वैक्सीन से कंपनियों की बम्पर कमाई, जाने किसने-किसने लगाया पैसा

वैक्सीन के डेवलपमेंट में सरकारों, संस्थानों, संगठनों और निजी तौर पर व्यक्तियों ने जबरदस्त पैसा लगाया है। चूँकि कोरोना वैक्सीन को किसी भी हाल में जल्द से जल्द चाहिए था

Update: 2021-01-19 07:47 GMT
वैक्सीन से कंपनियों की बम्पर कमाई, जाने किसने-किसने लगाया पैसा (PC: social media)

लखनऊ: कोरोना वायरस के खिलाफ निर्णायक जंग में वैक्सीनें लगना शुरू हो चुकीं हैं। फाइजर, मॉडर्ना, आस्ट्रा ज़ेनेका, सीनोफार्म- ये सब नाम लोगों की जुबान पर चढ़ चुके हैं। जिस पैमाने पर वैक्सीनों की डिमांड है उससे साफ़ है कि वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियां बम्पर कमाई करेंगी। एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि सबसे ज्यादा कमाई फाइजर और मॉडर्ना की होने वाली है। वैक्सीन का बाजार पहले से ही सालाना 35 अरब डालर का है और बीते दो दशकों से ये बाजार छह गुना बढ़ चुका है अब इसको कोरोना और भी पुश करेगा। वैक्सीन इंडस्ट्री पर चार बड़ी कंपनियों का दबदबा है और वे हैं – ब्रिटेन की ग्लैक्सो स्मिथ क्लाइन, फ़्रांस की सनोफी तथा अमेरिका की फाइजर और ई मर्क। ये कम्पनियाँ 85 फीसदी वैक्सीन बाजार कंट्रोल करतीं हैं।

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किसने लगाया है पैसा

वैक्सीन के डेवलपमेंट में सरकारों, संस्थानों, संगठनों और निजी तौर पर व्यक्तियों ने जबरदस्त पैसा लगाया है। चूँकि कोरोना वैक्सीन को किसी भी हाल में जल्द से जल्द चाहिए था सो निवेशकों और दानदाताओं से खुले हाथ से फंडिंग की। इनमें अमेरिकी संघीय सरकार से लेकर बिल गेट्स और चीनी अरबपति जैक मा और गायिका डॉली पार्टन तक शामिल हैं। सरकारों की बात करें तो उन्होंने 6.5 खरब रुपये से ज्यादा की फंडिंग की है जबकि नॉन प्रॉफिट संस्थाओं ने 15 खरब रुपये लगाये हैं।

निजी तौर पर सबसे ज्यादा पैसा आस्ट्रा ज़ेनेका की वैक्सीन में लगाया गया है। इस कंपनी को वैक्सीन डेवलप करने में 80 अरब रुपये से ज्यादा के फंडिंग मिली है। इसके बाद फाइजर, मॉडर्ना, नोवावैक्स, सीनोवैक, जॉनसन एंड जॉनसन, क्योरवैक, सनोफी के नाम आते हैं।

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पैसा लगाने में हिचकिचाहट

कोरोना वैक्सीन डेवलप करने के शुरुआती दौर में निजी कंपनियों और संगठनों ने ज्यादा फंडिंग में रुचि नहीं दिखाई थी। इसकी वजह ये थी कि इसके पहले जिन वैक्सीनों पर पैसा लगाया गया वो बहुत मुनाफे का सौदा साबित नहीं हुआ था। चूँकि वैक्सीन की रिसर्च का काम बहुत समय लेता है और इसकी सफलता की कोई गारंटी नहीं रहती सो पैसा लगाने वाले पीछे हट जाते हैं।

एक फैक्टर ये भी है कि गरीब देश ऊंचे दाम देने की हैसियत नहीं रखते जबकि वैक्सीनों की सबसे ज्यादा जरूरत उन्हीं को होती है। वैक्सीनें कोई दवा तो होतीं नहीं कि उनकी बार बार जरूरत पड़े। वैक्सीन एक बार ही लगती है सो ये बिजनेस के लिहाज से घाटे की चीज है। जिन दवाओं को रोज लेना पड़ता है और जिनकी अमीर देशों में बड़ी मार्केट है उनपर कंपनियों का फोकस रहता है। निवेशक जीका, सार्स की वैक्सीन के मामले में घाटा सह चुके हैं। लेकिन फ्लू की वैक्सीन की बड़ी डिमांड है क्योंकि इसे हर सीजन में लेना पड़ता है सो फ्लू वैक्सीन में खूब फंडिंग होती है। इस वैक्सीन का सालाना बाजार अरबों डालर का है। अब अगर कोरोना बीमारी भी सीजनल साबित होती है तो इसकी वैक्सीन भी मुनाफे वाली साबित होगी।

मुनाफा लेने से इनकार

कोरोना महामारी में मुनाफ़ा कमाने की बात करके कोई कंपनी बदनामी मोल लेना नहीं चाहती सो कई कंपनियों ने मुनाफा न कमाने की बात कही है। अमेरिका की जॉनसन एंड जॉनसन और यूनाइटेड किंगडम की आस्ट्रा ज़ेनेका ने वादा किया है कि वो अपनी कोरोना वैक्सीन लागत मूल्य पर बेचेंगी। आस्ट्रा ज़ेनेका की ही वैक्सीन सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया बना रही है। बाजार में फिलहाल सबसे सस्ती कोरोना वैक्सीन आस्ट्रा ज़ेनेका की ही है। सबसे महंगी वैक्सीन की बात करें तो मॉडर्ना की वैक्सीन सबसे ऊंचे दाम वाली है।

कोई दाम फिक्स नहीं

कंपनियों ने अपनी वैक्सीनों के दाम फिक्स्ड नहीं रखे हैं। हर दवा और वैक्सीन के साथ आमतौर पर ऐसा ही होता है। कोरोना वैक्सीन के मामले में भी अलग अलग देशों के लिए अलग अलग दाम तय किया गया है और मोल-तोल भी किया गया है। आस्ट्रा ज़ेनेका ने कहा है कि उसकी वैक्सीन के दाम सिर्फ महामारी काल में ही कम रहेंगे। महामारी का रख देखते हुए वैक्सीन के दाम बदल दिए जायेंगे।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमीर देशों की सरकारें फिलहाल ऊंचे दाम दे रहीं हैं क्योंकि उनको किसी भी तरह महामारी को कंट्रोल करना है। जब ज्यादा वैक्सीनें बाजार में आ जायेंगी तो प्रतिस्पर्धा बढ़ने के साथ साथ दाम भी बदल जायेंगे। असली मुनाफ़ा शुरुआती दौर में कम्पनियां कमा लेंगी। विभिन्न देशों की सरकारों और संगठनों ने पहले से तय दामों पर वैक्सीनों को बुक कर रखा है सो कम्पनियाँ इस कोशिश में हैं कि जल्दी से जल्दी प्रीआर्डर पूरे कर दिए जाएँ ताकि फिर खुले बाजार में आने का मौक़ा मिल सके।

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जबरदस्त रिटर्न

ब्रिटिश एनालिस्ट विमल कपाड़िया के अनुसार विश्व के 94 गरीब देशों में टीकाकारण प्रोगाम में निवेश किया गया प्रत्येक डालर 44 डालर का नेट रिटर्न देता है। अमेरिकी कंपनी मर्क के वैक्सीन बिजनेस ने 2019 में 8.4 अरब डालर का राजस्व कमाया।

रिपोर्ट- नीलमणि लाल

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