक दिया है।
कंपीटिशन कमीशन ऑफ इंडिया (Competition Commission of India) या सीसीआई ने अपनी जांच में पाया कि यूनाइटेड ब्रुअरीज लिमिटेड (United Breweries Limited), अन्ह्यूसर बुश इनबेव लिमिटेड और कार्ल्सबर्ग इंडिया ने 'बियर कार्टेल' बनाया और दामों को अपने हिसाब से कंट्रोल करने लगे। ये तीनों कंपनियां भारत के 7 अरब डॉलर के बियर बाजार के 88 फीसदी हिस्से को कंट्रोल करती हैं और इसी वजह से बियर मार्केट में इनका दबदबा है। ऐसे में अगर ये साथ मिल जाएं और दाम बढ़ाने का फैसला कर लें तो ये उपभोक्ताओं के लिए बहुत नुकसानदेह हो सकता है।
प्रतिस्पर्धा और दोस्ती साथ साथ
जब बाजार में कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा होती है तो वे आपस में गठजोड़ क्यों कर लेती हैं, ये एक बड़ा सवाल है। इसका जवाब है कि गठजोड़ बना कर काम करने से कभी कभी फायदे भी मिल जाते हैं। दरअसल भारत का शराब मार्केट काफी जटिल है क्योंकि हर राज्य के अपने टैक्स हैं वे अपने हिसाब से शराब के दाम कंट्रोल करते हैं। इसीलिए शराब की बोतलों पर मुहर लगी दिख जाती है कि सिर्फ हरियाणा में बिक्री के लिए या सिर्फ कर्नाटक में बिक्री के लिए आदि। सभी राज्यों में हर साल शराब के दाम सरकार अनुमोदित करती है।
मिसाल के तौर पर कर्नाटक में साल में सिर्फ तीन नियत तारीखों को ही शराब के दाम बदले जा सकते हैं। यूपी में ऐसा साल में एक बार ही होता है। अब समझ लीजिये कि यूनाइटेड ब्रेवरीज ने दाम 5 फीसदी बढ़ाये जबकि कार्ल्सबर्ग ने 15 फीसदी की वृद्धि तय की। ऐसे में कार्ल्सबर्ग के सामने ग्राहक गंवाने का खतरा हो सकता है। लेकिन अगर दोनों कंपनियां आपस में मिल जाएं और एक जैसी बढ़ोतरी कर दें तो दोनों का नुकसान नहीं होगा। और यही हो रहा है।
लेकिन जब ये खेल कुछ ज्यादा ही होने लगता है और कई कंपनियां कार्टेल बना लेती हैं तो सीसीआई मामला पकड़ लेता है और हस्तक्षेप कर देता है। सीसीआई का काम ही ये देखना है कि बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बनी रहे। अमेरिका, यूरोप, सभी जगह ये व्यवस्था बनी हुई है। इसे एन्टीट्रस्ट भी कहा जाता है।
बियर ही नहीं, सीसीआई ने फ़ूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया को प्लास्टिक शीट्स सप्लाई करने वाली 6 कंपनियों को भी कार्टेल बना कर दाम फिक्स करने का दोषी पाया है। ये कंपनियां एफसीआई की नीलामी को ही कंट्रोल करती थीं। सीसीआई ने इन पर जुर्माना तो नहीं लगाया लेकिन इनके नीलामी में शामिल होने पर रोक लगा दी है।