जन्मदिन विशेष: पद्मश्री सुधा मल्होत्रा ने गीत भले ही कम गाये, लेकिन दिलों पर किया राज

हिन्दी फिल्मों में गायिकी के क्षेत्र में कुछ ऐसी गायिकाएं हुई हैं जिन्होेने भले ही बहुत कम फिल्मों में अपनी गायन किया हो पर उनकी गायकी को आज भी लोग याद करते हैं। उनमें से ही एक गायिका सुधा मल्होत्रा भी हैं। 

Update: 2020-11-30 06:50 GMT
गीत भले ही कम गाये पर दिलों में जगह बनाई

श्रीधर अग्निहोत्री

मुम्बई। हिन्दी फिल्मों में गायिकी के क्षेत्र में कुछ ऐसी गायिकाएं हुई हैं जिन्होेने भले ही बहुत कम फिल्मों में अपनी गायन किया हो पर उनकी गायकी को आज भी लोग याद करते हैं। उनमें से ही एक गायिका सुधा मल्होत्रा भी हैं।

हिंदी फिल्म संगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित सुधा मल्होत्रा कर जन्म 30 नवम्बर 1936 को हुआ था। उन्होंने छह साल की उम्र में पहली बार स्टेज पर गीत गाया। इसके बाद फिर वह लगातार मंचों पर गायन करती रहीं। उनके पिता शिक्षक थें जबकि मां को गायन का षौक था। यह देखकर उनके घर वालों ने उन्हे इस क्षेत्र में बढने को कहा।

बचपन से था गाने का शौख

सुधा अपने बचपन में घर पर नूरजहाँ तथा कानन बाला के गीतों को हूबहू गाकर सुना देती थीं। उन्हें शास्त्रीय गायन सिखाने के लिए एक ट्यूटर रखा गया। धीरे-धीरे वे ऑल इण्डिया रेडियो लाहौर पर गायन करने लगी। संगीतकार अनिल विश्वास ने सुधा मल्होत्रा की गायिकी को परखा और उन्होंने फिल्म आरजू (1950) में उन्हें अवसर दिया। कुछ लोग आखिरी पैगाम भी उनकी पहली फिल्म मानते हैं। सुधा ने पहला गाना बारह साल की उम्र में रिकार्ड किया।

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फिल्म आंदोलन में गाने का मिला अवसर

संगीतकार अनिल बिस्वास के बहनोई मशहूर बाँसुरी वादक पन्नालाल घोष ने सुधा मल्होत्रा को फिल्म आंदोलन में गाने का अवसर दिया। पचास के दशक में सुधा ने लगातार दर्जनों फिल्मों में दर्जनों गाने गाए। जिनमें कैसे कहूँ मन की बात (धूल का फूल), तुम मुझे भूल भी जाओ, तो ये हक है तुमको (मुकेश के साथ फिल्म दीदी), ओ रूक जा रूक जा रूक जा (चंगेज खान), गम की बदल में चमकता (रफी के साथ कल हमारा है), सलाम-ए-हसरत कुबूल कर लो (बाबर) जैसे गाने मशहूर हुए।

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गीता जी के साथ फिल्म- ‘काला बाजार’ (1960) के लिए उनका गाया ‘न मैं धन चाहूँ न रतन चाहूँ’ बहुत लोकप्रिय भजन रहा ! शायर साहिर लुध्यानवी के प्रोत्साहन को वह अपने करियर के लिए बहुत बड़ा सहायक मानती हैं। साहिर के लिखे फिल्म- ‘दीदी’ (1959) के गीत ‘तुम मुझे भूल भी जाओ’ का संगीत भी सुधा मल्होत्रा ने खुद बनाया था। यही उनका पहले दौर का आखिरी गीत है।

वर्ष 1957 से 1960 तक उनका बहुत अच्छा सफर रहा। 1960 में शादी के बादगाना छोड़ देने के बाद राज कपूर की फिल्म- ‘प्रेम रोग‘ फिल्म के लिए ‘ये प्यार था या और कुछ और था’ गीत के साथ फिल्मों में वापसी की । यही उनका फिल्मों में अब तक का आखिरी गाना है। इन दिनों वह 84 वर्षीय सुधा मल्होत्रा मुम्बई के खार (पश्चिम) में अपने बेटे व नाती-पोतों के साथ रह रही हैं।

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