नेत्रहीन लोग भी कर सकते हैं नेत्रदान, शहर की एकता ने पेश की नई मिसाल
आमतौर पर माना जाता है कि नेत्रहीन लोग नेत्रदान नहीं कर सकते, लेकिन नेत्रहीन एकता ने नेत्रदान के लिए पंजीकरण करवाकर सबके लिए एक मिसाल कायम की है. शकुंतला मिश्रा रिहैबिलिटेशन यूनिवर्सिटी में पढ़ रही गरिमा ने 12 साल की उम्र में ब्रेन ट्यूमर की वजह से अपनी आँखों की रौशनी खो दी थी। लेकिन वही एकता अपनी आँखों से किसी और की ज़िंदगी रोशन करेंगी।
लखनऊ:आमतौर पर माना जाता है कि नेत्रहीन लोग नेत्रदान नहीं कर सकते, लेकिन नेत्रहीन एकता ने नेत्रदान के लिए पंजीकरण करवाकर सबके लिए एक मिसाल कायम की है. शकुंतला मिश्रा रिहैबिलिटेशन यूनिवर्सिटी में पढ़ रही गरिमा ने 12 साल की उम्र में ब्रेन ट्यूमर की वजह से अपनी आँखों की रौशनी खो दी थी। लेकिन वही एकता अपनी आँखों से किसी और की ज़िंदगी रोशन करेंगी।
कॉर्निया है बिलकुल ठीक
ब्रेन ट्यूमर से एकता की ऑप्टिक नर्व तो खराब हो गई लेकिन उनकी कॉर्निया बिलकुल ठीक है। केजीएमयू के आई बैंक के डायरेक्टर डॉ अरुण ने बताया कि जब एकता को पता चला कि ऐसे हालातों में नेत्रदान किया जा सकता है तो उन्होंने नेत्रदान के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करवा लिया।
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एक साल में केजीएमयू में आए 1562 कॉर्निया डोनर, बच्चों की ऑंखें हुई ठीक
एकता की ही तरह कई लोग हैं जो दूसरों की ज़िंदगी में उजाला भरना चाहते हैं। यही वजह है कि पिछले डेढ़ साल में केजीएमयू आई बैंक में 1562 लोग कॉर्निया दान कर चुके हैं. पिछले एक साल में 10 साल की श्रेया , ,7 साल के निखिल और 9 साल के रेहान ने कॉर्निया इम्प्लांट के बाद दुनिया को दोबारा देखने का तोहफा पाया।
भारत में नेत्रहीनता सबसे बड़ा शारीरिक विकार है। देश में प्रति हज़ार शिशुओं में 9 नेत्रहीन जन्मते हैं। प्रति वर्ष 30 लाख लोगों की मौत होती है । अगर इन 30 लाख लोगों में एक प्रतिशत यानी अगर 30 हज़ार लोग भी नेत्रदान करें तो देश में नेत्रहीनता की दर काफी हद तक कम हो सकती है। ऐसा करने से व्यक्ति मरणोपरांत भी किसी का जीवन बदल सकता है।
एक कॉर्निया से दो आंखे हो सकती हैं रोशन
कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित व्यक्ति की दोनों आंखे एक ही कॉर्निया से ठीक हो सकती हैं। एक व्यक्ति की आंखे दो लोगों की ज़िंदगी रोशन कर सकती हैं।
प्रत्यारोपण में केवल कॉर्निया का उपयोग किया जाता है
आंखों के प्रत्यारोपण में केवल कॉर्निया का इस्तेमाल किया जाता है। आंख के बाकी हिस्से शोध व अध्ययन में इस्तेमाल किए जाते हैं।
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नेत्रदान से जुड़ी भ्रांतियां
नेत्रदान को लेकर लोगों के मन में कई भ्रांतियां हैं । जैसे कि नेत्रदान से मृतक का चेहरा बिगड़ जाएगा। कुछ लोगों को लगता है कि नेत्रदान में काफी समय लगता है जिससे अंतिम संस्कार में देरी होगी। केजीएमयू के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ ए के शर्मा बताते हैं कि नेत्रदान में मात्र 15 से 20 मिनट का समय लगता है। आई बैंक के डॉक्टर एक छोटे से कट से केवल आंखों की कॉर्निया निकालते हैं। इससे आंखों में कोई गड्ढा नहीं पड़ता और आंखे पहले जैसी ही रहती हैं। डायबिटीज़ रोगियों के साथ ही मोतियाबिंद या काला मोती का ऑपरेशन करवा चुके लोग भी अपनी आंखें दान कर सकते हैं। केवल यही नहीं, कुछ नेत्रहीन लोग जिनकी नेत्रहीनता की वजह रेटिनल या ऑप्टिक नर्व से सम्बंधित बीमारी है , और उनका कॉर्निया ठीक है , वह भी नेत्रदान कर सकते हैं। डॉ शर्मा कहते हैं कि नेत्रदान के महत्व को समझाने के लिए लोगों की पुरानी मानसिकता को बदलने की ज़रूरत है।
