11 सवाल जिनका जवाब नहीं किसी के पास

दुनिया में कोरोना वायरस से जुड़े बहुत से सवालों के जवाब अब तक नहीं मिल पाये हैं। न बीमारी के बारे में और न बीमारी को रोकने के बारे में। ऐसा पहली मर्तबा हुआ है कि एक विषय पर पूरी दुनिया अंधेरे में तीर चला रही है। जानते हैं ऐसे 11 सवाल के बारे में जो हैं बहुत महत्वपूर्ण लेकिन जवाब मिलना बाकी है।“

Update:2020-05-16 17:35 IST

नई दिल्ली कोरोना वायरस महामारी के बारे में सभी एक्स्पर्ट्स का एक बिन्दु पर समान जवाब होता है – ‘मुझे नहीं पता।‘ दरअसल कोरोना वायरस और इससे उपजी कोविड-19 बीमारी के बारे में कुछ बातें तो पता चली हैं जैसे कि, ये सामान्य फ्लू से कहीं ज्यादा जानलेवा है, इन्सानों से इन्सानों में फैलता है। इसके आगे बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है। इसका प्रकोप सीमित करने में सफल रहे देशों ने फिजिकल डिस्टेन्सिंग, व्यापक टेस्टिंग और संपर्क ट्रेसिंग जैसे उपायों को अपनाया है। ये वायरस आमतौर पर बुजुर्गों को पकड़ता है, लेकिन जवान लोग भी जोखिम में हैं।

इस वायरस और बीमारी के बारे में वैज्ञानिक रोज कुछ न कुछ नया पता कर रहे हैं। नए नए लक्षणों का पता चल रहा है, शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों की जानकारी मिल रही है वगैरह।

लेकिन बहुत सी चीजों के बारे में पता नहीं चला है। जैसे कि, दुनिया में कुल संक्रमित लोगों की वास्तविक संख्या कितनी है?, कुछ जगहों पर वायरस का प्रकोप एकदम नहीं या हल्का क्यों है?, किस तरह की फिजिकल डिस्टेन्सिंग सबसे ज्यादा कारगर है?, कोरोना वायरस के प्रति स्थायी इम्यूनिटी कैसे पैदा हो सकती है?, क्या वाकई में हमें साल-डेढ़ साल में वैक्सीन मिल जायेगी? इन सवालों के जवाब मिल जाने से पता चल सकेगा कि वायरस है कितना जानलेवा। इससे आधार पर लॉकडाउन खोलने का फैसला लेने में मदद मिलेगी। एक्स्पर्ट्स का कहना है कि सरकारों और निर्णय लेने वाले लोगों को बहुत ज़िम्मेदारी और सोच समझ कर फैसले लेने चाहिए। बहरहाल, जानते हैं उन 11 सवालों के बारे में जिनके जवाब मिलना बाकी हैं।

 

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1 कितने लोग संक्रमित हुये हैं?

दुनिया भर में 45 लाख से ज्यादा लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाये गए हैं। इनमें से 13 लाख अकेले अमेरिका से हैं। भारत में आंकड़ा एक लाख छूने वाला है। विश्व में 2 लाख 85 हजार मौतें भी हो चुकी हैं। 80 हजार लोग तो अकेले अमेरिका में मारे गए हैं।

लेकिन सभी एक्स्पर्ट्स का कहना है कि ये आंकड़े बहुत कम हैं। हर एक संक्रामण का पता लगाने के लिए पर्याप्त टेस्टिंग, ट्रेसिंग या व्यापक निगरानी नहीं हुई है। बहुत से लोग बीमार पद के घरों में हैं, घरों में लोगों की मौतें भी हो रही हैं। दुनिया भर में कोविड-19 के दसियों लाख संभावित केस हो सकते हैं और सैकड़ों हजारों मौतें हुई हो सकती हैं जिनका हिसाब दर्ज नहीं है। बहुर मुमकिन है कि हमें कभी भी असली आंकड़ा पता नहीं चल सकेगा। 1918 की फ्लू महामारी में कितने संक्रमित हुए और कितने मारे गए इस पर आज तक बहस जारी है।

कोविड-19 के संबंध में इस सवाल का जवाब मिलने से हमत्वपूर्ण परिणाम निकलेंगे। अगर बड़ी संख्या में लोग बीमार हो रहे हैं लेकिन मौतें ज्यादा नहीं हैं तब इसका मतलब होगा कि कोरोना वायरस उतना प्राणघातक नहीं है जितना हम सोच रहे हैं। यदि हमारे अनुमान से ज्यादा लोग संक्रमित हुये हैं और अब वे इम्यून हो चुके हैं तो बन्दिशें जल्दी खत्म हो सकती हैं। कौन संक्रमित हुआ ये पता करना भी दुरूह काम है क्योंकि वाइरस फैलाने वाले या पॉज़िटिव पाये गए कुछ लोग बिना लक्षण वाले होते हैं।

 

2 क्या टेस्टिंग और ट्रेसिंग व्यापक हो सकती है?

