कोरोना ने बदली स्कूली शिक्षा, खामियों के साथ नये तरीकों ने बदल दी बच्चों की जिंदगी
स्कूली शिक्षा के लिए बनाये जा रहे वीडियो की गुणवत्ता पर भी सवाल उत्पन्न होते हैं क्योंकि केरोना काल के दौर में एक अच्छा शिक्षक भी छोटे से कैमरे के सामने कई बार प्रभावहीन दिखता है। वास्तविक उपस्थिति से बेहद जटील होती है
लखनऊ: विकसित हो या विकासशील देश, पूरी दुनिया इस समय कोरोना महामारी से जूझ रहा है। कोरोना ने पूरे देश में बच्चों की शिक्षा पर गहरा प्रभाव डाला है। भारत में करीब 20 करोड़ से अधिक की संख्या में बच्चें हैं जो कि 12वीं तक की कक्षा में पढ़ने के लिए जाते हैं। स्कूलों की संख्या की बात की जाय तो वह सिर्फ 15 लाख से थोड़े से ही अधिक हैं। आबादी के अनुपात में देखा जाय तो कृषि प्रधान देश में तकरीबन 70 प्रतिशत सरकारी विद्यालयों में बच्चों के भविष्य तय हो रहें हैं।
बच्चों के भविष्य का क्या होगा
स्कूलों के बंद हो जाने के बाद शिक्षक, अभिभावक, प्रशासन और कई एनजीओ ने इस बात पर काफी चर्चा की अब बच्चों के भविष्य का क्या होगा? ऐसा निरूत्तर कर देने वाला प्रश्न जिसकी तैयारी किसी ने भी नहीं की थी। भारत में केरोना का प्रभाव करीब 10 माह से है और इसने स्कूली शिक्षा में पढ़ाई का तरीका पूरी तरह से बदल दिया है।
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गांव-गांव में स्मार्ट क्लास
क्लासरूप वर्चुअल हो गये हैं, बच्चे गूगल मीट, गूगल क्लासरुम, जूम जैसी तकनीकी को बेहद सरलता से समझते हुए अपने पाठ्यक्रम को पूरा कर रहें हैं। शिक्षा में तकनीक का बिना तैयारी के साथ का समन्वयन ऐसा रहा है कि केरोना काल सभी के लिए परीक्षण और परिणाम की तरह हो गया है। गांव-गांव में स्मार्ट क्लास और वीडियों की बाढ़ सी आ गयी है। यू-ट्यूब में कोरोना के बाद वीडियो बनाने के लिए ऐसा दौर आ गया है कि उन वीडियो को देखने में ही कई हजार साल लगेंगे।
बच्चों के साथ अभिभावक भी ऑनलाइन शिक्षा के आदी
देश-प्रदेश की सरकार ने बच्चों के भविष्य और समय को देखते हुए हर संभव प्रयास किये हैं कि ताकि शिक्षा में बदलाव लाया जा सके। बच्चों के साथ अभिभावक भी ऑनलाइन शिक्षा के लिए पूरी तरह से ढलते हुए दिख रहें हैं। शहरों में तो स्थिति ठीक है लेकिन इसके उलट गांवों में स्थिति को ठीक होने में और समय लगेगा। बिजली की मनमर्जी और अल्प आय जिसकी वजह से एक घर में एक मोबाइल होना, ऐसा विषय है जो ऩई शिक्षा के साथ ही जुड़ा है।
अश्लीलता और हिंसा
वर्चुअल क्लासरूम कभी भी गुरू की भरपाई नहीं कर सकते, क्योंकि एक तरफा हो रहे संचार की वजह से बच्चों को हो रही समस्याओं, शारीरिक परेशानियों के साथ समय प्रबन्धन की तरफ देखने वाला कोई नहीं है। बच्चों का मोबाइल का स्वतंत्रता प्रयोग, एक ऐसा विषय है जिसकी वजह से इसके फायदे से ज्यादा नुकसान भी हो सकते हैं। पॉप-एड और वीडियो से जुड़े हुए कई वीडियो जिसमें अश्लीलता और हिंसा आम होती है, छोटे बच्चों पर बड़ा प्रभाव डालते हैं।
वीडियो की गुणवत्ता पर भी सवाल
स्कूली शिक्षा के लिए बनाये जा रहे वीडियो की गुणवत्ता पर भी सवाल उत्पन्न होते हैं क्योंकि केरोना काल के दौर में एक अच्छा शिक्षक भी छोटे से कैमरे के सामने कई बार प्रभावहीन दिखता है। वास्तविक उपस्थिति से बेहद जटील होती है वीडियो में उपस्थिति और वर्चुअल क्लास रूम की स्थिति। कई प्लेटफार्म पर ऐसे वाइरल वीडियो मिल भी जाते हैं जिसमें ऑनलाइन शिक्षा का बच्चे मजाक उड़ाने के साथ टीचर को भी परेशान कर रहें हैं।
अभिभावकों को बच्चों के साथ काउंसिलिंग
