विजय तेंदुलकर ने भारतीय रंगमंच का कर दिया काया पलट, इन नाटकों से बनी पहचान

भारतीय रंगमंच को अलग पहचान दिलाने वाले विजय तेंदुलकर देश के महान नाटककारों में से एक थे। विजय तेंदुलकर ने उस दौरान ऐसे विषयों पर लिखा जिसके लोग सुनना भी पसंद नहीं करते थे।

Update: 2021-01-06 05:56 GMT
विजय तेंदुलकर ने भारतीय रंगमंच का कर दिया था काय पलट, इन नाटकों से बनी थी पहचान

मुंबई : भारतीय रंगमंच को अलग पहचान दिलाने वाले विजय तेंदुलकर देश के महान नाटककारों में से एक थे। विजय तेंदुलकर ने उस दौरान ऐसे विषयों पर लिखा जिसके लोग सुनना भी पसंद नहीं करते थे। विजय एक प्रसिद्ध भारतीय नाटककार होने के साथ-साथ फिल्म और टेलीविजन लेखक, साहित्यिक निबंधकार और राजनीतिक पत्रकार थे।आज विजय तेंदुलकर के जन्मदिन पर जानेंगे उनसे जुड़े कई रोचक किस्से जिसे आपको ज़रूर जानना चाहिए।

6 साल की उम्र में लिखा पहला लेख

विजय तेंदुलकर जा जन्म 6 जनवरी, 1928 में गिरगांव, मुंबई में हुआ था। विजय तेंदुलकर ने छोटी साल की उम्र में जान लिया था कि उन्हें एक लेखक बन्ना हैं। उन्होंने 6 साल की में अपनी पहली कहानी लिखी थी। वह पश्चिमी नाटकों को देखते हुए बड़े हुए और खुद को नाटक लिखने के लिए प्रेरित किया। 11 साल की उम्र में उन्होंने अपने पहले नाटक को खुद लिखा, निर्देशन और अभिनय भी किया। 14 साल की उम्र में उन्होंने 1942 में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया. जहां से उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी।

ऐसे हुई करियर की शुरुआत

बता दें, तेंदुलकर ने अपना करियर की शुरुआत अखबारों के लिए लिखने से शुरू किया। उन्होंने पहले से ही एक नाटक लिखा था ‘आम्च्यावऱ कोण प्रेम करणार? - जो मुझसे प्यार करने जा रहा है? और उन्होंने अपने शुरुआती 20 के दशक में, नाटक (गृहस्थ) लिखा था। लेकिन दर्शकों को ये नाटक कुछ ख़ास पसंद नहीं आया और तेंदुलकर ने मन बना लिया कि वह अब कभी नहीं लिखेंगे।

इस नाटक से लोगों के बीच मिली पहचान

लेकिन अपनी कसम को तोड़ते हुए उन्होंने 1956 में उन्होंने ‘श्रीमंत’ लिखा, जिसने उन्हें एक अच्छे लेखक के रूप में पहचान मिली। ये नाटक अपनी कट्टरपंथी कहानी के साथ उस समय के रूढ़िवादी दर्शकों को झटका दिया, जिसमें एक अविवाहित युवती अपने अजन्मे बच्चे को रखने का फैसला करती है, जबकि उसका अमीर पिता उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा को बचाने के प्रयास में एक पति को "खरीदने" की कोशिश करता है। और इस तरह उन्होंने मराठी रंगमंच में नई पहचान बनाई । तेंदुलकर के लेखन ने आधुनिक मराठी रंगमंच की कहानी को 1950 और 60 के दशक में तेजी से बदल दिया।

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प्रसिद्ध नाटक घासीराम कोतवाल

साल 1972 में तेंदुलकर ने एक और अधिक प्रसिद्ध नाटक घासीराम कोतवाल लिखा जो राजनीतिक हिंसा को दिखता था । यह नाटक 18 वीं शताब्दी के पुणे में संगीत नाटक के रूप में बनाया गया एक राजनीतिक व्यंग्य है। इस नाटक ने मराठी रंगमंच की पूरी तसवीर ही बदल कर रख दी और आज वह अपने आप में एक इतिहास है।

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