राम मंदिर पर एक फैसला 1886 में भी आया था

1883 में हनुमानगढ़ी के महंत रघुबर दास ने बाबरी मस्जिद के पास एक चबूतरा बनाना शुरू किया। इसकी शिकायत मस्जिद के इमाम या मुअज्जिन ने मजिस्ट्रेट से की।

Update: 2019-11-09 08:44 GMT

लखनऊ: 1883 में हनुमानगढ़ी के महंत रघुबर दास ने बाबरी मस्जिद के पास एक चबूतरा बनाना शुरू किया। इसकी शिकायत मस्जिद के इमाम या मुअज्जिन ने मजिस्ट्रेट से की। जिस पर जिला प्रशासन ने निर्माण रुकवा दिया। रघुबर दास ने 1885 में उप न्यायाधीश पंडित हरि किशन की अदालत में दरख्वास्त लगाई जिस पर कोर्ट ने मंदिर निर्माण की अनुमति देने से इनकार कर दिया।

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रघुबर दास 17 मार्च, 1886 को फैजाबाद के जिला जज कर्नल एफ.ई.ए. कैमियर की कोर्ट में पहुंचे। रघुबर दास ने दरख्वास्त की कि जन्मस्थान से मुस्लिमों का कब्जा हटाया जाए। जिरह सुनने के बाद जस्टिस कैमियर ने अपने फैसले में ये मान लिया कि मस्जिद हिंदुओं की जगह पर बनी है, लेकिन कैमियर ने ये भी कहा कि अब देर हो चुकी है।

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356 साल पुरानी गलती को अब सुधारना मुमकिन नहीं है, इसलिए यथास्थिति बनाए रखें। इस तरह से अयोध्या विवाद का पहला मुकदमा यथास्थित बनाए रखने के आदेश के साथ खारिज हो गया।

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