बदलते समय के अनुरूप बच्चों को भविष्य को देखते हुए अभिभावकों को बच्चों के साथ काउंसिलिंग की बेहद आवश्यकता है क्योंकि यकीन मानिए वर्चुअल क्लास रूम कभी भी किसी बच्चे को खुश नहीं कर सकती क्योंकि उसे आवश्यकता होती है, माहौल, मित्र और गुरू की जो सीख देते हैं समय प्रबंधन, प्रतिस्पर्धा, शारीरिक और बौद्धिक विकास की। जिसकी वजह से ही उनका भविष्य उन्नत होता है>
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पटना की ऐश्वर्या को खलती है इसकी कमी
इस संदर्भ में कुछ अभिभावक, टीचर और स्टूडेंट्स ने भी अपने विचार दिए है। पटना की रहने वाली छात्रा एश्वर्या चौबे का कहना है कि बहुत सारे सपने और सोच के साथ वो कॉलेज की दुनिया में आई थी कि पढ़ाई के साथ कॉलेज में दोस्तों के साथ मस्ती भी होगी। लेकिन कोरोना काल अपने मन को मारना पड़ा। ऐश्वर्या का कहना कि कोरोना की वजह से स्कूल कॉलेज बंद हो गए तो जिंदगी कुछ दिनों के लिए थम गई ,फिर आया ऑनलाइन शिक्षा का फॉर्मेट और उसके अनुसार हमने पढ़ाई शुरू की शुरू में तो ये अच्छा लगा।
कॉलेज जैसा माहौल घर में कम समय में पढ़ाई हो जाती है। लेकिन जहां हम टेक्नोलॉजी के करीब जाती है वहीं जिंदगी से दूर हो जाते है। मतलब ये कि ऑनलाइन शिक्षा अच्छा है,लेकिन इससे रियल क्लास वाली फिलींग नहीं मिलती है। आंखों और हेल्थ पर भी असर पड़ता है साथ में दोस्तों से मिलना भी नहीं होता ।
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टेक्नो फ्रेडली हो गए
पटना की सेजल सिन्हा और दानापुर की मानसी ये दोनों स्टूडेंट्स है। इनका मानना है कि बिना स्कूल जाए घर में मम्मी के हाथ का बना गरमा गर्म नाश्ते के साथ हम ऑनलाइन क्लासेज करते है। घर में ही रहते है कहीं जाना नही पड़ता। इससे अब टेक्नो फ्रेडली हो गए। ऑनलाइन शिक्षा से हमारी कम्यूनिकशन स्किल भी बढ़ी है। लेकिन बहुत हद तक मोबाइल लैपी के इस्तेमाल से सेहत पर भी असर पड़ा है। साथ ही हम अपने ड्रेसेज भी इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। मेकअप पर भी बैन हो गया है। दोस्तों से मिलना ना के बराबर हो गया है।
कुछ कारणों सही नहीं..
पं. बंगाल की रहने वाली रीमा कर्मकार जो पेशे से टीचर है। उनका मानना है कि ऑनलाइन शिक्षा अच्छी है आजकल कोरोना की वजह से हम इसके आदी हो गए है। ये प्रणाली अच्छी है लेकिन बच्चों में लिखने की हैबिट कम होती जा रही है। फिजिकल एक्टिविटी भी कम हो रही है। बच्चे घर में होते है तो खेलते ज्यादा और पढ़ते कम है । उनकी कम्यूनिकेशन स्किल भी कम हो रही है।
मानसिक विकास में बाधक
वनस्थली शिक्षा संस्थान से जुड़ी वंदना शर्मा का कहना है कि कोरोना काल में ऑन लाइन एजुकेशन सिर्फ नाम की शिक्षा है। इससे बच्चों का सही विकास संभव नहीं है। यह शिक्षा में विकास के सारे आयामों को छूने में असमर्थ रही है शारीरिक कठिनाइयों के साथ पूरी तरह से मानसिक विकास में बाधक है। इस शिक्षा में स्टूडेंट की सहभागिता कम होती है। सारा प्रेशर टीचर पर होता है। साथ ही पारदर्शिता की कमी होती है।
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इस तरह जहां समाज में ऑनलाइन शिक्षा को कोरोना काल में बहुत अहमियत मिली हो तो वहीं बच्चों के लिए गलत साबित हो रही है। कल तक जो बच्चे स्कूल के नाम से रोते थे , आज वहीं बच्चे अपने स्कूल, टीचर और दोस्तों को मिस कर रहे है। ऐसे में हम लाख दावे कर लें लेकिन शिक्षा की जो प्रणाली कोरोना के पहले चल रही थी वही शिक्षा के स्तर को उठाने में कारगर साबित होगी, ना कि ऑनलाइन शिक्षा।
रिपोर्ट - सुमन मिश्रा