Mansukh L. Mandaviya: मनसुख मंडाविया कौन हैं, कैबिनेट में कैसे मिली हर्षवर्धन की जगह, नए स्वास्थ्य मंत्री की चुनौतियां

Mansukh L. Mandaviya Biography in Hindi : मनसुख मंडाविया के नाम एक बड़ी उपलब्धि है। साल 2002 ने मनसुख 28 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के विधायक बने थे।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shivani
Update: 2021-07-08 09:39 GMT

मनसुख मंडाविया फोटो सोशल मीडिया 

Mansukh L. Mandaviya Biography in Hindi  : मोदी कैबिनेट (Modi Cabinet 2021) से कई दिग्गज मंत्री एक झटके में बाहर कर दिए गए। इनमें स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन (Former Union Health Minister Harshwardhan) भी शामिल हैं। कोरोना महामारी के मैनेजमेंट में हर्षवर्धन बुरी तरह फेल साबित हुए थे सो उनका जाना आश्चर्य की बात नहीं है। उनको बाहर करके प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना महामारी से निपटने से सम्बंधित दो बड़े सन्देश दिए हैं - पहला तो ये कि सरकार ने कोरोना की दूसरी लहर से निपटने में अपनी विफलता को स्वीकार किया है। दूसरा सन्देश देश को ये दिया है कि अब हेल्थ मैनेजमेंट की दिशा में सही काम किया जा रहा है।

डॉ हर्षवर्धन एक सफल मंत्री साबित नहीं हो पाए सो उनका जाना कोई बहुत हैरत की बात नहीं है। मोदी के पहले कार्यकाल में वो 7 महीने तक स्वास्थ्य मंत्री रहे थे और उनको हटा कर जेपी नड्डा को कमान सौंपी गयी थी। यानी हर्षवर्धन को दो बार बाहर का दरवाजा दिखाया गया है। कोरोना मैनेजमेंट के अलावा रामदेव की कोरोना किट और एलोपैथी के बारे में बयानों को लेकर भी हर्षवर्धन निशाने पर रहे।इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने खुल कर उनकी लानत-मलामत की।

गैर जिम्मेदाराना बयानबाजी

कोरोना की पहली लहर जब काफी धीमी पड़ गयी थी तो मार्च में डॉ हर्षवर्धन ने भारत में महामारी ख़त्म हो जाने की घोषणा कर दी थी। ये बहुत गैर जिम्मेदाराना बयान था, जो चंद दिनों में साबित भी हो गया। उनके बयान के कुछ ही दिनों बाद कोरोना का विकराल स्वरूप सामने आ गया। अप्रैल में महामारी का ऐसा प्रकोप देखा गया जो अभूतपूर्व था। ऑक्सीजन की कमी, दवाओं की कालाबाजारी, अस्पतालों की दुर्दशा – ये सब ऐसी चीजें थीं जिनसे बतौर स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन का सीधा ताल्लुक और जवाबदेही थी। हर्षवर्धन खुद दिल्ली में चांदनी चौक से संसद हैं और दिल्ली में ही कोरोना की दूसरी लहर में आम जनता और पार्टी नेता-कार्यकर्ता, सब उनसे बेहद नाराज रहे।

पीएमओ को संभालना पड़ा

कोरोना की दूसरी लहर में दिन ब दिन बिगड़ती स्थिति को संभालने के लिए पीएमओ को सभी काम छोड़ हस्तक्षेप बढ़ाना पड़ा। जब स्थिति हाथ से बाहर जाने लगी तो प्रधानमंत्री कार्यालय, नीति आयोग के टॉप अधिकारियों और कोरोना सम्बन्धी अधिकारप्राप्त ग्रुप्स को कमान अपने हाथ में लेनी पड़ी। आज स्थिति यह है कि कोरोना सम्बन्धी सभी एम्पॉवर्ड ग्रुप में पीएमओ के उच्च अधिकारी भी शामिल हैं।


बैठकों से भी बाहर किये गए

मार्च के महीने में डॉ हर्षवर्धन पूरी तरह दरकिनार हो चुके थे और महत्वपूर्ण बैठकों में उनकी मौजूदगी ही नहीं रही थी. मिसाल के तौर पर 17 मार्च को प्रधानमंत्री ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए मुख्यमन्त्रियों के साथ बैठक की. बाद में पीएमओ से को बयान जारी हुआ उसमें कहा गया था कि बैठक में गृह मंत्री ने उन जिलों के बारे में बताया जहाँ कोरोना तेजी से फ़ैल रहा था और जिनपर मुख्यमंत्रियों को फोकस करना था. इस बैठक में स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से सिर्फ केन्द्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कोरोना मामलों पर एक प्रेजेंटेशन दिया. डॉ हर्षवर्धन का कोई जिक्र नहीं किया गया.

फिर 8 अप्रैल को प्रधानमंत्री ने फिर मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की और इसमें भी स्वास्थ्य मंत्री की बजाये स्वास्थ्य सचिव ने कोरोना की स्थिति पर प्रेजेंटेशन दिया. 23 अप्रैल को प्रधानमंत्री ने उन 11 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की जहाँ कोरोना बेकाबू हो रहा था. इस बैठक में नीति योग के सदस्य डॉ वीके पॉल ने प्रेजेंटेशन दिया.

अप्रैल में प्रधानमंत्री ने कोरोना की स्थिति को लेकर कई बैठकें कीं लेकिन सबमें डॉ हर्षवर्धन नदारद रहे. महामारी की विकराल स्थिति में देश के स्वास्थ्य मंत्री की गैरमौजूदगी बड़े मायने रखती थी. ये प्रधानमंत्री की नाराजगी का साफ़ संकेत था.

