सैयद अली शाह गिलानी : जिंदगी भर पाक की भाषा बोलते रहे गिलानी, संसद और मुंबई में आतंकी हमले का किया था समर्थन

जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का बुधवार की रात में निधन हो गया...

Report :  Anshuman Tiwari
Published By :  Ragini Sinha
Update:2021-09-02 13:10 IST

सैयद अली शाह गिलानी का निधन (फाइल फोटो)

 

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का बुधवार की रात में निधन हो गया। गिलानी गुर्दे के साथ ही कई अन्य बीमारियों से भी पीड़ित थे। भारत विरोधी बयान देने के लिए मशहूर गिलानी जिंदगी भर पाकिस्तान की भाषा बोलते रहे। कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ाने में उनकी बड़ी भूमिका थी। यही कारण है कि उनके निधन के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी भारत के खिलाफ जहर उगलते हुए पाकिस्तान में एक दिन के राजकीय शोक का एलान किया है। उन्होंने गिलानी को पाकिस्तानी बताते हुए देश के झंडे को भी आधा झुकाने की घोषणा भी की। खुद को मजबूरी में भारतीय बताने वाले गिलानी को हैदरपोरा की मिट्टी में ही सुपुर्द-ए-खाक किया गया। वे हमेशा कहा करते थे कि मैं मजबूरी में भारतीय हूं,जन्म से नहीं। गिलानी के भारत विरोधी रवैये को इसी बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने 2001 में भारतीय संसद पर हुए आतंकी हमले का समर्थन किया था।

गिलानी के बहाने भारत के खिलाफ जहर उगला 

गिलानी को श्रद्धांजलि देने के बहाने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक बार फिर भारत के खिलाफ जहर उगला। उन्होंने कहा कि गिलानी जिंदगी भर अपने लोगों के अधिकारों और आत्मनिर्णय की लड़ाई लड़ने में जुटे रहे। उन्होंने भारत पर गिलानी को कैद करके रखने और उन्हें प्रताड़ित करने का आरोप भी लगाया। उन्होंने गिलानी के शब्दों को याद दिलाते हुए कहा कि वे कहा करते थे कि हम पाकिस्तानी हैं और पाकिस्तान हमारा है।

इमरान खान के अलावा पाकिस्तान के सेना प्रमुख कमर बाजवा ने भी गिलानी को कश्मीर के स्वतंत्रता आंदोलन का अगुआ बताया। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी पीछे नहीं रहे । उन्होंने गिलानी को कश्मीरी आंदोलन का पथ प्रदर्शक बताया। कुरैशी ने कहा कि नजरबंदी के बावजूद गिलानी अंतिम सांस तक कश्मीर के लोगों की लड़ाई लड़ते रहे। गिलानी को पाकिस्तान का सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-पाक भी दिया गया था।

लादेन और हाफिज सईद के पक्षधर

दरअसल, गिलानी के प्रति पाकिस्तान का यह प्रेम अकारण नहीं है। गिलानी अपने पूरे जीवन काल में पाकिस्तान की भाषा बोलने के साथ ही घाटी में अलगाववाद को भड़काने में जुटे रहे। हुर्रियत कांफ्रेंस के इस नेता ने 2001 में संसद पर आतंकी हमले की दिल दहलाने वाली घटना का समर्थन तक किया था। उन्होंने इस हमले के दौरान मारे गए आतंकियों को शहीद की संज्ञा दी थी। 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले के दौरान भी उनका यही रवैया सामने आया था। वे लश्कर-ए-तैयबा के चीफ हाफिज सईद की प्रशंसा किया करते थे। उसे कश्मीरियों के अधिकार की लड़ाई लड़ने वाला हीरो बताया करते थे। अलकायदा के चीफ ओसामा बिन लादेन के मारे जाने पर उन्होंने अमेरिका की तीखी आलोचना की थी। अपने समर्थकों के साथ मिलकर लादेन के लिए दुआ भी मांगी थी।

मजबूरी में भारतीय, जन्म से नहीं 

यह तथ्य भी काफी दिलचस्प है कि गिलानी ने जीवन भर कश्मीर के मासूम युवाओं को भारत के खिलाफ भड़का कर घाटी में अराजकता का माहौल पैदा किया मगर अपने बच्चों को हमेशा इससे दूर रखा। अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर उन्होंने काबिल बनाया जबकि कश्मीर के मासूम युवाओं को वे हमेशा भारत के खिलाफ भड़काते रहे। गिलानी की बातों में फंस कर काफी संख्या में कश्मीरी युवाओं का भविष्य चौपट हो गया। गिलानी ने एक बार यह भी बयान दिया था कि मैं मजबूरी में भारतीय हूं, जन्म से नहीं। हालांकि बाद में विदेश जाने के लिए पासपोर्ट की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए उन्होंने अपनी राष्ट्रीयता भारतीय बताई थी। पासपोर्ट अधिकारी के सामने पेशी के दौरान तो उन्होंने खुद को भारतीय नागरिक बताया मगर पासपोर्ट दफ्तर से बाहर निकलते ही वे अपने रंग में आ गए और फिर कहा कि मैं जन्म से भारतीय नहीं हूं।

चुनाव का किया था बहिष्कार

गिलानी ने 2014 में कश्मीर के लोगों से चुनाव का बहिष्कार करने की अपील की थी। उनका कहना था कि कश्मीर के लोगों को चुनाव का बायकाट करते हुए भारत की नीतियों के खिलाफ अपना विरोध जताना चाहिए। उनकी इस अपील के बाद आतंकियों ने चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले कई लोगों की हत्या की थी। हालांकि उनकी अपील को नजरअंदाज करते हुए कश्मीर के लोगों ने चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लिया था और 2014 के चुनाव के दौरान कश्मीर में 65 फ़ीसदी मतदान हुआ था। जम्मू कश्मीर में 25 साल बाद इतना ज्यादा मतदान प्रतिशत दर्ज किया गया था।

गिलानी लंबे समय तक हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष रहे। हालांकि उन्होंने 2020 में हुरिर्यत कॉन्फ्रेंस से अलग रास्ता चुन लिया था। उन्होंने कश्मीर के सोपोर निर्वाचन क्षेत्र से तीन बार चुनाव जीता था। उन्होंने यह जीत 1972, 1977 और 1987 के चुनाव में हासिल की थी। पिछले कई वर्षों से उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा था। इसी कारण उनकी सक्रियता भी काफी कम हो गई थी।

Tags:    

Similar News