आचार्य चतुरसेन शास्त्री: आत्मसम्मान के लिए छोड़ दी नौकरी, ऐसे बने महान लेखक

शास्त्री का पहला उपन्यास हृदय-की-परख 1918 में प्रकाशित हुआ था। हालांकि इससे उनकी पहचान नहीं बन पाई। उसके बाद साल 1921 में उनकी दूसरी किताब सत्याग्रह और असाहयोग प्रकाशित हुई, जो कि गांधीजी पर केन्द्रित आलोचनात्मक पुस्तक थी।

Update: 2021-02-02 11:10 GMT
आचार्य चतुरसेन शास्त्री: आत्मसम्मान के लिए छोड़ दी नौकरी, ऐसे बने महान लेखक

लखनऊ: अगर हिंदी के प्रमुख लेखकों के बारे में बात की जाए तो उसमें आचार्य चतुरसेन शास्त्री का नाम आना लाजिमी है। चतुरसेन ने कई ऐतिहासिक कथाएं लिखीं। इनके अधिकतर लेखन ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित रहे। अपनी रचनाओं के जरिए आज भी वो लोगों के दिलों में जिंदा हैं। आज उनके पुण्यतिथि के मौके पर हम आपको उनसे जुड़ी कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं।

ऐसा रहा शास्त्री का जीवन

चतुरसेन शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के एक छोटे से गांव औरंगाबाद चंडोक में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में पाने के बाद वो आगे की शिक्षा के लिए राजस्थान के जयपुर चले गए। यहां उन्होंने संस्कृत कॉलेज में दाखिला लिया और आयुर्वेद व शास्त्री में आयुर्वेद की उपाधि हासिल की। इसके अलावा आचार्य ने आयुर्वेदाचार्य की उपाधि भी प्राप्त की।

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आत्म सम्मान के लिए नौकरी से दिया इस्तीफा

दिल्ली में आयुर्वेदिक चिकित्सक के तौर पर अभ्यास पूरा करने के बाद उन्होंने खुद की आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी खोलने का निर्णय लिया। लेकिन ये प्लान काम नहीं किया और कुछ दिनों बाद इसे बंद करना पड़ा। अब क्योंकि काम करना जरुरी था तो एक अमीर शख्स के धर्मार्थ औषधालय में शामिल होने का फैसला कर लिया। इसके बाद लाहौर में आयुर्वेद के वरिष्ठ प्रोफेसर के तौर पर काम किया। लेकिन अपने आत्म सम्मान के लिए इस नौकरी से इस्तीफा दे दिया।

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(फोटो- सोशल मीडिया)

दरअसल, 1917 में शास्त्री लाहौर के डीएवी कॉलेज में एक आयुर्वेद के वरिष्ठ प्रोफेसर के रूप में कार्य कर रहे थे। लेकिन कॉलेज का प्रबंधन उनका अपमान कर रहा था, इसलिए उन्होंने अपना इस्तीफा देना ही लाजिमी समझा। इसके बाद वो अपने औषधालय में अपने ससुर की मदद करने के लिए अजमेर चले गए। यहीं पर उन्होंने लिखना शुरू किया और यहीं से शुरू हुआ उनका एक कहानीकार और उपन्यासकार बनने का सफर।

1918 में प्रकाशित हुआ पहला उपन्यास

शास्त्री का पहला उपन्यास हृदय-की-परख 1918 में प्रकाशित हुआ था। हालांकि इससे उनकी पहचान नहीं बन पाई। उसके बाद साल 1921 में उनकी दूसरी किताब सत्याग्रह और असाहयोग प्रकाशित हुई, जो कि गांधीजी पर केन्द्रित आलोचनात्मक पुस्तक थी। यह काफी चर्चित रही। आचार्ज ने करीब साढ़े चार सौ कहानी, 32 उपन्यास और कई नाटक लिखे। इसके अलावा उनकी कई आयुर्वेदिक पुस्तकें भी प्रकाशित हुईं। आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने 2 फरवरी 1960 को अपनी अंतिम सांस ली।

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