राजनीतिक बयानबाजी

दूसरी तरफ डॉ हर्षवर्धन लगातार बयानबाजी करके सरकार का बचाव कर रहे थे कि किस तरह कोरोना से निपटने में बढ़िया काम किया जा रहा है. जिन राज्यों में गैर भाजपा सरकार है, डॉ हर्षवर्धन उन्हीं पर हमलावर बने हुए थे और सीख देते जा रहे थे. जब कई राज्यों ने मांग की कि 18 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों के लिए वैक्सीनेशन खोल दिया जाए तो डॉ हर्षवर्धन ने हद ही कर दी और कोरोना से बुरी तरह घिरे राज्यों को लताड़ते हुए कहा कि ऐसे राज्य अपनी विफलताओं पर पर्दा डालने और जनता के बीच पैनिक फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।


19 अप्रैल को डॉ हर्षवर्धन ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक सख्त चिट्ठी लिख कर उन्हें व कांग्रेस शासित राज्यों को 'झूठ फैलाने', 'वैक्सीन के प्रति लोगों को डराने' और 'देशवासियों की जान के साथ खिलवाड़ करने' का आरोप लगा डाला. हर्षवर्धन ने लिखा कि – कांग्रेस शासित कुछ राज्यों ने कोरोना की दूसरी लहर फैलाने में सबसे बड़ा योगदान किया है.

महामारी से लड़ने के लिए सरकार ने करीब एक दर्जन से अधिक मंत्रालयों का एक समूह बनाया था जिसकी अध्यक्षता डॉ. हर्षवर्धन कर रहे थे. इस समूह की 29 बार बैठक पिछले डेढ़ साल में हो चुकी है लेकिन इस साल फरवरी और मार्च में मंत्री समूह की कोई बैठक ही नहीं हुई. ये समय वह था जब वायरस के म्यूटेशन होते चले गए और कोविड सतर्कता नियमों पर ध्यान न रखते हुए देश एक बड़े संकट में आकर खड़ा हो गया।

मनसुख मंडाविया का जीवन परिचय (Mansukh Mandaviya Biography In Hindi)

प्रधानमंत्री मोदी ने अब मनसुख मंडाविया को देश का नया स्वास्थ्य मंत्री बनाया है। अब जानते हैं कि मनसुख मंडाविया कौन हैं (Mansukh Mandaviya Kaun Hain), मनसुख मंडाविया का जन्म कहां हुआ (Mansukh Mandaviya Birth Place), मनसुख मंडाविया की शिक्षा (Mansukh Mandaviya Education )

मनसुख मंडाविया का जन्म गुजरात के सौराष्ट्र में भावनगर जिले के पलिताना तालुका के एक छोटे से गांव हनोल में हुआ था। मंडाविया एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। कहा जाता हैं उन्हे जानवरों से काफी लगाव है। इसी जानवर प्रेम ने मंडाविया को गुजरात में पशु चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया। हालांकि बाद में उन्होंने राजनीति विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन किया और राजनीति में आकर अपने नाम एक बड़ा रिकॉर्ड बनाया।


मनसुख मंडाविया का राजनीतिक करियर (Mansukh Mandaviya Political Career)

मनसुख मंडाविया के नाम एक बड़ी उपलब्धि है। साल 2002 ने मनसुख 28 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के विधायक बने थे। इसके बाद गुजरात में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते मनसुख साल 2011 में गुजरात कृषि उद्योग निगम के अध्यक्ष बने। मनसुख दो बार राजयसभा भी पहुंचे। साल 2012 में राजयसभा सांसद बनने के बाद साल 2018 में फिर उन्हें राज्यसभा भेजा गया। इस बीच 2016 में मनसुख मंडाविया केंद्रीय मंत्रिपरिषद में राज्य मंत्री के तौर पर शामिल हुए थे।

वहीं स्वास्थ्य मंत्री का पद मिलने से पहले बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग राज्य मंत्री का पद भार संभाला चुके हैं, साथ ही रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री का भी चार्ज संभाला। 

नए स्वास्थ्य मंत्री के सामने हैं बड़ी चुनौतियाँ

कोरोना महामारी का प्रकोप कुछ कम हुआ है लेकिन तीसरी लहर की आहट भी है। ऐसे में मनसुख मंडाविया के सामने कई चुनौतियाँ हैं जिनमें सबसे बड़ी है देश के सरकारी हेल्थ सिस्टम में लोगों का भरोसा लौटाने की। कोरोना महामारी ने लोगों का सरकारी हेल्थ सिस्टम में भरोसा ख़त्म कर दिया है, इसे ठीक करना बहुत बड़ी चुनौती है। सरकार ने पिछले डेढ़ साल में सरकारी हेल्थ सेक्टर के बारे में जितनी भी घोषणाएं की हैं, उनको लागू करना होगा।

दूसरी चुनौती है कोरोना वैक्सीनेशन की। ज्यादा से ज्यादा लोगों को कम से कम समय में वैक्सीन की डोज़ लग जाए ये बहुत व्यापक काम है। साथ ही बहुत से लोगों में वैक्सीन के प्रति आशंका है और वे इसे लगवाने में हिचकिचा रहे हैं। ऐसे लोगों को समझाना, जागरूक करना और उनको वैक्सीन लगवाने का भी बहुत बड़ा टास्क पूरा करना होगा।

मनसुख मंडाविया के हवाले एक बुरी तरह चरमराया हुआ हेल्थ सिस्टम है, उससे निपटना उनकी सबसे बड़ी परीक्षा होगी. मंडाविया गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र से आते हैं और मोदी सरकार में 2016 से महत्वपूर्ण भूमिका में रहे हैं।

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