Ambedkar Statement Controversy: 'अंबेडकर ने कहा था संघ को अपनेपन की भावना से देखता हूं', आरएसएस का दावा कितना मजबूत?
Ambedkar Statement Controversy: देश की राजनीति में संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर का नाम काफी मायने रखता है। राजनीतिक दल आरएसएस को सवर्णों का संगठन बताते हैं, जबकि आरएसएस अपनी और अंबेडकर की विचारधारा को एक जैसा बताती है। आइये जानते हैं दोनों की विचारधारा में क्या अंतर है?
Ambedkar Statement Controversy: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को लेकर एक ऐसा बयान दे दिया था, जिस पर बवाल मच गया था। कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने बीजेपी को अंबेडकर विरोधी करार देते हुए विचारधारा पर सवाल उठाए थे। यह मामला इतना बढ़ गया था कि अमित शाह को प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी पड़ गई थी, यही नहीं पीएम मोदी भी उनके समर्थन में उतर आए थे। अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को लेकर नया दावा किया है। आरएसएस दावा किया कि करीब 85 साल पहले भीमराव अंबेडकर, महाराष्ट्र में एक शाखा में आए थे, तब उन्होंने कहा था कि संघ को अपनेपन की भावना से देखता हूं। आइये जानते हैं आरएसएस का यह दावा कितना मजबूत है और उनकी विचारधाराओं में कितना अंतर है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मीडिया केंद्र विश्व संवाद केंद्र (VSK) की ओर से जारी बयान में दावा किया गया है कि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 2 जनवरी, 1940 को महाराष्ट्र के सतारा जनपद के कराड में आरएसएस की एक शाखा पर गए थे। इस दौरान उन्होंने संघ के स्वयंसेवकों को संबोधित भी किया था। उन्होंने कहा कि कुछ मुद्दों पर मतभेद हैं, लेकिन मैं संघ को अपनेपन की भावना से देखता हूं। यह कोई पहला मौका नहीं है, जब आरएसएस ने अंबेडकर और अपनी विचारधारा को एक समान बताने का प्रयास न किया हो। आरएसएस काफी लंबे समय से आंबेडकर को अपने हीरो की तरह पेश करती आई है। ऐसे में क्या आरएसएस की विचारधारा में आंबेडकर फिट बैठते हैं? आइए आज इसी की पड़ताल करते हैं।
अंबेडकर और आरएसएस के बीच बारीक अंतर
संघ से जुड़े जानकारों का मानना है कि आरएसएस और डॉ. आंबेडकर के विचार एक जैसे ही हैं। बाबा साहेब 'समता' और आरएसएस 'समरसता' की बात करती हैं, दोनों का उद्देश्य एक ही है। इन दोनों अवधारणओं के बीच बारीक अंतर है, यही अंतर अंडेकर और आरएसएस के बीच है। संघ के समरसता का अर्थ अनुसूचित जाति और जनजातियों के सुख-दुख को समझकर, उनके जीवन के साथ सामंजस्य बिठाना और उन्हें शोषण से मुक्त बनाना है। जबकि भीमराव अंबेडकर का मानना था कि समाज में जन्म और विरासत की असमानताएं समाप्त होनी चाहिए। अंबेडकर की इन्हीं दोनों असमानताओं को संघ के प्रमुख रहे माधव सदाशिव गोलवलकर ने 'प्राकृतिक' बताया था। ऐसे ही कई मुद्दे है जब दोनों के विचारों में विरोधाभास दिखता है।
भीमराव अंबेडकर ने 13 अक्टूबर, 1935 को नासिक के येवला एक कार्यक्रम में कहा था कि मैं एक हिंदू के रूप में पैदा हुआ था, लेकिन मैं एक हिंदू के रूप में नहीं मरूंगा। उनका यह बयान भी काफी अहम माना जाता है, क्योंकि आरएसएस को हिन्दूवादी संगठन माना जाता है। इससे साफ स्पष्ट है कि अंबेडकर और आरएसएस के विचार कितने अलग रहे होंगे। इसके बाद अंबेडकर ने 1956 में बौद्ध धर्म को अपना लिया था। विश्लेषकों का कहना है कि उन्होंने निराश होकर ही हिन्दू धर्म छोड़ा था। उनका उद्देश्य जाति उन्मूलन था, जो उस समय हिन्दू धर्म में संभव नहीं था। इसलिए उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया था।
अंबेडकर के पौत्र ने क्या कहा था?
वहीं, भीमराव अंबेडकर के पौत्र प्रकाश अंबेडकर ने एक कार्यक्रम में कहा था कि आरएसएस और भाजपा भारतीय संविधान को बदलने पर आमादा हैं। उनका उद्देश्य भारतीय संविधान को मनुस्मृति से बदलना है। जानकारों ने बताया कि बाबा साहब ने 25 दिसंबर, 1927 को महाड़ सत्याग्रह किया था, इस दौरान मनुस्मृति की प्रतियों को जलाया था। बाबा साहब अंबेडकर हमेश मनुस्मृति का विरोध करते रहे है, जबकि आरएसएस मनुस्मृति की बात करती रही है।
आरएसएस का मुखपत्र कहे जाने वाले ऑर्गेनाइज़र में 30 नवंबर, 1949 के अंक में एक संपादकीय छपा था, जिसमें मनुस्मृति का जिक्र किया गया था। इसके लिखा गया था कि मनुस्मृति में दर्ज मनु के कानून दुनिया की प्रशंसा का कारण हैं और वे अनुरूपता पैदा करते हैं, लेकिन हमारे संवैधानिक विशेषज्ञों के लिए निरर्थक है।
जानकारों ने यह भी कहा कि भीमराव अंबेडकर देश के पहले कानून मंत्री थे, उन्होंने जब हिन्दू कोड बिल संसद में पेश किया था तो कांग्रेस के दक्षिणपंथी नेता, भारतीय जनसंघ, आरएसएस और हिन्दू महासभा ने विरोध किया था। यही नहीं, अंबेडकर और नेहरू के पुतले भी जलाए गए थे। यह बिल हिन्दुओं को एक से ज्यादा विवाह पर रोक लगाता है।