Agneepath Scheme: कई पूर्व फौजी अफसर केंद्र की अग्निपथ योजना के खिलाफ, बोले-टूरिस्ट संगठन बन जाएगी सेना

Agneepath scheme: अग्निपथ योजना पर कई पूर्व सैन्य अधिकारियों और रक्षा विशेषज्ञों ने गहरी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि सरकार ने पैसा बचाने के मकसद से यह योजना पेश की है।

Report :  Anshuman Tiwari
Update:2022-06-15 15:04 IST

कई पूर्व फौजी अफसर केंद्र की अग्निपथ योजना के खिलाफ (Social media)

Agneepath Scheme:  केंद्र सरकार ने भारतीय सेना के तीनों अंगों में युवाओं की भर्ती के लिए नई अग्निपथ योजना पेश की है। इस योजना के तहत एक साल में 46,000 सैनिकों की भर्तियां की जाएंगी और इन सैनिकों को अग्निवीर नाम दिया गया है। इस योजना के तहत युवाओं को चार साल तक सेना में काम करने का मौका मिलेगा सेवा अवधि पूरी होने के बाद उन्हें 11.71 लाख का करमुक्त सेवा निधि पैकेज दिया जाएगा।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और तीनों सेनाओं के प्रमुखों की ओर से मंगलवार को पेश की गई इस योजना पर कई पूर्व सैन्य अधिकारियों और रक्षा विशेषज्ञों ने गहरी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि सरकार ने पैसा बचाने के मकसद से यह योजना पेश की है मगर इस योजना से आगे चलकर सेना को भारी नुकसान होगा। इससे सेना की क्षमता प्रभावित होगी और उसे टूरिस्ट संगठन की तरह समझा जाएगा। सेना में ट्रेनिंग का सबसे ज्यादा महत्व है और जब सैनिक को अच्छे तरीके से ट्रेनिंग ही नहीं मिलेगी तो फिर उससे बेहतर काम की उम्मीद नहीं की जा सकती।

कई रेजिमेंटों के लिए खतरे की घंटी

खुद पूर्व सैनिक रह चुके पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना पर तीखी आपत्ति जताई है। एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार का यह कदम जाट रेजिमेंट, राजपूत रेजिमेंट,गोरखा राइफल्स, सिख रेजिमेंट और सिख लाइट इन्फेंट्री आदि जैसी सिंगल क्लास रेजिमेंटों के लिए खतरे की घंटी जैसा है। 

नए नियमों के अंतर्गत अब ऑल इंडिया ऑल क्लास के अंतर्गत सेना में भर्ती अभियान चलाने की तैयारी है। इससे कई रेजिमेंटों की संरचना पर भी बड़ा असर दिखेगा। इनमें राजपूत, जाट और सिख आदि रेजिमेंट शामिल हैं।

केंद्र सरकार का कदम समझ से परे

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि सरकार की ओर से इस बदलाव का कारण समझ से परे है। उन्होंने कहा कि सिंगल क्लास रेजिमेंट के साथ ऑल इंडिया ऑल क्लास का प्रयोग पहले भी किया जा चुका है। 80 के दशक में किया गया यह प्रयोग पूरी तरह विफल साबित हुआ था। उन्होंने सवाल किया कि जब मौजूदा समय में सिंगल क्लास रेजिमेंट बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं तो उसमें बदलाव क्यों किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सिंगल क्लास रेजिमेंट की परंपराएं और काम करने का अंदाज पूरी तरह अलग होता है। दूसरी पृष्ठभूमि से आए व्यक्ति से इस तरह के काम और परंपराओं के पालन की उम्मीद नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि सेना में चार साल का कार्यकाल काफी कम है और इतने कम कार्यकाल में किसी भी सहकर्मी का प्रभावी होना नामुमकिन है। 

सेना की क्षमता होगी प्रभावित 

रिटायर्ड मेजर जनरल सतबीर सिंह का कहना है कि यह योजना गले से नीचे उतरने वाली नहीं है। उन्होंने कहा कि मेरी नजर में इस योजना का मकसद सैनिकों के वेतन एवं पेंशन पर आने वाले खर्च को कम करना है। वैसे सेना की परंपरा, प्रकृति, मूल्यों और नैतिकता की बात की जाए तो केंद्र सरकार की यह योजना इन मानकों पर खरी नहीं उतरती। 