इन परिस्थितियों में नहीं किया जा सकता नेत्रदान
रेबीज़, सिफलिस, हेपेटाइटिस या एड्स जैसी बीमारियों की वजह से जिन लोगों की मौत होती है वे नेत्रदान नहीं कर सकते।
इन स्थितियों में किया जाता है कॉर्निया का प्रयोग
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दृष्टि लाभ के लिए
आंखों में पुराने घाव या अल्सर के इलाज में या
कॉर्निया के अंदरूनी हिस्से की खराबी दूर करने के लिए।
जन्म से नेत्रहीन लोगों का नेत्रदान से इलाज सम्भव नहीं है।
नेत्रदान के नियम
नेत्रदान के लिए अपने निकट के किसी आई बैंक में पंजीकरण कराएं। यदि मृतक के परिवार वाले चाहें तो वह बिना पंजीकरण कराए भी मृतक की आंखे दान कर सकते हैं। मौत के 6 घण्टे के भीतर ही आंखें दे दी जाती हैं। इसलिए करीबी लोगों को मौत के बाद आई बैंक को तुरंत सूचित करना चाहिए। कमरे का पंखा बन्द करके हो सके तो ऐ सी चला दें।
मृतक की आंखों को बंद करके उनपर गीली रुई रख देनी चाहिए। हो सके तो आंखों में कोई एंटीबायटिक दवा डाल दें ताकि इंफेक्शन का खतरा न हो। साथ ही सिर के हिस्से को 6 इंच ऊपर उठाकर रखना चाहिए।
आमतौर पर माना जाता है कि नेत्रहीन लोग नेत्रदान नहीं कर सकते, लेकिन नेत्रहीन एकता ने नेत्रदान के लिए पंजीकरण करवाकर सबके लिए एक मिसाल कायम की है। शकुंतला मिश्रा रिहैबिलिटेशन यूनिवर्सिटी में पढ़ रही गरिमा ने 12 ल की उम्र में ब्रेन ट्यूमर की वजह से अपनी आँखों की रौशनी खो दी थी। लेकिन वही एकता अपनी आँखों से किसी और की ज़िंदगी रोशन करेंगी।
कॉर्निया है बिलकुल ठीक
ब्रेन ट्यूमर से एकता की ऑप्टिक नर्व तो खराब हो गई लेकिन उनकी कॉर्निया बिलकुल ठीक है। केजीएमयू के आई बैंक के डायरेक्टर डॉ अरुण ने बताया कि जब एकता को पता चला कि ऐसे हालातों में नेत्रदान किया जा सकता है तो उन्होंने नेत्रदान के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करवा लिया।
एक साल में केजीएमयू में आए 1562 कॉर्निया डोनर, बच्चों की ऑंखें हुई ठीक
एकता की ही तरह कई लोग हैं जो दूसरों की ज़िंदगी में उजाला भरना चाहते हैं। यही वजह है कि पिछले डेढ़ साल में केजीएमयू आई बैंक में 1562 लोग कॉर्निया दान कर चुके हैं. पिछले एक साल में 10 साल की श्रेया , ,7 साल के निखिल और 9 साल के रेहान ने कॉर्निया इम्प्लांट के बाद दुनिया को दोबारा देखने का तोहफा पाया।
भारत में नेत्रहीनता सबसे बड़ा शारीरिक विकार है। देश में प्रति हज़ार शिशुओं में 9 नेत्रहीन जन्मते हैं। प्रति वर्ष 30 लाख लोगों की मौत होती है । अगर इन 30 लाख लोगों में एक प्रतिशत यानी अगर 30 हज़ार लोग भी नेत्रदान करें तो देश में नेत्रहीनता की दर काफी हद तक कम हो सकती है। ऐसा करने से व्यक्ति मरणोपरांत भी किसी का जीवन बदल सकता है।
एक कॉर्निया से दो आंखे हो सकती हैं रोशन
कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित व्यक्ति की दोनों आंखे एक ही कॉर्निया से ठीक हो सकती हैं। एक व्यक्ति की आंखे दो लोगों की ज़िंदगी रोशन कर सकती हैं।
प्रत्यारोपण में केवल कॉर्निया का उपयोग किया जाता है
आंखों के प्रत्यारोपण में केवल कॉर्निया का इस्तेमाल किया जाता है। आंख के बाकी हिस्से शोध व अध्ययन में इस्तेमाल किए जाते हैं।
नेत्रदान से जुड़ी भ्रांतियां
