छोटे शहर के बड़े सपने: देश के इन प्रसिद्ध चेहरों ने गरीबी से लड़कर बनाई पहचान

कीचड़ में जन्म लेने वाला कमल भी कभी देवाशीष पायेगा, ऐसा नहीं सोचा था। आज बात कर रहे उन पाँच भारतीय प्रतिभा की जिन्होने यह साबित कर दिखाया की जीतने वाले छोङते नहीं, छोड़ने वाले जीतते नहीं।  अपने कड़ी मेहनत, उच्ची सोच, पक्का इरादा के बल पर बन चुके है लाखों युवाओं के रॉल मॉडल है ये सब।

Update:2020-07-29 09:05 IST

लखनऊ कीचड़ में जन्म लेने वाला कमल भी कभी देवाशीष पायेगा, ऐसा नहीं सोचा था। आज बात कर रहे उन पाँच भारतीय प्रतिभा की जिन्होने यह साबित कर दिखाया की जीतने वाले छोङते नहीं, छोड़ने वाले जीतते नहीं। अपने कड़ी मेहनत, उच्ची सोच, पक्का इरादा के बल पर बन चुके है लाखों युवाओं के रॉल मॉडल है ये सब।

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भारत के उन 5 टैलेन्ट की बात कर रहे जो छोटे शहर से निकलकर अपनी पहचान बनाए है। इनमें हिमा दास, मैथिली ठाकुर, एमएस धोनी, शिक्षक आनंद कुमार, शिक्षक आरके श्रीवास्तव ने यह साबित कर दिखाया की गरीबी अभिशाप नहीं, वरदान बन सकता है ।

 

हिमा दास- उड़नपरी गोल्ड मेडलिस्ट

हिमा दास (जन्म 09 जनवरी 2000) असम के ढिंग, नगाँव की रहने वाली एक भारतीय धावक हैं। वो आईएएएफ वर्ल्ड अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। हिमा ने 400 मीटर की दौड़ स्पर्धा में 51.46 सेकेंड का समय निकालकर स्वर्ण पदक जीता।

वर्ल्ड अंडर-20 चैंपियनशिप,स्वर्ण 2018 टेम्पेरे400 मीटर ।अप्रैल 2018 में गोल्ड कोस्ट में खेले गए कॉमनवेल्थ खेलों की 400 मीटर की स्पर्धा में हिमा दास ने 51.32 सेकेंड में दौर पूरी करते हुए छठवाँ स्थान प्राप्त किया था। तथा 4X400 मीटर स्पर्धा में उन्होंने सातवां स्थान प्राप्त किया था। हाल ही में गुवाहाटी में हुई अंतरराज्यीय चैंपियनशिप में उन्होंने गोल्ड मेडल अपने जीता था। इसके अलावा 18वें 2018 एशियाई खेल जकार्ता में हिमा दास ने दो दिन में दूसरी बार महिला 400 मीटर में राष्ट्रीय रिकार्ड तोड़कर रजत पदक जीता है।

 

2019 में हिमा ने पहला गोल्ड मेडल 2 जुलाई को 'पोज़नान एथलेटिक्स ग्रांड प्रिक्स' में 200 मीटर रेस में जीता था. इस रेस को उन्होंने 23.65 सेकंड में पूरा कर गोल्ड जीता था। 7 जुलाई 2019 को पोलैंड में 'कुटनो एथलेटिक्स मीट' के दौरान 200 मीटर रेस को हिमा ने 23.97 सेकंड में पूरा करके दूसरा गोल्ड मेडल हासिल किया था। 13 जुलाई 2019 को हिमा ने चेक रिपब्लिक में हुई 'क्लांदो मेमोरियल एथलेटिक्स' में महिलाओं की 200 मीटर रेस को 23.43 सेकेंड में पूरा कर फिर से तीसरा गोल्ड मेडल हासिल किया था। 19 साल की हिमा ने बुधवार 17 जुलाई 2019 को चेक रिपब्लिक में आयोजित 'ताबोर एथलेटिक्स मीट' के दौरान महिलाओं की 200 मीटर रेस को 23.25 सेकेंड में पूरा कर फिर से चौथा गोल्ड मेडल हासिल किया।