व्यापक टेस्टिंग और ट्रेसिंग का मसला भारत, अमेरिका समेत देशों के सामने है। व्यापक टेस्टिंग और टेस्टिंग की कमी अंधेरे में तीर चलाने जैसा है। बड़ी जनसंख्या वाले देशों में ये जटिल और मुश्किल काम है। जर्मनी और साउथ कोरिया ने बड़े पैमाने पर टेस्टिंग करके प्रकोप को कंट्रोल किया लेकिन उनकी आबादी अपेक्षाकृत कम है। टेस्टिंग और ट्रेसिंग होनी चाहिए लेकिन सवाल ये है कि क्या ऐसा संभव है? इतने किट और अन्य सामग्री उपलब्ध है?

 

3 किस तरह की फिजिकल डिस्टेन्सिंग सर्वोत्तम है?

लॉकडाउन में तो सभी चीजें बंद कर दी गईं। कौन सी जगह सेफ है और कौन सी असुरक्षित कुछ पता नहीं है सो एक समान बन्दिशें लगाईं गईं। अब शोधकर्ताओं को ये नहीं पता कि फिजिकल डिस्टेन्सिंग का कौन सा तरीका सबसे बढ़िया है। बड़े मजमों पर बैन लगाया जाय, हवाई यात्रा बंद की जाये, लोग घर से काम करें कि आफिस से, क्या किया जाए? एक्स्पर्ट्स का कहना है कि निकट संपर्क में अधिक लोग जब बंद जगह पर लंबे समय तक रहते हैं तो जोखिम बढ़ जाता है। इतना तो पता है लेकिन इसके आगे की कोई जानकारी नहीं है। कितने लोगों की भीड़ सेफ है -10, 20 या 50 या 100? रेस्तरां में अधिकतम कितने लोग एक समय में होने चाहिए? स्कूल या पार्क सेफ हैं कि नहीं? लोग खुले में जाएँ कि नहीं? एक दूसरे से 8 फुट की दूरी ठीक है या 10-12 फुट की? लोगों को कब तक बंद करके रखा जा सकता है? जॉन होपकिंस इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक अमेश अद्लजा कहते हैं कि इन सवालों का जवाब नहीं मिलने से स्थिति जटिल होती जा रही है।

 

 

4 क्या बच्चे कोरोना वायरस फैला सकते हैं?

महामारी आए हुए चार महीने तो हो ही चुके हैं लेकिन अभी तक ये नहीं पता कि इसमें बच्चों की क्या भूमिका है। हावर्ड यूनिवर्सिटी के महामारी विशेषज्ञ बिल हनागे का कहना है कि ये सवाल बहुत महत्वपूर्ण है और दुर्भाग्य से इसका जवाब हमारे पास नहीं है।

पहले तो यही स्पष्ट नहीं था कि बच्चे इस वायरस सेबीमार पद सकते हैं कि नहीं और क्या बच्चे वायरस फैला सकते हैं। समय बीतने के साथ पता चला कि बच्चे भी बीमार पड़ सकते हैं। वो पूरी तरफ सेफ नहीं हैं। अब तो ये पता चला है कि कोरोना वायरस पॉज़िटिव बच्चों में रहस्यमय लक्षण मिल रहे हैं। बच्चों के बारे में दिक्कत ये है कि उन पर फिजिकल डिस्टेन्सिंग लागू करना बहुत मुश्किल है। बच्चे ज्यादा लोगों के संपर्क में आते हैं। बच्चों पर वायरस के प्रभाव का पक्के तौर पर पता चले तो उसी आधार पर स्कूलों के बारे में फैसला लिया जा सकता है। फिलहाल इस मसले पर रिसर्च जारी हैं।

 

5 कुछ जगहें बड़े पैमाने पर प्रकोप से कैसे बच गईं?

एक सवाल जो सबको हैरान कर रहा है वह यह है कि कोविड-19 का प्रकोप अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग क्यों है। न्यूयॉर्क बुरी तरह प्रभावित है लेकिन टोक्यो में ज्यादा असर नहीं है जबकि दोनों जगह का मौसम, आबादी लगभग समान है। मिशिगन का बुरा हाल है लेकिन ओहायो में ज्यादा दिक्कत नहीं है। मुंबई बेहाल है लेकिन बंगलुरु ठीक है। इंदौर त्रस्त है लेकिन रायपुर में हाल ठीक हैं। क्या है इसकी वजह? एक जवाब हो सकता है कि जिन जगहों ने त्वरित कार्रवाई की वो बचे रहे हैं। लेकिन ये भी कोई सीधा जवाब नहीं है। किस्मत की बात भी कही जा सकती है। शोधकर्ता इस सवाल से जूझ रहे हैं। कोई एक कारण समझ नहीं आ रहा है। इसका जवाब मिल जाये तो किसी एक मॉडेल को अपनाया जा सकता है।

 

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6 मौसम का क्या असर है?

