BJP- RSS: गिले-शिकवे भुलाकर आगे बढ़ी बीजेपी-आरएसएस की जोड़ी, नागपुर दौरे के क्या हैं मायने?
BJP- RSS: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 11 साल के कार्यकाल में पहली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय, नागपुर का दौरा किया।;
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BJP- RSS: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 11 साल के कार्यकाल में पहली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुख्यालय, नागपुर का दौरा किया। यह दौरा सिर्फ एक औपचारिक मुलाकात नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और आरएसएस के संबंधों में आई दूरियों को खत्म करने और 2029 तक की राजनीतिक रणनीति को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। लोकसभा चुनावों में हिंदी पट्टी में नुकसान उठाने के बाद बीजेपी अब अपने वैचारिक स्तंभ आरएसएस के साथ मजबूती से आगे बढ़ने का संकेत दे रही है।
मोदी ने की आरएसएस की तारीफ
पीएम मोदी ने आरएसएस मुख्यालय पहुंचकर संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के स्मारक पर श्रद्धांजलि दी। इस दौरान उन्होंने संघ की तारीफ करते हुए कहा कि यह केवल एक संगठन नहीं, बल्कि राजनीति की आत्मा है। मोदी ने कहा कि आरएसएस एक अमर वटवृक्ष की तरह है, जिसने आधुनिकता को भी आत्मसात कर लिया है और अपने मूल विचारों को भी बरकरार रखा है। उन्होंने संघ के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि यह संगठन केवल राजनीतिक विचारधारा तक सीमित नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है।
आरएसएस से जुड़कर शुरू हुआ था मोदी का राजनीतिक सफर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राजनीतिक सफर आरएसएस के प्रचारक के रूप में 1972 में शुरू हुआ था। संघ के अनुशासन और वैचारिक दृढ़ता ने ही उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित किया। उनकी सक्रियता और संगठन कौशल के कारण 2001 में उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया, जिसके बाद उन्होंने बीजेपी की राजनीति को नए मुकाम तक पहुंचाया। 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने, तब भी उन्होंने आरएसएस को अपनी सफलता का आधार माना था।
बीजेपी और आरएसएस के बीच दरार की खबरें
2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान यह चर्चा जोरों पर थी कि बीजेपी और आरएसएस के रिश्ते अब पहले जैसे नहीं रहे। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यहां तक कह दिया था कि पार्टी अब आत्मनिर्भर हो चुकी है। वहीं, जब हिंदी बेल्ट में बीजेपी को अपेक्षा से कम सीटें मिलीं, तो आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कई मंचों से अप्रत्यक्ष रूप से नसीहतें भी दीं। इससे यह स्पष्ट होने लगा था कि बीजेपी और संघ के बीच कहीं न कहीं मतभेद उभर रहे हैं।
लेकिन चुनावी झटके के बाद बीजेपी ने फिर से आरएसएस की अहमियत को पहचाना। इसका असर हरियाणा और महाराष्ट्र के आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियों में साफ देखा जा सकता है। बीजेपी के रणनीतिकारों ने महसूस किया कि आरएसएस का समर्थन चुनावी सफलता के लिए अभी भी बेहद जरूरी है। हालांकि, संघ के वरिष्ठ नेता एचवी शेषाद्री ने इस पूरे विवाद को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि यह सिर्फ अफवाहें हैं, जिन्हें वे लोग फैला रहे हैं जो न तो बीजेपी को समझते हैं और न ही आरएसएस को।
बीजेपी और आरएसएस फिर साथ-साथ
पीएम मोदी के इस दौरे को केवल 2024 तक सीमित नहीं देखा जा सकता। यह 2029 के लोकसभा चुनावों की नींव रखने का भी संकेत है। बीजेपी और आरएसएस अब अपने संबंधों को नए स्तर पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। आने वाले समय में दो बड़े कार्यक्रम होने जा रहे हैं—बेंगलुरु में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक और आरएसएस का शताब्दी वर्ष समारोह। बेंगलुरु में होने वाली बैठक में बीजेपी अपने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का ऐलान कर सकती है, जिससे संगठन में नए समीकरण बन सकते हैं।
आरएसएस के शताब्दी वर्ष समारोह को लेकर भी बीजेपी सतर्क है और इस आयोजन का फायदा उठाकर पार्टी अपने आधार वोट बैंक को मजबूत करना चाहती है। संघ की विचारधारा से जुड़े लोगों को एक बार फिर बीजेपी के पक्ष में गोलबंद करने की योजना पर काम किया जा रहा है।
मोदी-आरएसएस की एकजुटता का राजनीतिक संदेश
पीएम मोदी का नागपुर दौरा सिर्फ एक सामान्य यात्रा नहीं थी, बल्कि यह दिखाने की कोशिश थी कि बीजेपी और आरएसएस के बीच कोई मतभेद नहीं हैं। इससे पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को भी स्पष्ट संदेश मिला कि आने वाले वर्षों में दोनों संगठन मिलकर ही आगे बढ़ेंगे।
कुल मिलाकर, इस मुलाकात को सिर्फ एक औपचारिकता मानना भूल होगी। यह एक स्पष्ट राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जिसमें बीजेपी और आरएसएस 2029 के चुनावों तक एक मजबूत गठजोड़ के रूप में कार्य करेंगे। बीजेपी को भी समझ आ गया है कि सत्ता की राह संघ के समर्थन के बिना उतनी आसान नहीं होगी, जितनी पहले थी। इसलिए, आने वाले दिनों में हम दोनों संगठनों के बीच और भी अधिक सामंजस्य और तालमेल देखने को मिल सकता है।