 

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मैथिली ठाकुर-सूरों की मल्लिका

मैथिली ठाकुर एक भारतीय गायिका हैं। वह 2017 में प्रसिद्धि के लिए बढ़ी जब उसने राइजिंग स्टार के सीज़न 1 में भाग लिया। मैथिली शो की पहली फाइनलिस्ट थी, उन्होंने ओम नमः शिवाय गाया, जिससे फाइनल में सीधे प्रवेश किया। वह दो वोटों से हारकर दूसरे स्थान पर रही। शो के बाद, उनकी इंटरनेट लोकप्रियता बढ़ गई। यूट्यूब और फेसबुक पर उनके वीडियो अब 70,000 से 7 मिलियन के बीच मिलते हैं। वह मैथिली और भोजपुरी गाने गाती है जिसमें छठ गीत और कजरी शामिल हैं। वह अन्य राज्यों से कई तरह के बॉलीवुड कवर और अन्य पारंपरिक लोक संगीत भी गाती हैं।

मैथिली का जन्म 25 जुलाई 2000 को बिहार के मधुबनी जिले में स्थित बेनीपट्टी नामक एक छोटे से शहर में हुआ था। उनके पिता रमेश ठाकुर, जो खुद अपने क्षेत्र के लोकप्रिय संगीतकार थे, और माता भारती ठाकुर, एक गृहिणी। उसका नाम उसकी मां के नाम पर रखा गया था। उसके दो छोटे भाई हैं, जिनका नाम रिशव और अयाची है, जो उनकी बड़ी बहन की संगीत यात्रा का अनुसरण करते हैं, जो तबला बजाकर और गायन में उनका साथ देते हैं। उसने अपने पिता से संगीत सीखा। अपनी बेटी की क्षमता को महसूस करते हुए और अधिक अवसर प्राप्त करने के लिए, रमेश ठाकुर ने खुद को और अपने परिवार को द्वारका नियर नई दिल्ली में स्थित किया। मैथिली और उनके दो भाइयों की शिक्षा वहाँ के बाल भवन इंटरनेशनल स्कूल में हुई थी।

मैथिली की संगीत यात्रा 2011 में शुरू हुई, जब वह ज़ी टीवी में प्रसारित होने वाले लिटिल चैंप्स नामक एक रियलिटी शो में दिखाई दी। हालाँकि वह पहले भी कई स्थानीय कार्यक्रमों में दिखाई दी थीं, लेकिन इस रियलिटी शो के माध्यम से उन्हें पहचान मिली। 2015 में एक भारतीय संगीत शो "आई जीनियस यंग सिंगिंग स्टार" जीता और उन्होंने एक एल्बम हां रब्बा (यूनिवर्सल म्यूजिक) भी लॉन्च किया। उनके फेसबुक चैनल के 2 मिलियन से अधिक फॉलोअर हैं और इंस्टाग्राम पर उनके 700,000 से अधिक अनुयायी हैं।

 

महेंद्र सिंह धोनी- मिस्टर कूल

महेंद्र सिंह धोनी अथवा मानद लेफ्टिनेंट कर्नल महेंद्र सिंह धोनी (एम एस धोनी भी) झारखंड, रांची के एक राजपूत परिवार में जन्मे पद्म भूषण, पद्म श्री और राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित क्रिकेट खिलाड़ी हैं। वे भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और भारत के सबसे सफल एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कप्तान रह चुके हैं। शुरुआत में एक असाधारण उज्जवल व आक्रामक बल्लेबाज़ के नाम पर जाने गए। धोनी भारतीय एक दिवसीय के सबसे शांतचित्त कप्तानों में से जाने जाते हैं। उनकी कप्तानी में भारत ने 2007 आईसीसी विश्व ट्वेन्टी 20, 2007–08 कॉमनवेल्थ बैंक सीरीज 2011 क्रिकेट विश्व कप, आइसीसी चैम्पियंस ट्रॉफ़ी 2013 और बॉर्डर-गावस्कर ट्राफी जीती जिसमें भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 4-0 से हराया। उन्होंने भारतीय टीम को श्रीलंका और न्यूजीलैंड में पहली अतिरिक्त वनडे सीरीज़ जीत दिलाई। 02 सितम्बर 2014 को उन्होंने भारत को २४ साल बाद इंग्लैंड में वनडे सीरीज में जीत दिलाई।

