किसान बिल : जून से लागू हैं नए सुधार, खरीफ की उपज पर दिखेगा असर
खेती-किसानीं विधेयकों का मसला अब संसद से निकल कर सड़क पर आ चुका है, राजनीतिक दल और किसान संगठन जगह जगह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
नीलमणि लाल
लखनऊ: खेती-किसानीं विधेयकों का मसला अब संसद से निकल कर सड़क पर आ चुका है, राजनीतिक दल और किसान संगठन जगह जगह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन इसी बीच खरीफ की प्रमुख फसलें बाजार में आने को तैयार हैं। अब विवादास्पद सुधारों का शुरुआती असर सामने आने की संभावना है क्योंकि जो बातें इन विधेयकों में कहीं गयीं हैं उनके अध्यादेश तो जून में ही जारी हो चुके थे और तबसे लागू हैं।
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किसान नेताओं और अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कुछ ट्रेडर्स तो सरकारी मंडियों से बहार चले जायेंगे या इस सीजन में मंडी फीस नहीं देंगे लेकिन सुधारों का व्यापक असर कुछ बरसों में ही पता चलेगा।
नए फ़ूड बिजनेस के रजिस्ट्रेशन बढ़े
भारत के कृषि सचिव संजय अग्रवाल का कहना है कि नए फूड बिजनेस के रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदनों की संख्या में 65 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इससे ये संकेत मिलता है कि कृषि सुधारों के चलते प्राइवेट प्लेयर्स कृषि व्यापर और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निवेश करने के उत्सुक हैं।
सरकार को इसी साल सुधारों का नतीजा पता चलने की उम्मीद है। कृषि सचिव संजय अग्रवाल का कहना है कि सुधारों के चलते इसी सीज़न में किसानों को बेहतर मूल्य मिलने की आशा है। लेकिन इससे बड़ी बात ये है कि बड़े प्लेयर्स यानी कार्पोरेट्स निवेश की योजनाओं को पुख्ता रूप दे रहे हैं और किसान उपज संगठनों से खरीद करने की डील फाइनल कर रहे हैं।
संजय अग्रवाल के अनुसार फ़ूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट (एफएसएसअआई) के तहत जून से अगस्त तक 6।86 लाख नए आवेदन प्राप्त हुए हैं। पिछले साल की इसी अवधि कि तुलना में ये 65 फीसदी ज्यादा हैं।
कम से कम एक साल लगेगा
भारत कृषक समाज के अध्यक्ष अजय जाखड़ का कहना है कि सुधारों का असर रातोंरात नहीं आयेगा। हमें मक से कम फरवरी 2022 तक इंतजार करना होगा। आढ़तिये इस सीज़न में तो मंडी के भीतर ही ऑपरेट करेंगे और मंडी के इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग करेंगे। लेकिन जब शुल्क बचने के लिए वे ऐसा बिल बनायेंगे जैसे कि मंडी से बाहर व्यापर हुआ हो।
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मंडियों में कारोबार घटा
लेकिन तेलंगाना जैसे कुछ राज्यों में व्यापारियों यानी आढ़तियों ने मंडियां छोड़ना शुरू कर दिया है। चूँकि मंडियों के भीतर फीस देनी पड़ती है और बाहर के लेनदेन में कोई फीस नहीं है सो व्यापारियों को अब मंडियां सूट नहीं कर रही हैं। जून से अगस्त के बीच तेलंगाना में न सड़ने वाली जिंसों की बिक्री मंडियों के भीतर 20 से 40 फीसदी घट गयी। लेकिन इस बदलाव का कोई लाभ किसान को अभी नहीं मिला है।
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