Farmers Protest: चढ़ूनी बनाम टिकैत, राजनीति के सवाल पर बंटे आंदोलित किसान

Farmers Protest: संयुक्त किसान मोर्चा ने गुरनाम सिंह चढ़ूनी को उनकी राजनीतिक बयानबाजी के लिए सात दिन के लिए मोर्चा से सस्पेंड कर दिया गया है।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Shreya
Update:2021-07-15 22:27 IST

राकेश टिकैत-गुरनाम सिंह चढ़ूनी (फाइल फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Farmers Protest: नए कृषि कानूनों (New Farm Laws) के विरोध में पिछले साल 26 नवंबर से चल रहा किसान आंदोलन (Kisan andolan) कोरोना काल में भी नहीं रुका कई राज्यों के चुनाव के दौरान भी जारी रहा। चुनावों के दौरान किसानों द्वारा भाजपा को नुकसान पहुंचाने के दावे भी किये गए लेकिन इन सबके बावजूद किसान एक राजनीतिक ताकत नहीं बन सके।

दावे बेशक हुए कि किसान आंदोलन से राजनीतिक दलों खासकर छोटे राजनीतिक दलों को फायदा हुआ लेकिन क्षेत्रीय राजनीति की प्रधानता और किसानों की अलग अलग राज्यों में समस्याओं का स्वरूप अलग होने से वह एक वोट बैंक नहीं बन पाए। हालांकि इस दिशा में कोशिशें जारी रहीं। अब जबकि 22 जुलाई से किसान नेताओं ने अपनी मांग को लेकर हर दिन संसद भवन (Parliament) की ओर मार्च का एलान किया है। किसान आंदोलन को राजनीतिक शक्ल देने के सवाल पर मतभेद उभरने की बात सामने आ रही है।

गुरनाम सिंह चढ़ूनी को किया गया सस्पेंड

कहा यह जा रहा है कि संयुक्त किसान मोर्चा (Sanyukt Kisan Morcha) ने भारतीय किसान यूनियन (Bharatiya Kisan Union) हरियाणा के नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी (Gurnam Singh Chaduni) को उनकी राजनीतिक बयानबाजी के लिए सात दिन के लिए मोर्चा से सस्पेंड कर दिया गया है। यह फैसला आंदोलन की जनरल बाडी मीटिंग में हुआ है। इससे पहले भी चढ़ूनी कई बार विवादित बयान दे चुके हैं जिसके बाद किसान नेताओं के लिए जवाब देना मुश्किल हो जाता है।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

लेकिन असली मामला ये है कि यह मिशन उत्तर प्रदेश बनाम मिशन पंजाब (Uttar Pradesh vs Punjab) की लड़ाई है। जिसमें राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) मिशन उत्तर प्रदेश को लीड कर रहे हैं और चढूनी पंजाब हरियाणा के किसानों को लीड करते हुए मिशन पंजाब को प्रमुखता देने की लड़ाई छेड़े हुए हैं।

आंदोलन को संचालित करने में चढ़ूनी का अहम योगदान

गुरनाम सिंह चढ़ूनी भारतीय किसान यूनियन के नेता हैं। और कहा जाता है कि किसान आंदोलन को संचालित करने में उनका अहम योगदान है। इनके ऊपर सरकार से बात करने की जिम्मेदारी भी रही है। 10 सितंबर को पीपली में किसानों पर हुए लाठीचार्ज में इनका नाम प्रमुखता से सामने आया था। लेकिन गुरनाम सिंह की महत्वाकांक्षा राजनीतिक हैसियत बनाने की है। उन्होंने पिछले साल हरियाणा से निर्दलीय चुनाव भी लड़ा था और हार गए थे। इनकी पत्नी भी राजनीति से जुड़ी हैं उन्होंने 2019 में आम आदमी पार्टी (AAP) से चुनाव लड़ा था और हार का सामना किया था।

पिछले साल सितंबर में ही हरियाणा भवन में गुरनाम सिंह चढ़ूनी और दूसरे किसान नेताओं के बीच बड़ा विवाद हुआ था, भारतीय किसान यूनियन (BKU) चढ़ूनी गुट और दूसरे किसान संगठन तब आमने-सामने आ गए थे, दूसरे किसान संगठनों ने गुरनाम सिंह पर राजनीति करने के आरोप लगाए थे। किसान संगठनों ने कहा था, गुरनाम सिंह खुद आढती हैं और वह कांग्रेस के साथ मिले हुए हैं।

किसान संगठनों में दूरी और मतभेद 

समझने की बात ये है कि लंबे खींचते आंदोलन के बीच किसान संगठनों में अब दूरी और मतभेद सामने आने शुरू हो गए हैं। भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) हरियाणा के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने संयुक्त किसान मोर्चे से अलग भारतीय किसान मजदूर फेडरेशन बनाकर पहले ही यह साफ संकेत दे दिया कि वह संयुक्त किसान मोर्चे संगठन के साथ तो रहेंगे, लेकिन अपनी अलग राह पर चलते रहेंगे। चढ़ूनी के अलग फेडरेशन बनाने पर किसान नेता मुखर होकर तो कुछ नहीं बोल रहे लेकिन उनका मौन किसान आंदोलन को खेमों में बांटने की ओर ले जा रहा है।

कुछ नेता ऐसे हैं जो खुलकर बोल रहे हैं। मध्यप्रदेश से एक वरिष्ठ किसान नेता ने साफ कहा कि गुरनाम सिंह चढ़ूनी नए संगठन भारतीय किसान मजदूर फेडरेशन (Bharatiya Kisan Mazdoor Federation)) को लेकर कुछ भी दावा करें लेकिन इस नए संगठन के बनने से किसान आंदोलन ओर कमजोर पड़ेगा।

राकेश टिकैत (फाइल फोटो साभार- सोशल मीडिया)

राकेश टिकैत पर साधा था निशाना

अब तो संयुक्त किसान मोर्चा में भी अलगाव की बात उठने लगी है। हाल में ही चढ़ूनी ने सोशल मीडिया के माध्यम से उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में किसान आंदोलन नहीं चलने की बात कही थी। इस दौरान उन्होंने नेताओं के साथ साथ संगठन पर भी सवाल खड़े किए थे। उनका कहना था कि हरियाणा की तरह उत्तर प्रदेश में सरकार और नेताओं के कार्यक्रमों का विरोध क्यों नहीं होता है। उनका सीधा इशारा भाकियू नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) पर था।

लेकिन बात तब कुछ ज्यादा ही बढ़ गई जब पिछले सप्ताह किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने बयान दे दिया कि पंजाब में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में किसान नेताओं को चुनाव लड़ना चाहिए। "पिछले साढ़े सात महीने से चल रहे किसान आंदोलन में क्या विपक्ष का एक भी बयान आया कि हमारा राज आएगा, तो हम नए कृषि क़ानूनों को ख़त्म कर देंगें। हम एमएसपी का नया क़ानून बना देंगे? जब बीजेपी हार जाएगी, तो किसानों की बात मानी जाएगी इस बात की क्या गारंटी है? मैं कहना चाहता हूँ कि हमें मिशन उत्तर प्रदेश नहीं, बल्कि मिशन पंजाब चलाना चाहिए।"

कहा यही जा रहा है कि यही बयान चढ़ूनी के निलंबन की वजह बना और लेकिन असलियत में लड़ाई मिशन उत्तर प्रदेश बनाम मिशन पंजाब की है। देखना होगा कि इस पर आंदोलन बंटेगा या एका बना रहेगा।

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