आनन्द कुमार- सुपर 30 आईआईटीयन बनने का सपना दिखाना

आनन्द कुमार (जन्म 1 जनवरी 1973) एक भारतीय गणितज्ञ, शिक्षाविद तथा बहुत सी राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय गणित की पत्रिकाओं के स्तम्भकार हैं। उन्हें प्रसिद्धि सुपर 30 कार्यक्रम के कारण मिली, जो कि उन्होंने पटना, बिहार से 2002 में प्रारम्भ किया था, जिसके अन्तर्गत आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों को आईआईटी संयुक्त प्रवेश परीक्षा की तैयारी करवाया जाता है। 2018 के आँकड़ों के अनुसार, उनके द्वारा प्रशिक्षित 480 में 422 छात्र भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के लिये चयनित हो चुके हैं। डिस्कवरी चैनल ने भी इनके कार्यों पर लघु फ़िल्म बनाई है।उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका के मैसच्युसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान तथा हार्वर्ड विश्वविद्यालय द्वारा उनके कार्यों पर बोलने के लिये निमंत्रण मिला। आनंद कुमार अपने सफ़लता का श्रेय अपने माॅ जयंती देवी को देते है।

 

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आरके श्रीवास्तव-1 रूपया गुरू दक्षिणा

ये स्टोरी है चर्चित मैथेमैटिक्स गुरू फेम बिहार के आरके श्रीवास्तव की, जो सिर्फ 1 रूपया गुरू दक्षिणा लेकर सैकङो गरीबों को आईआईटी,एनआईटी, बीसीईसीई सहित देश के प्रतिष्ठित संस्थानो मे दाखिला दिलाकर उनके सपने को पंख लगा चुके है। एक वक्त था जब हिंदी मीडियम के बच्चे खुद को अंग्रेजी मीडियम के बच्चों के आगे कमजोर मानते थे, लेकिन अब ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। बस आपको खुद पर भरोसा होना चाहिए। आरके श्रीवास्तव को खुद पर और खुद की मेहनत पर पूरा भरोसा था। मेहनत और संघर्ष के आगे वह कभी कोताही नहीं बरतते थे

बिहार के रोहतास जिले के एक छोटे से गांव बिक्रमगंज में पले पढ़े आरके श्रीवास्तव स्कूल के दिनों में कभी जमीन पर बैठकर पढ़ाई किया करते थे, बचपन में 5 वर्ष की उम्र में पिताजी पारस नाथ लाल के गुजरने के बाद माँ आरती देवी ने काफी संघर्ष कर पढाया । आरके श्रीवास्तव अपने सफ़लता का श्रेय मां के संघर्षों को देते है। आज माँ अपने बेटे की उपलब्धियो पर गर्व करती है।

आज वह देश के चर्चित हस्तियां में शुमार है। देश के टॉप 10 शिक्षको में आरके श्रीवास्तव का नाम आ चूका है। वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्डस में भी दर्ज हो चूका है नाम, उनके शैक्षणिक कार्यशैली को महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी सराहना कर चुके है ।

दर्जनों अवार्ड से सम्मानित हो चुके बिहार के अनमोल रत्न है आर के श्रीवास्तव । शिक्षण कार्य के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में नि:स्वार्थ योगदान वाले ऐसे सारे गुरुओ को पुरा देश सलाम करता है। आपको बताते चले कि बिहार आदिकाल से ही महापुरुषों की भूमि रही है, जिन्होंने हिंदुस्तान सहित पूरे विश्व को मार्ग दिखाया।

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