गांव से हारी महामारी: कभी थी यहां भोजन की कमी, अब लॉकडाउन में भी सभी खुशहाल
पूरा देश लॉकडाउन में है। कोविड-19 ने पूरे देश को प्रभावित कर रखा हैं। लेकिन इन सब के बीच लगभग 400 लोगों की आबादी वाले इस छोटे से आदिवासी गांव में सब ठीक है। जी ये गांव मध्य प्रदेश में पन्ना टाइगर रिजर्व के नज़दीक कोटा गुंजापुर है। इ
पन्ना: पूरा देश लॉकडाउन में है। कोविड-19 ने पूरे देश को प्रभावित कर रखा हैं। लेकिन इन सब के बीच लगभग 400 लोगों की आबादी वाले इस छोटे से आदिवासी गांव में सब ठीक है। जी ये गांव मध्य प्रदेश में पन्ना टाइगर रिजर्व के नज़दीक कोटा गुंजापुर है। इस गांव को जब सरकार की ओर से राशन पैकेटों की आपूर्ति की गई, तो कई परिवारों ने उन्हें यह कहते हुए लौटा दिया कि उनके पास पर्याप्त खाना है और इस खाने के पैकेट से संकटग्रस्त लोगों की मदद की सकती है।
कुपोषण और नौकरियों की कमी
बता दें कि 5 साल पहले, इस गांव में पानी की कमी, बच्चों में कुपोषण और नौकरियों की कमी थी, जिसके कारण यहां से हर साल बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा था। लेकिन थोड़ी सी मदद के साथ, गांव ने खुद की पहचान बना ली है और आज आत्मनिर्भर गांव है।
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'टेक होम राशन’
पहले बस्ती में बच्चे गंभीर कुपोषण से पीड़ित थे। स्थानीय लोगों के पास पूरे साल के लिए खाने को भोजन नहीं होता था और किसान कर्ज में डूबे रहते थे। अपने अधिकारों से अनजान यहां के लोग हर साल दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में चले जाते थे ताकि वे जीवन यापन कर सकें। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता महीने में एक बार आती थीं और एक पेड़ के नीचे 'टेक होम राशन’ बांटने के बाद चली जाती थी।
80% स्थानीय लोग का पलायन
76 परिवारों के 400 लोगों के छोटे से गांव से 80% स्थानीय लोग काम की तलाश में महानगरों की ओर पलायन कर गए थे। वे सिर्फ बच्चों और बुजुर्गों को पीछे छोड़ गये थे, जिन्हें सरकारी पेंशन पर ही गुजारा करना पड़ता था। लेकिन 2015 में, एनजीओ 'विकास संवाद' के स्वयंसेवक लोगों के मुद्दों को सुलझाने के लिए इस छोटे गांव में पहुंचे। लगातार प्रयासों से स्वयंसेवक लोगों से बातचीत कर अशिक्षा की दीवार तोड़ने में कामयाब रहे।
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इस तरह हुई पहल
निवासियों को उनके अधिकारों और एक समुदाय के रूप में सामूहिक रूप से एकजुट होने और बोलने के महत्व के बारे में जागरूक किया । इस छोटे गांव में सुधार के प्रयासों के तहत गांव में 15 महिलाओं का एक समूह बनाया गया था। तेरह युवाओं का समूह भी बनाया गया और स्कूली शिक्षा, स्वास्थ्य जागरूकता और पाठ्यक्रम से अलग गतिविधियों में लगाया गया। लिंग के अंतर को घटाने के लिए, छह लड़कियों को भी इसमें शामिल किया गया। बच्चों को भी इकट्ठा किया गया और स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, पर्यावरण और खेल के महत्व के बारे में सिखाया गया।
पहले का पिछड़ा और गरीब क्षेत्र अब एक उदाहरण के रूप में खड़ा है। यह स्वयं का एक बीज बैंक चलाता है और आस-पास के गाँवों को बीज प्रदान करता है। यह उन लोगों को भी जैविक खेती, वाटर रिचार्ज तकनीक और उन अधिकारों के बारे में जागरुकता सिखाता है जिन्हें इसकी जरूरत है।