पहले कहा जा रहा था कि गरम मौसम में कोरोना वायरस का प्रकोप शांत हो जाएगा। लेकिन ये बात भी गलत साबित हो रही है। धूप, ज्यादा तापमान, ज्यादा ह्यूमीडिटी ये सब फैक्टर बेकार हो गए हैं। भारत में गरमियाँ आ चुकी हैं लेकिन केस बढ़ रहे हैं। कोरोना वायरस पर तापमान और यूवी प्रकाश का प्रभाव प्रयोगशाला में आँका गया जहां नतीजे उत्साहजनक आए लेकिन लैब के बाहर ये वायरस पहले की भांति बेकाबू है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जो लोग जोखिम में हैं उनके बारे में मौसम, तापमान आदि का कोई प्रभाव काम नहीं करेगा। लेकिन अभी कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता।

 

7 क्या पार्क और समुद्र तट खोल दिये जाएँ?

खुली जगहें अपेक्षाकृत सुरक्शित तो हैं लेकिन सवाल ये है कि वहाँ किस तरह की फिजिकल डिस्टेन्सिंग का पालन किया जाना चाहिए?, क्या अंजान लोगों के बीच जाना सेफ होगा?, क्या वृद्ध और किसी तरह की मेडिकल कंडीशन से ग्रसित लोग पार्क या खुले में सेफ रहेंगे?

8 क्या स्थायी इम्यूनिटी बन सकती है?

एक भयावह संभावना दिखाई पड़ती है कि कोविड-19 से संक्रमित लोगों को लंबे समय तक की इम्यूनिटी कभी न मिल पाये। हो सकता है कि चंद हफ्तों, महीनों या वर्षों की इम्यूनिटी विकसित हो। दरअसल फ्लू या सर्दी जुकाम के प्रति भी बहुत लोगों में इम्यूनिटी नहीं बन पाती है। कोरोना वायरस के बारे में तो अभी कुछ पता ही नहीं है। डरावनी बात ये है कि ठीक हो गए लोगों को फिर से संक्रमण होने के वाकये सामने आए हैं। लेकिन ये गलत टेस्टिंग का भी नतीजा हो सकता है। अगर अस्थायी इम्यूनिटी बनती है तो कोविड-19 बीमारी कुछ कुछ समय के अंतराल पर आती-जाती रहेगी।

 

 

9 क्या साल-डेढ़ साल में वैक्सीन आ जाएगी?

खबरें तो बहुत आ रही हैं कि वैक्सीन बहुत जल्द आने वाली है। लेकिन अभी कुछ भी पक्के तौर पर पता नहीं है। डब्लूएचओ तक को अंदेशा है कि वैक्सीन कभी आ भी पाएगी कि नहीं। एक्स्पर्ट्स का कहना है कि अगर वैक्सीन आई भी तो उसमें 6 महीने से लेकर 16 साल तक का समय लग सकता है। हड़बड़ी में वैक्सीन आ गई भी तो उसके भी जोखिम हैं। अमेरिका ने स्वाइन फ्लू की वैक्सीन आनन-फानन में उतारी थी लेकिन बाद में पता चला कि इस वैक्सीन से एक दुर्लभ न्यूरो गड़बड़ी पैदा हो सकती है। 450 लोग इससे ग्रसित भी हो गए, एक्स्पर्ट्स का कहना है कि उस वैक्सीन से फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुआ।

 

10 क्या कोविड-19 का कोई इलाज आयेगा?

कोरोना वायरस की वैक्सीन न मिल पाने की स्थिति में उम्मीद इलाज से है। आस है कि कोविड-19 के इलाज या इस बीमारी को कम खतरनाक बनाने वाली दवा जरूर मिल जाएगी। एचआईवी की दशा में यही हुआ है। एचआईवी की कोई सुरक्शित और प्रभावी वैक्सीन आज तक नहीं मिल पायी लेकिन दवा जरूर मिल गई हैं। इन दवाओं का काफी असर देखा गया है। एंटी रेट्रोवाइरल्स से न सिर्फ वायरस दाब जाता है बल्कि फैलने भी नहीं पाता। कोरोना वायरस की भी ऐसी ही दवा खोजने की रिसर्च चल रही हैं। लेकिन दवा कब आएगी और कितना असरदार होगी इसके बारे में अभी कोई निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता।

 

11 क्या वेंटिलेटर्स की जरूरत है?

कोरोना वायरस का प्रकोप आते ही वेंटिलेटर्स की बड़ी जरूरत समझी गई। बड़े पैमाने पर उत्पादन किया गया। अस्पतालों में व्यापक सप्लाई की गई। लेकिन लॉकडाउन और फिजिकल डिस्टेन्सिंग के परिणामस्वरूप वेंटिलेटर्स की उतनी जरूरत नहीं पड़ी है जितनी सोची गई थी। इसके अलावा एक और बात निकाल कर आई है कि वेंटिलेटर्स बहुत मददगार नहीं हैं। लंबे समय तक मरीजों को वेंटिलेटर पर रखने से शरीर को स्थाई नुकसान पहुंचता है। कोरोना वायरस से संघर्ष में वेंटिलेटर की भूमिका अभी तक स्पष्ट नहीं है।

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