सावधान वकीलों: वकालत में बड़े बदलाव की तैयारी, लगेगा हड़ताल पर प्रतिबंध और होगी विदेशी फर्मों की एंट्री

Advocate Amendment Bill 2025: इसके पहले 2023 में अधिवक्ता विधेयक पेश किया गया था जिसमें "दलालों" को हटाने, अंग्रेजी शासन के समय के कानूनों को रद करने और क़ानून की किताबों में अनावश्यक अधिनियमों की संख्या को कम करने के लिए पारित किया गया था।;

Report :  Neel Mani Lal
Update:2025-02-20 15:31 IST

Advocate Amendment Bill 2025

Advocate Amendment Bill 2025:  केंद्र सरकार के विधि मंत्रालय ने कानूनी पेशे को "निष्पक्ष, पारदर्शी और सभी के लिए सुलभ" बनाने के लिए एडवोकेट्स एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव किया है और इसके लिए अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025 का मसौदा प्रकाशित किया है। संशोधन विधेयक 1961 के अधिवक्ता अधिनियम की जगह लेगा। संशोधन विधेयक में विदेशी लॉ फर्मों की एंट्री, वकालत पेशे की परिभाषा और वकीलों की हड़ताल जैसे मुद्दों पर कई नए प्रावधान जोड़े गए हैं। संशोधन विधेयक के बारे में लोग अपनी राय और प्रतिक्रिया 28 फरवरी 2025 तक इस ईमेल पर दे सकते हैं - dhruvakumar.1973@gov.in and impcell-dla@nic.in। इसके बाद विधेयक को संसद में पेश किया जाएगा। 

इसके पहले 2023 में अधिवक्ता विधेयक पेश किया गया था जिसमें "दलालों" को हटाने, अंग्रेजी शासन के समय के कानूनों को रद करने और क़ानून की किताबों में अनावश्यक अधिनियमों की संख्या को कम करने के लिए पारित किया गया था।

मसौदा विधेयक का उद्देश्य

- पीआईबी के अनुसार, 2025 का विधेयक अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में संशोधन करना चाहता है, जिसे “कानूनी पेशे को रेगुलेट करने, मुवक्किलों के हितों की रक्षा करने और अधिवक्ताओं के पेशेवर मानकों को बढ़ाने” के लिए पेश किया गया था। 1961 के मूल कानून के तहत ही बार काउंसिल ऑफ इंडिया और राज्य बार काउंसिल की स्थापना देश भर में वकीलों के आचरण और अनुशासन की निगरानी के लिए की गई थी।

'कानूनी प्रैक्टिशनर' की परिभाषा

- 2025 का विधेयक धारा 2(i) के तहत 'कानूनी प्रैक्टिशनर' की परिभाषा को व्यापक बनाता है, जिसमें विदेशी कानून फर्मों के लिए काम करने वाले अधिवक्ताओं को भी इसके दायरे में शामिल किया गया है। इसका मतलब है कि ऐसा कोई भी अधिवक्ता या विधि स्नातक कानूनी प्रोफेशनल कहलायेगा जो "अदालतों, न्यायाधिकरणों या अर्ध-न्यायिक मंचों के समक्ष कानून की प्रैक्टिस करता है या किसी निजी या सार्वजनिक संगठन में कानूनी काम करता है। इसमें वैधानिक और स्वायत्त निकाय, घरेलू और विदेशी कानून फर्म और कॉर्पोरेट संस्थाएँ भी शामिल हैं।" यानी अब कॉरपोरेट फार्मों में काम करने वाली लीगल प्रोफेशनल्स भी एडवोकेट कहलाएंगे।
यह संशोधन प्रभावी रूप से सामान्य परामर्शदाताओं और अन्य लीगल प्रोफेशनल्स को विधिक कार्य करने वाले वकीलों के समान मान्यता प्रदान करेगा। यह देश में कानूनी सलाह देने वाले लोग यानी जनरल काउंसलरों के लिए एक बड़ी जीत है, जो लंबे समय से इस मान्यता की मांग कर रहे थे।

विदेशी कानून फर्मों और वकीलों का प्रवेश

प्रस्तावित संशोधन भारत में विदेशी कानून फर्मों और विदेशी वकीलों के प्रवेश को नियंत्रित करने वाले नियम बनाने की बात करता है। इस विवादास्पद मुद्दे का बार काउंसिलों के कुछ वर्गों द्वारा कड़ा विरोध किया गया है, लेकिन संशोधित विधेयक में केंद्र सरकार को इस संबंध में नियम बनाने का अधिकार दे दिया गया है।

अब विदेशी वकीलों के प्रवेश की अनुमति देने के लिए केवल नियमों को लागू करने की आवश्यकता होगी। अभी तक बार काउंसिल का इसमें दखल था। 