नेत्रदान को लेकर लोगों के मन में कई भ्रांतियां हैं । जैसे कि नेत्रदान से मृतक का चेहरा बिगड़ जाएगा। कुछ लोगों को लगता है कि नेत्रदान में काफी समय लगता है जिससे अंतिम संस्कार में देरी होगी। केजीएमयू के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ ए के शर्मा बताते हैं कि नेत्रदान में मात्र 15 से 20 मिनट का समय लगता है। आई बैंक के डॉक्टर एक छोटे से कट से केवल आंखों की कॉर्निया निकालते हैं। इससे आंखों में कोई गड्ढा नहीं पड़ता और आंखे पहले जैसी ही रहती हैं। डायबिटीज़ रोगियों के साथ ही मोतियाबिंद या काला मोती का ऑपरेशन करवा चुके लोग भी अपनी आंखें दान कर सकते हैं। केवल यही नहीं, कुछ नेत्रहीन लोग जिनकी नेत्रहीनता की वजह रेटिनल या ऑप्टिक नर्व से सम्बंधित बीमारी है , और उनका कॉर्निया ठीक है , वह भी नेत्रदान कर सकते हैं। डॉ शर्मा कहते हैं कि नेत्रदान के महत्व को समझाने के लिए लोगों की पुरानी मानसिकता को बदलने की ज़रूरत है।
इन परिस्थितियों में नहीं किया जा सकता नेत्रदान
रेबीज़, सिफलिस, हेपेटाइटिस या एड्स जैसी बीमारियों की वजह से जिन लोगों की मौत होती है वे नेत्रदान नहीं कर सकते।
इन स्थितियों में किया जाता है कॉर्निया का प्रयोग
दृष्टि लाभ के लिए
आंखों में पुराने घाव या अल्सर के इलाज में या
कॉर्निया के अंदरूनी हिस्से की खराबी दूर करने के लिए।
जन्म से नेत्रहीन लोगों का नेत्रदान से इलाज सम्भव नहीं है।
नेत्रदान के नियम
नेत्रदान के लिए अपने निकट के किसी आई बैंक में पंजीकरण कराएं। यदि मृतक के परिवार वाले चाहें तो वह बिना पंजीकरण कराए भी मृतक की आंखे दान कर सकते हैं। मौत के 6 घण्टे के भीतर ही आंखें दे दी जाती हैं। इसलिए करीबी लोगों को मौत के बाद आई बैंक को तुरंत सूचित करना चाहिए। कमरे का पंखा बन्द करके हो सके तो ऐ सी चला दें।
मृतक की आंखों को बंद करके उनपर गीली रुई रख देनी चाहिए। हो सके तो आंखों में कोई एंटीबायटिक दवा डाल दें ताकि इंफेक्शन का खतरा न हो। साथ ही सिर के हिस्से को 6 इंच ऊपर उठाकर रखना चाहिए।
नीमच गांव ने शुरू की उजली क्रांति
मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित नीमच गांव उजली क्रांति के माध्यम से नेत्रदान में सहयोग कर रहा है। इस अभियान के कारण नीमच गांव का नाम गिनीज़ बुक में दर्ज किया जा सकता है। मात्र 70000 की आबादी वाले इस गांव में 1975 से 2013 तक यहां पर करीब 1807 लोगों ने नेत्रदान किया है।
नेत्रदान का इतिहास
1837 से 1850 के बीच चिकित्सकों द्वारा पशुओं की कॉर्निया प्रत्यारोपण का पहला प्रयास विफल रहा।
1853 से 1863 - कॉर्निया की जगह पारदर्शी कांच लगाने का प्रयास
1771 - पेलियर डी किंजसी ने कॉर्निया अपारदर्शी कॉर्निया की जगह साफ सुथरी कॉर्निया प्रत्यारोपण की कल्पना की।
1888- बान हिप्प्ल ने पहली बार इंसानों की कॉर्निया का प्रत्यारोपण किया।
1906 में जिम ने माईक्रोसर्जरी और सूक्ष्म उपकरणों से सफलतापूर्वक कॉर्निया प्रत्यारोपण किया।
मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित नीमच गांव उजली क्रांति के माध्यम से नेत्रदान में सहयोग कर रहा है। इस अभियान के कारण नीमच गांव का नाम गिनीज़ बुक में दर्ज किया जा सकता है। मात्र 70000 की आबादी वाले इस गांव में 1975 से 2013 तक यहां पर करीब 1807 लोगों ने नेत्रदान किया है।
नेत्रदान का इतिहास
1837 से 1850 के बीच चिकित्सकों द्वारा पशुओं की कॉर्निया प्रत्यारोपण का पहला प्रयास विफल रहा।
1853 से 1863 - कॉर्निया की जगह पारदर्शी कांच लगाने का प्रयास
1771 - पेलियर डी किंजसी ने कॉर्निया अपारदर्शी कॉर्निया की जगह साफ सुथरी कॉर्निया प्रत्यारोपण की कल्पना की।
1888- बान हिप्प्ल ने पहली बार इंसानों की कॉर्निया का प्रत्यारोपण किया।
1906 में जिम ने माईक्रोसर्जरी और सूक्ष्म उपकरणों से सफलतापूर्वक कॉर्निया प्रत्यारोपण किया।