Research on Backbone: संभव है कमर की इन बीमारियों का इलाज, बोन मैरो से जख्मी मरीज हुए ठीक

Research on Backbone: दुर्घटनाओं में घायल मरीजों पर मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों का अध्ययन। जख्मी रीढ़ की हड्डी में कोशिकाएं प्रत्यारोपित करने से आश्चर्यजनक नतीजे आये।

Written By :  Snigdha Singh
Update:2024-07-18 22:42 IST

Research: हादसों में घायल मरीजों ने नहीं सोचा होगा कि वह अपने पैरों पर फिर खड़े हो सकेंगे। पहले की तरह दूसरों के सहारे नहीं बल्कि खुद सामान्य जिंदगी जी सकेंगे। इसको जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने हकीकत में बदला है। जख्मी रीढ़ की हड्डी वालों पर एक साल तक अध्ययन किया। 20 से 70 वर्ष की आयु वाले 50 मरीजों का इलाज प्राचार्य डॉ संजय काला की देखरेख में डॉक्टरों ने किया। बोन मैरो की कोशिकाओं से पहली बार इलाज करने के नतीजे भी आश्चर्यजनक रहे। मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग की डॉ आंचल अग्रवाल ने बताया कि अलग-अलग दुर्घटनाओं में रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट वाले मरीजों के इलाज पर शोध किया गया। इन मरीजों में युवाओं के साथ बुजुर्ग मरीज भी रहे। जख्मी रीढ़ के कारण इनका चलना-फिरना, उठना बैठना तक मुश्किल था।

जख्मी रीढ़ में कोशिकाओं को किया प्रत्यारोपित

शोध के दौरान मरीजों के बोन मैरो से कोशिकाओं को लेने का निर्णय लिया गया। लगभग 80 एमएल खून निकाला गया। खून और प्लाज्मा को सेंट्रीफुगेशन मशीन से अलग-अलग किया गया। इसमें से 10 एमएल कोशिकाओं को जख्मी रीढ़ में प्रत्यारोपित किया गया। सालभर तक मरीजों की स्थिति पर नजर रखी गई। साथ ही तीन-तीन महीने में एक बार बोन मैरो से कोशिकाओं को रीढ़ में प्रत्यारोपित करने की प्रक्रिया की गई।

अक्षम मरीज 60 से 70 फीसदी तक हुए स्वस्थ

डॉ आंचल ने बताया कि इलाज से पहले चलने फिरने और उठने बैठने तक में अक्षम मरीजों में तेजी से सुधार हुआ। सालभर तक इलाज चलने के बाद 60 से 70 फीसदी तक स्वस्थ हुए। 20 से 70 वर्ष की आयु वाले मरीजों में 42 पुरुष तो 8 महिलाएं रहीं।

डॉ संजय काला, प्राचार्य जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के अनुसार हादसों में जख्मी ऐसे मरीजों के इलाज पर शोध किया गया, जिनकी रीढ़ की हड्डी हादसे के कारण जख्मी थी। कई साल से परेशानी झेलने के बाद मेडिकल कॉलेज आए थे। 50 मरीजों की जख्मी रीढ़ में बोन मैरो की कोशिकाओं को प्रत्यारोपित किया गया। तीन-तीन माह में यह प्रक्रिया सालभर तक अपनाई गई। नतीजे आश्चर्यजनक रहे और 60 से 70 फीसदी तक स्वस्थ हुए।

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