प्रणव के बेटे के खिलाफ चुनाव मैदान में भाजपा ने उतारा माफूजा खातनू को

Update:2019-04-19 16:27 IST
प्रणव के बेटे के खिलाफ चुनाव मैदान में भाजपा ने उतारा माफूजा खातनू को

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में भाजपा की पहली मुस्लिम प्रत्याशी माफूजा खातून पार्टी मुर्शिदाबाद जिले की जांगीपुर संसदीय सीट पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पुत्र अभिजीत मुखर्जी के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं। माफूजा का दावा है कि उन्हें इलाके में लोगों का भरपूर समर्थन मिल रहा है। वह अपने चुनाव अभियान के दौरान इलाके के बीड़ी मजदूरों की समस्याओं को समझने का प्रयास कर रही हैं ताकि जीतने के बाद इस मुद्दे को संसद में उठा सकें। जांगीपुर इलाके के लगभग 24 लाख से ज्यादा की आबादी में से 60 फीसदी लोग बीड़ी बनाने के धंधे से जुड़े हैं। जांगीपुर की आबादी में 67 फीसदी मुस्लिम हैं। इसे ध्यान में रखते हुए ही कांग्रेस के अलावा बाकी दलों के उम्मीदवार मुस्लिम ही हैं।

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सीपीएम के टिकट पर दक्षिण दिनाजपुर जिले की कुमारगंज सीट से दो बार (वर्ष 2001 और 2006) विधायक रहीं माफूजा ने वर्ष 2016 के विधानसभा चुनावों में पराजय के साल भर बाद भाजपा ज्वाइन कर ली थी। बीते साल बंगाल में पंचायत चुनावों के दौरान अपने भाषणों से वे सुर्खियों में आईं थीं।

माफूजा कहती हैं कि भाजपा अब पहले जैसी नहीं रही। बंद कमरे में होने वाली बैठकों के दौरान भी पार्टी का कोई नेता मुसलमानों के खिलाफ नहीं बोलता है। मैं पार्टी के बारे में वोटरों की धारणा बदलना चाहती हूं। उनका दावा है कि कई अल्पसंख्यक संगठन भी यहां भाजपा का समर्थन कर रहे हैं। माफूजा कहती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुस्लिम महिलाओं की तकलीफपर ध्यान देने और उसे दूर करने की दिशा में पहल करने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। उनकी पहल और विकास के एजेंडे से प्रभावित होकर ही मैंने भाजपा में शामिल होने का फैसला किया। माफूजा को भाजपा ने बीते साल मुर्शिदाबाद जिला मुख्यालय बहरमपुर का पर्यवेक्षक बनाया था।

लगातार बढ़ा है भाजपा का प्रभाव

जांगीपुर लोकसभा क्षेत्र में भाजपा का असर बीते कुछ वर्षों में लगातार बढ़ा है। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों के बाद हर बार जहां कांग्रेस और सीपीएम के वोटों में लगातार गिरावट दर्ज की गई वहीं भाजपा के वोट लगातार बढ़े हैं। वर्ष 2009 में 1.28 लाख वोटों के अंतर से यह सीट चुनाव जीतने वाले प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति बनने की वजह से वर्ष 2012 में इस सीट से इस्तीफा दे दिया था। उस साल हुए उपचुनावों में प्रणब के पुत्र अभिजीत कांग्रेस के टिकट पर जीत तो गए, लेकिन उनकी जीत का अंतर महज ढाई हजार वोटों का रहा। तीन साल में कांग्रेस के वोटों का आंकड़ा भी 15 फीसदी घट गया। पारंपरिक रूप से यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी लेकिन यहां उसकी हालत लगातार कमजोर हो रही है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मिलने वाले वोटों में 20 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई थी और अभिजीत लगभग आठ हजार वोटों से चुनाव जीते। वर्ष 2009 और 2012 में यहां कोई उम्मीदवार नहीं देने वाली तृणमूल कांग्रेस 2014 में तीसरे स्थान पर रही। उसे 18.54 फीसदी वोट मिले थे। यहां सीपीएम के वोटों में भी लगभग 7.45 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। अबकी लेफ्ट फ्रंट ने यहां अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है।

 

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