पुण्यतिथि विशेष: जानें 'दादा साहब फाल्के' से सम्मानित भूपेन हजारिका के बारे में
साल 1936 में कोलकाता में भूपेन ने अपना पहला गाना रिकार्ड किया था। यहीं से उनके गायक संगीतकार और गीतकार बनने का सफर शुरू हो गया था। वर्ष 1942 में भूपेन ने आर्ट से इंटर की पढ़ाई पूरी की।
श्रीधर अग्निहोत्री
मुम्बई: दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित संगीतकार गायक भूपेन हजारिका की आज पुण्यतिथि है। असम के सदिया कस्बे में पैदा हुए भूपेन हजारिका 10 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। अपनी मां को देखकर उन्हें गाने की प्रेरणा मिली थी। 10 साल की उम्र में वो असमिया भाषा में गाने गाते थे। साल 1936 में कोलकाता में भूपेन ने अपना पहला गाना रिकार्ड किया था। यहीं से उनके गायक संगीतकार और गीतकार बनने का सफर शुरू हो गया था। वर्ष 1942 में भूपेन ने आर्ट से इंटर की पढ़ाई पूरी की।
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अमेरिका में हुई प्रियम्वदा से मुलाकात
स्नातक होने के बाद उन्होंने आकाशवाणी में नौकरी शुरू की और वहीं से स्कालरशिप पाकर ‘मास कम्युनिकेशन’ पर डाक्टरेट करने के लिए अमेरिका की कोलम्बिया यूनिवर्सिटी चले गए। यहां उनकी मुलाकात प्रियम्वदा पटेल से हुई। दोनों में प्यार हुआ और यूएस में ही साल 1950 में दोनों ने विवाह कर लिया।
...तो फिर टूट गया पत्नी से रिश्ता
इसके बाद 1953 में हजारिका अपने परिवार के साथ भारत लौट आए लेकिन दोनों ज्यादा समय तक साथ नहीं रह पाए। भारत आकर हजारिका ने गुवाहाटी यूनिवसिर्टी में टीचर की की नौकरी कर ली। बाद में वहां जब मन नहीं लगा तो इस्तीफा दे दिया। आर्थिक अभाव के चलते पत्नी से सम्बन्ध बिगड गए और दोनो अलग हो गए। फिर वह संगीत के क्षेत्र मंे पूरी तरह से उतर गए।
हिंदी फिल्मों में उनका सफर ‘आरोप’ (1974) से शुरू हुआ जो उनके जीवन के अंत तक चलता रहा। फिल्म का एक गीत ‘नैनों में दर्पण है, दर्पण है कोई देखूं जिसे सुबहो शाम’ काफी लोकप्रिय रहा। भूपेन ने रुदाली, मिल गई मंजिल मुझे, साज, दरमिया, गजगामिनी, दमन और क्यों जैसी सुपरहिट फिल्मों में गीत दिए। हजारिका ने अपने जीवन में एक हजार गाने और 15 किताबें लिखीं।
संगीत के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान के लिए केन्द्र सरकार ने 1975 में राष्ट्रीय पुरस्कार और 1992 में सिनेमा जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके अलावा संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा पद्म भूषण जैसे कई पुरस्कार मिले।
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