आस्था के आंगन में अमृतसर, आप भी करें दर्शन
पंज+आब से बना पंजाब पांच नदियों के पवित्र जल से सिंचित भारत भूमि का वह पश्चिमी छोर है, जहां सिंधु नदी के किनारे सभ्याता की पहली किरण प्रस्फुटित हुई थी।
दुर्गेश पार्थसारथी
अमृतसर: पंज+आब से बना पंजाब पांच नदियों के पवित्र जल से सिंचित भारत भूमि का वह पश्चिमी छोर है, जहां सिंधु नदी के किनारे सभ्याता की पहली किरण प्रस्फुटित हुई थी। इसी धरा धाम पर विश्व के प्राचीनतम धर्म-ग्रथों में से एक 'ऋग्वेद' की रचना हुई। ऋग्वेद में जिस सप्त सिंधु का उल्लेख है वह पंजाब ही है।
गौरवशाली इतिहास से भरे इसी प्रदेश का एक प्रसिद्ध शहर है अमृतसर, जिसका इतिहास लगभग 400 साल पुराना है। इस शहर के बारे में बताया जाता है कि इसकी स्थापना सिख गुरु श्री राम दास जी ने सन 10576 में की थी। तब इस शहर का नाम रामदासपुरा था। आस्था के इस शहर के बारे में एक कथा प्रचलित है कि भगवान श्री राम के अवश्वमेध यज्ञ का घेड़ा यहीं वाल्मीकि आश्रम के पास पकड़ कर लव-कुश ने बांध दिया।
फलस्वरूप युद्ध हुआ और इस युद्ध में लव-कुश ने भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न को मुर्च्छित करते हुए महाबली हनुमान को बंधक बना लिया। यही नहीं, उन दोनों सुकुमारों ने अयोध्यापति श्रीराम को भी मूर्च्छित किया। ऋषि द्वारा बताये जाने पर स्वर्ग से अमृत कलश प्राप्त कर सबको सचेत किया और शेष बचा हुआ अमृत उन्होंने वहीं भूमि में गाड़ दिया।
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कालांतर में इसी स्थान पर चौथे गुरु श्री रामदास जी ने एक सरोवर खुदवाया जिसका जीर्णेद्धार सिखों के पंचम गुरु श्री अर्जुन देव जी ने कराया। यही वह पवित्र सरोसर है जिसमें डुबकी लगाने से कौवे हंस एवं बीबी रजनी का पिंगला पति का कोढ़ दूर हो गया था। इसी पवित्र सरोवर के बीच स्थित है सिख धर्म के आस्था का केंद्र विश्व प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर। श्री आम बोचचाल की भाषा में गोल्डन टैम्पल या श्री दरबार सहिब भी कहा जाता है।
सरोवर की लंबाई 500 फुट एंव चौ490 फुट और गहराई 18 फुट है
बरामदे युक्त जिस विशाल परिसर के मध्य बने सरोवर में यह मंदिर स्थापित है उस सरोवर की लंबाई 500 फुट एंव चौ490 फुट और गहराई 18 फुट है। इसी सरोवर के मध्य बने लगभग 65 फुट लंबे-चौड़े चबूतरे पर स्थित है। करोड़ो हिंदुस्तानियों की आस्था का केंद्र स्वर्ण मंदिर। इसी मंदिर में 'श्री गुरु ग्रंथ साहिब' रखा हुआ है। मंदिर के चारों तरफ अति सुंदर परिक्रमा है। यही वह पवित्र स्थल है जहां सिख गुरुओं के सर्वाधिक पावन चरण पड़े हैं।
दुनियाभर में कौतुहल का विषय बना यह भव्य मंदिर रेलवे स्टेशन से लगभग 2.50 किली की दूरी पर स्थित है। जहां देश-विदेश से हजारों की तादाद में लोग बिना किसी भेदभाव के आते हैं। स्वर्ण मंदिर के अतिरिक्त अमृतसर एवं इसके आसपास और भी दर्शनीय स्थल हे जिनका आस्था के साथ-साथ इतिहास से भी गहरा नाता रहा है।
