Malaria Vaccine: आ गई दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन
Malaria Vaccine :स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन को मंजूरी दे दी है।
Malaria Vaccine : भारत जैसे तमाम देशों के लिए एक बड़ी राहत की खबर है। वह यह कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) ने दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन को मंजूरी दे दी है। हालांकि यह वैक्सीन सिर्फ 30 प्रतिशत प्रभावशाली है। इसकी चार खुराक लेनी पड़ेंगी। लेकिन तब भी दशकों की कवायद के बाद कुछ सफलता तो हासिल हुई ही है।
इस वैक्सीन के परीक्षण अफ्रीका के कई देशों में हुए हैं, जहां हर साल हजारों बच्चे इस बीमारी की भेंट चढ़ जाते हैं। इस वैक्सीन से हर साल दसियों हजार जानें बचाए जाने की उम्मीद की जा रही है। इस वैक्सीन को ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन कंपनी (Glaxo SmithKline Company) ने बनाया है।
इस ऐतिहासिक वैक्सीन को मॉस्कीरिक्स नाम दिया गया है। इसे 1987 में ब्रिटिश दवा कंपनी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन ने बनाया था, तबसे इसके ट्रायल चल रहे थे। इसके बारे में डबल्यूएचओ महानिदेशक तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने कहा, "इस वैक्सीन को अफ्रीका में अफ्रीकी वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। हमें उन पर गर्व है।"
उन्होंने बताया कि इस वैक्सीन का इस्तेमाल मलेरिया रोकने के लिए उपलब्ध मौजूदा उपायों के साथ किया जाएगा ताकि हजारों बच्चों की जान बचाई जा सकें। मॉस्कीरिक्स में गंभीर मलेरिया को रोकने की क्षमता सिर्फ 30 प्रतिशत ही है। इसके लिए वैक्सीन की चार खुराकें लेनी होंगी। दवा से मिलने वाली सुरक्षा कुछ ही महीनों में खत्म हो जाती है। हालांकि इसके साइड इफेक्ट बहुत कम हैं। इनमें बुखार और ऐंठन शामिल है।
मलेरिया एक जानलेवा बीमारी है, जो मादा एनाफेलीज मच्छर के काटने से होती है। अब तक इसके लिए मच्छर मारने वाला स्प्रे या मच्छरदानी लगाने जैसे उपाय किए जाते रहे हैं। सिर्फ अफ्रीका में हर साल 20 करोड़ लोगों को मलेरिया होता है, जिनमें से चार लाख से ज्यादा लोगों की जान चली जाती है। इनमें से अधिकतर पांच साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं। 2019 में जितने लोग अफ्रीका में कोविड से मरे हैं, उससे ज्यादा लोग मलेरिया से मरे हैं। दवा कंपनी जीएसके टीकाकरण अभियान के लिए अतिरिक्त धन जुटाने की कोशिश कर रही है। कंपनी का मकसद हर साल डेढ़ करोड़ खुराक बनाना है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी भी मलेरिया की एक वैक्सीन बना रही है, जिसे 77 प्रतिशत तक प्रभावशाली बताया गया है। इसका 450 बच्चों पर एक साल लंबा परीक्षण हो चुका है।
सर रोनाल्ड रॉस
मलेरिया पर सबसे प्रामाणिक रिसर्च रोनाल्ड रॉसने की थी।उन्होंने सिकंदराबाद में काम करते हुए मलेरिया परजीवी प्लास्मोडियम के जीवन चक्र का पता लगाया था। इसके लिए उन्हें 1902 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। बाद में भारतीय चिकित्सा सेवा से त्यागपत्र देकर रॉस ने नवस्थापित लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन में कार्य किया तथा कई देशों मे मलेरिया नियन्त्रण कार्यों मे योगदान दिया। रोनाल्ड रॉस का जन्म 13 मई, 1857 को अल्मोड़ा में एक ब्रिटिश अधिकारी के परिवार में हुआ था।