कार्य बहिष्कार पर रोक

- अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत धारा 35, कदाचार के लिए अधिवक्ताओं को दंडित करने से संबंधित है। हालांकि, नए विधेयक में एक प्रावधान धारा 35-ए प्रस्तावित है जो अदालती काम से बहिष्कार या विरत रहने पर रोक लगाएगा। प्रावधान में कहा गया है कि "अधिवक्ताओं का कोई भी संघ या संघ का कोई भी सदस्य या कोई भी अधिवक्ता, व्यक्तिगत रूप से या सामूहिक रूप से, अदालतों के काम से बहिष्कार या विरत रहने का आह्वान नहीं करेगा या अदालतों के काम से बहिष्कार या विरत रहने या अदालत के कामकाज या अदालत परिसर में किसी भी तरह की बाधा उत्पन्न नहीं करेगा।" इसका उल्लंघन धारा 35 के तहत कदाचार माना जाएगा और उल्लंघनकर्ता अधिवक्ता अधिनियम और बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स, 1975 के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होगा।
ड्राफ्ट में ये भी कहा गया है कि यह उन हड़तालों में भाग लेने वाले अधिवक्ताओं पर लागू नहीं होता है जो "न्याय प्रशासन में बाधा नहीं डालते" और "पेशेवर आचरण के बारे में वैध चिंताओं" जैसे कि काम करने की स्थिति या प्रशासनिक मामलों पर ध्यान आकर्षित करने का इरादा रखते हैं। इसमें कहा गया है कि ऐसी हड़तालों में प्रतीकात्मक या एक दिवसीय सांकेतिक हड़ताल शामिल हो सकती है, बशर्ते कि वे अदालती कार्यवाही को बाधित न करें या मुवक्किलों के अधिकारों का उल्लंघन न करें। प्रस्तावित विधेयक में अधिवक्ताओं पर कड़ी निगरानी और सख्त नियम भी पेश किए गए हैं। जैसे कि, कोई भी अधिवक्ता जो अदालतों के काम से किसी भी तरह के बहिष्कार का आह्वान करता है या उसमें भाग लेता है, उसे कदाचार का दोषी माना जाएगा, जिसके लिए तत्काल अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी, जिसमें राज्य रोल से तत्काल निष्कासन भी शामिल है।
एक अन्य प्रस्तावित परिवर्तन में तीन वर्ष या उससे अधिक की आपराधिक सजा वाले वकीलों को बार में नामांकन से मना कर दिया जाएगा और उनका नाम राज्य के वकीलों की सूची से हटा दिया जाएगा।

बार काउंसिल पर केंद्र का प्रभाव

- प्रस्तावित कानून में केंद्र सरकार द्वारा नामित तीन सदस्यों को बार काउंसिल ऑफ इंडिया में शामिल करने का प्रावधान है।
-प्रस्तावित कानून के अनुसार, केंद्र सरकार को अधिवक्ता अधिनियम के किसी भी प्रावधान या धारा 49 के तहत बार काउंसिल ऑफ इंडिया को निर्देश देने की भी अनुमति होगी।
- केंद्र सरकार इस अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नियम बना सकती है, जिसमें ऐसे मामले भी शामिल हैं जिन पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया या राज्य बार काउंसिल को नियम बनाने का अधिकार है। ऐसे नियम बार काउंसिल की सदस्यता के लिए योग्यता और अयोग्यता से संबंधित हो सकते हैं। या फिर जिस तरह से बार काउंसिल ऑफ इंडिया राज्य बार काउंसिल पर अपना पर्यवेक्षण और नियंत्रण कर सकती है, उससे संबंधित हो सकते हैं।

अधिवक्ताओं का अनिवार्य पंजीकरण

- 2025 के विधेयक में एक नया प्रावधान- धारा 33ए जोड़ा गया है जो अधिवक्ताओं के उस बार एसोसिएशन के साथ पंजीकरण से संबंधित है, जहां वे आमतौर पर प्रैक्टिस करते हैं या प्रैक्टिस करने का इरादा रखते हैं। इसमें कहा गया है कि - राज्य बार काउंसिल में नामांकित कोई अधिवक्ता, जो किसी न्यायालय, न्यायाधिकरण या अर्ध-न्यायिक फोरम या किसी प्राधिकरण के समक्ष प्रैक्टिस करता है या करने का इरादा रखता है, उसे उस बार एसोसिएशन के सदस्य के रूप में खुद को पंजीकृत करवाना होगा।”
- इसमें कहा गया है कि अगर कोई अधिवक्ता अपने प्रैक्टिस के स्थान या विधि के क्षेत्र में बदलाव के कारण किसी विशेष बार एसोसिएशन को छोड़कर किसी अन्य एसोसिएशन में शामिल होता है, तो उसे 30 दिनों के भीतर उस बार एसोसिएशन को सूचित करना होगा जिसका वह सदस्य है।
- इसके अलावा, अधिवक्ताओं के लिए एक से अधिक बार एसोसिएशन में मतदान के अधिकार का प्रयोग करने पर भी सीमा लगाई गई है।

जवाबदेही

संशोधित विधेयक वकीलों की जवाबदेही भी तय करने की बात करता है। ड्राफ्ट में एक नया प्रावधान 45बी जोड़ा गया है जिसके तहत कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति को जानबूझकर या अधिवक्ता के कदाचार के कारण नुकसान होता है, तो ऐसा व्यक्ति अधिवक्ता के विरुद्ध कदाचार की शिकायत बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा निर्धारित किये गए नियमों के तहत कर सकता है।

भागीदारी बढ़ाने के उपाय

संशोधनों में कानूनी पेशे के भीतर विविधता और भागीदारी को बढ़ावा देने के प्रावधान शामिल हैं। मिसाल के तौर पर बार काउंसिल के चुनावों और समितियों में महिलाओं और हाशिए के समुदायों के लिए आरक्षण प्रदान करना। कानूनी पेशे पर ऐतिहासिक रूप से विशेषाधिकार प्राप्त समूहों का वर्चस्व रहा है इसीलिए भागीदारी बढ़ाने के लिए यह कदम उठाया गया है।
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