Satya Pal Malik: तो क्या सत्यपाल मलिक सक्रिय राजनीति में कूदने के लिए उचित मौके की तलाश में हैं...

Satya Pal Malik Targeted Modi Government: सरकार पर लगातार हमलों से मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने अपना राज्यपाल पद ताक पर रख दिया है।

Report :  Sushil Kumar
Published By :  Shreya
Update:2021-11-08 14:00 IST

राज्यपाल सत्यपाल मलिक (फोटो- सोशल मीडिया)

Satya Pal Malik Targeted Modi Government: मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल (Satya Pal Malik) द्वारा कल जयपुर में एक कार्यक्रम में किसान आंदोलन (Kisan Andolan) का हल नहीं निकलने पर एक बार फिर केंद्र सरकार (Modi Government) और बड़े नेताओं पर तंज कसा गया है। सरकार पर लगातार उनके हमलों से यह तो साफ है कि उन्होंने राज्यपाल पद (Governor Post) को ताक पर रख दिया है।

जैसा कि मलिक ने कहा भी है कि, मैं मां के पेट से गवर्नर पैदा नहीं हुआ। मेरे पास जो है, उसे छोड़ने के लिए तैयार हूं। मैं यह नहीं देख सकता कि किसानों के साथ जुल्म हो रहा हो, उन्हें डराया जा रहा हो। हम चुपचाप पदों पर बैठे रहें, यह नहीं हो सकता। मुझे दिल्ली के दो-तीन बड़े नेताओं ने गवर्नर बनाया है। मैं उनकी इच्छा के खिलाफ जाकर किसानों पर बयान दे रहा हूं। जिस दिन मुझे गवर्नर बनाने वाले वे नेता कह देंगे, उस दिन गवर्नर का पद छोड़ने में एक मिनट नहीं लगाऊंगा। 

सक्रिय राजनीति में फिर से कूदेंगे सत्यपाल मलिक

उनके इस बयान से जाहिर है कि केंद्र सरकार और बड़े नेताओं पर सत्यपाल मलिक के शब्दरुपी हमले थमने वाले नहीं है। ऐसे में कयास लगाये जा रहे हैं कि सत्तर के दशक से ही राजनीति में सक्रिय रहे सत्यपाल मलिक देर-सवेर सक्रिय राजनीति में फिर से कूदेंगे। यह भी तय है कि सक्रिय राजनीति की दोबारा से शुरुआत भाजपा से नही होने वाली है। क्योंकि सत्यपाल मलिक उम्र के जिस पड़ांव पर है ऐसे में उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि राज्यपाल का टर्म पूरा होने अथवा राज्यपाल पद से बर्खास्त होने के बाद पार्टी उन्हें संगठन अथवा सरकार में कोई नयी जिम्मेदारी ना देकर मार्गदर्शक मंडल में डाल देगी। जो कि सत्यपाल मलिक नही चाहते हैं।

दरअसल, जैसा कि पढ़ाई के दिनों में छात्रावास में सत्यपाल मलिक के रूम पार्टनर रहे पीजी कॉलेज नानकचंद, मेरठ के अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉक्टर नरेंद्र कुमार पुनिया कहते हैं, "सत्यपाल मलिक को खरी-खरी कहने की आदत है।" वह कहते हैं,"सत्यपाल मलिक शुद्ध राजनीतिज्ञ हैं और जो बात उनके दिल में आती है, वह कह देते हैं।"

सत्यपाल मलिक के कांग्रेस के समय के पुराने सहयोगी चौधरी यशपाल सिंह कहते हैं, "केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन का समर्थन करना सत्यपाल मलिक जैसे नेताओं के लिए कोई अचरज की बात नही है। ऐसा करके उन्होंने धारा के विपरीत चलने की अपनी पुरानी छवि दोहराई है।" चौधरी यशपाल सिंह का यह भी कहना है कि सत्यपाल मलिक उन नेताओं में हैं जो कि सक्रिय राजनीति किये बगैर एक दिन भी नही रह सकते हैं। 

भाजपा नेतृत्व नहीं दे रहा उचित अवसर

सच यह भी है कि सत्यपाल मलिक अच्छी तरह से जानते हैं कि उनको फिर से कहीं राज्यपाल नहीं बनाया जाना है। या इस सरकार में कोई पद नहीं मिलने वाला है। उनकी नाराजगी भी होगी कि उनको बिहार का राज्यपाल बनाया गया। वहां से तबादला करके जम्मू कश्मीर भेजा गया और फिर वहां से हटा कर मेघालय जैसे छोटे से राज्य का राज्यपाल बना दिया गया। ऐसे में सत्यपाल मलिक को सक्रिय राजनीति में कूदने के लिए उचित अवसर की तलाश है, जो कि भाजपा नेतृत्व उन्हें दे नहीं रहा है। उचित अवसर मतलब उन्हें राज्यपाल पद से बर्खास्त कर दिया जाए,जिससे कि वें किसानों के बीच शहीद बनकर जाएं। एक ऐसे नेता के रुप में जिसने किसानों के लिए सरकारी कुर्सी को लात मार दी।

इस मामले में भाजपा के स्थानीय एक वरिष्ठ नेता ने दबे शब्दों कहा कि उनको (सत्यपाल मलिक) को सक्रिय राजनीति में आना है। ऐसे में यह सवाल तो राज्यपाल पद छोड़ें और राजनीति में कूदें। वे राज्यपाल पद से इस्तीफा भी नहीं दे रहे हैं और शहीद भी बन रहे हैं। 

सत्यपाल मलिक विकिपीडिया (Satya Pal Malik Wikipedia)

बता दें कि सत्यपाल मलिक का जन्म बागपत के हिसावदा गांव में हुआ था. उनके पिता बुध सिंह एक किसान थे। उन्होंने मेरठ कॉलेज से बीएससी और कानून की पढ़ाई की यहीं से एक समाजवादी छात्र नेता के तौर पर राम मनोहर लोहिया से प्रेरणा लेकर उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी. मलिक पहली बार बागपत सीट पर चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल के भारतीय क्रांति दल के प्रत्याशी के तौर पर 1974 में चुनाव लड़े और जीतकर विधायक बने. इसके बाद 1980 और 1986 में लगातार दो बार राज्यसभा सदस्य चुने गए. इस इस दौरान वो कांग्रेस में भी रहे, लेकिन बाद में उन्होंने जनता दल का दामन थाम लिया।

जनता दल से सत्यपाल मलिक 1989 से 1991 तक अलीगढ़ सीट से सांसद रहे। इसके बाद सपा का दामन थाम लिया और 1996 में हार का सामना करना पड़ा। साल 2004 में भाजपा में शामिल हो गए और लोकसभा के लिए चुनाव लड़ा लेकिन इसमें उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह से हार का सामना करना पड़ा था. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था। इसके बाद मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद उन्हें राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी गई।

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