शिवाला वीरभान
इस ऐतिहासिक स्थल से कुछ ही दूरी पर घी मंडी में स्थित है शिवालय बीरभा। बताया जाता है कि यह मंदिर लगभग 200 साल पुराना है। इस मंदिर के भीतर ग्यारह शिवलिंागें का एक अनोखा समूह है। मंदिर की भीतरी दीवारों पर की गइ्र ऑयल वाटर पेंटिंग धुंधली ही सही लेकिन तत्कालीन चित्रकला का उम्दा प्रदर्शन है। इस मंदिर में फूलों से किया जाने वाला श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार का शिव-शृंगार मुख्य आकर्षण का केंद्र होता है।
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शिवाला बाग भाइयां
बस स्टैंड से लगभग एक किमी उत्तर की दिशा स्थित स्वर्ण जडि़त शिखरों से युक्त भगवान शिव का भव्य मंदिर। इस मंदिर को शिवाला बाग भाइयां के नाम से जाना जाता है। 10 हजार वर्ग गज के क्षेत्रफल में बने इस मंदिर में कई देवताओं के विग्रह हैं। यहां स्थापित शिवलिंग भारत-पाक विभाजन के वक्त मुल्तान (आज के पाकिस्तान) कोई शिवभक्त अपने साथ लाया था।
दुर्ग्याणा तीर्थ
अमृतसर रेलवे स्टेश से करीब एक किमी की दूरी पर स्थित है प्रसिद्ध हिंदू मंदिर दुर्ग्याणा तीर्थ। एक विशाल परिसर के मध्य करीब 18 फुट गहरे सरोवर के बीच बना है लक्ष्मी नारायण का मंदिर। इसी मंदिर को दुर्ग्याणा अथवा शीतला माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस नयनाभिराम मंदिर का निर्माण सन 1925 में महान हिंदू चिंतक पं. मदन मोहन मालवीय जी के अमृतसर आगमन पर उनकी प्रेरणा से प्रेरित होकर लाला हरसहाय मल कपूर द्वारा करवाया गया था। संभवत: यह उत्तर भारत का पहला ऐसा नवनिर्मित सर्वाधिक मूर्तियों वाला मंदिर है।
माता मंदिर
यह मंदिर रेलवे स्टेशन से लगभग दो किमी उत्तर पश्चिम दिशा में रानी का बाम में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण कटरा स्थित माता वैष्णो देवी को केंद्रित करके किया गया है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को सहसा ऐसा आभास होता है कि वे साक्षत त्रिकुटा पर्वत पर स्थित मां वैष्णो के दरबार में अपनी हाजिरी लगा रहे हैं।
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राम तीर्थ
अमृतसर से लगीाग 10 किमी की दूरी पर पश्चिमोत्तर दिशा में अवस्थित है भगवान वाल्मीकि का आश्रम जिसे रामतीर्थ के नाम से जाना जता है। श्री राम की पत्नी सीता जी द्वारा यहां पर परित्यक्ता के रूप में जीवन व्यतीत करते हुए इसी आश्रम में रघुकुल दीपक लव एवं कुश नाम के दो पुत्रों को जन्म दिया। वर्तमान में इस स्थान पर बने सरोवर के आसपास कई प्राचीन एवं नवनिर्मित मंदिर स्थित हैं।
विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान कायम करने वाले आस्था एवं इतिहास के धरातल पर बसे अमृतसर में वर्षभर पर्यटकों का आना लगा रहता है। पर्यटकों को ठहरने के लिए महंगे होटलों से लेकर सस्ती धर्मशालएं तक उपलब्ध हैं। यहां देश के सभी बड़े नगरों से पहुंचा जा सकता है।
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