उन्होंने कहा कि इस योजना का सबसे बुरा असर यह होगा कि सेना की क्षमता कम हो जाएगी। तीनों सेनाओं में काम करने वालों के भीतर समर्पण की भावना सबसे महत्वपूर्ण होती है मगर अब सेना को टूरिस्ट संगठन की तरह समझा जाएगा।

खत्म हो जाएगी रेजिमेंट व्यवस्था

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया का कहना है कि नई व्यवस्था के तहत रेजिमेंट व्यवस्था पूरी तरह खत्म हो जाएगी। इस कदम से सैनिकों में अपने रेजिमेंट के नाम,नमक और निशान से लगाव भी खत्म हो जाएगा। उन्होंने कहा कि भारतीय सैनिकों के उत्साह और कर्तव्य परायणता की मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती रही है मगर सरकार के इस कदम से सेना में अब पुराना माहौल नहीं दिखेगा। 

उन्होंने कहा कि सैनिकों को कामचलाऊ ट्रेनिंग देने से काम नहीं चलने वाला है। सैनिकों का पूर्ण प्रशिक्षण प्राप्त करना जरूरी है नहीं तो वे किसी के भी जीवन को खतरे में डाल सकते हैं। पूर्व सैन्य अधिकारी ने कहा कि सैन्य अभियानों की जरूरतों और युद्ध के दौरान सैनिकों के कार्यकौशल के महत्व को इस योजना में पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।

सैनिकों को कामचलाऊ ट्रेनिंग खतरनाक 

लेफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद का कहना है कि केंद्र सरकार को भले ही इस योजना में पैसे का फायदा हुआ दिख रहा हो मगर देश की सुरक्षा के लिए यह योजना खतरनाक साबित हो सकती है। उन्होंने कहा कि सेना को युद्ध जीतने के लिए तैयार किया जाता है और इसमें ट्रेनिंग की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। गलवान में हमारे सैनिक चीनी सैनिकों का डटकर इसीलिए मुकाबला कर सके क्योंकि उन्हें इसके लिए बाकायदा अच्छी ट्रेनिंग मिली हुई थी। 

उन्होंने कहा कि लंबी ट्रेनिंग से जवानों को कठिन परिस्थितियों से जूझने का सलीका आता है। सेना में जाने से पहले सैनिक को अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग दी जाती है और यह ट्रेनिंग सेवाकाल के दौरान उसके लिए काफी फायदेमंद साबित होती है। जवानों को शार्ट ट्रेनिंग देने से आगे चलकर सेना को ही नुकसान होगा।

ट्रेनिंग की अवधि को अपर्याप्त बताया 

पूर्व उपसेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राज कादयान का भी मानना है कि सैनिकों के लिए ट्रेनिंग सबसे ज्यादा जरूरी है। केंद्र सरकार की योजना में ट्रेनिंग के लिए जो अवधि तय की गई है,वह पूरी तरह अपर्याप्त है। इस अवधि के दौरान सैनिकों को पूरी तरह प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि महज कामचलाऊ प्रशिक्षण से कुशल सैनिक नहीं तैयार किए जा सकते।

सैनिकों में घट जाएगी समर्पण की भावना 

रक्षा विशेषज्ञ और रिटायर्ड ब्रिगेडियर वी महालिंगम ने कहा कि मेहमान सैनिकों के दम पर कभी युद्ध नहीं जीता जा सकता। उन्होंने कहा कि अगर मेहमान सैनिक किसी भी लड़ाई की कठिन परिस्थितियों में घबराकर भागता है तो इसका सीधा दुष्प्रभाव यूनिट के दूसरे जवानों पर पड़ेगा। इससे पूरी यूनिट का माहौल खराब होगा जिसे नियंत्रित कर पाना काफी मुश्किल साबित होगा। 

उन्होंने कहा कि सेना में काम करने वाले हर सैन्यकर्मी के मन में देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना होती है। यही कारण है कि सैनिक बुरे से बुरे हालात में भी मोर्चे पर डटा रहता है ताकि उसके और उसकी यूनिट के नाम पर कोई आंच न आ सके मगर सिर्फ चार साल के लिए सेना में आने वाले जवान से इस तरह के समर्पण और जज्बे की उम्मीद करना बेमानी होगा। 

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