सावधान: अनियमित मानसून-अभी तो शुरुआत है

Update:2023-07-10 16:44 IST

नई दिल्ली: मौसम में बदलाव बहुत तेजी से हो रहे हैं। अनियमित मानसून, बारिश का पैटर्न, गर्मियों में तापमान में असामान्य बढ़ोतरी, पश्चिमी तट पर तीव्र तूफान, रेगिस्तान में बाढ़ और चेरापूंजी में सूखा - ये सब आने वाले दिनों की भयावहता का संकेत हैं। भारत के 7500 किमी लंबे तटवर्ती इलाके के 56 करोड़ बाशिंदे बाढ़ की चपेट के खतरे में हैं। सबसे ज्यादा खतरा गंगा और ब्रह्मïपुत्र के किनारे वाले क्षेत्रों में है।

ये डरावनी भविष्यवाणी संयुक्त राष्ट्र के एक संस्था द्वारा जलवायु परिवर्तन पर 25 सितम्बर को जारी एक रिपोर्ट में की गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में सबसे गहरा असर हिमालय के हिंदुकुश क्षेत्र में बर्फ पिघलने के कारण होगा। ध्रुवीय क्षेत्रों के बाद हिमालय के इस इलाके में बर्फ की शक्ल में पानी का सबसे बड़ा स्रोत है।

जो एशिया की 10 सबसे बड़ी नदियों को पानी देता है। हिमालय दरअसल इस क्षेत्र की आर्थिक रीढ़ है। क्योंकि यहीं पर पानी, प्राकृतिक संसाधन और जीव विविधता का व्यापक खजाना मौजूद है। सो हिमालय के ग्लेशियर में जो कुछ भी होता है वह एशिया में रह रहे २ अरब से अधिक लोगों को सीधे प्रभावित करता है।

बढ़ता तापमान

1850 यानी औद्योगिक युग की शुरुआत से विश्व का तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। अगर गैसों के उत्सर्जन की वर्तमान रफ्तार जारी रही तो पृथ्वी का तापमान 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने वर्ष 2030 तक विश्व में कार्बन उत्सर्जन 45 फीसदी तक कम करने का आह्वïन किया है।

भारतीयों पर मंडराता खतरा

भारत के 7500 किमी लंबे तट पर मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई जैसे बड़े शहर बसे हैं जो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं। इन इलाकों के बाढग़्रस्त होने की आशंका है। समुद्रों का जलस्तर बढऩे के कारण धीरेधीरे तटवर्ती से लोग पीछे हट रहे हैं। भले ही सरकारें अब तूफान की चेतावनी के सिस्टम मजबूत कर रहे हैं। तूफान के प्रकोप से बचने के लिए लोगों को तटीय इलाकों से सकुशल निकालने का काम भी ओडीशा जैसे राज्यों ने किया है। लेकिन ये सब बचाव कार्य हैं, समाधान नहीं हैं। दरअसल समुद्रों का जलस्तर बढऩे से तटीय इलाकों की जमीनें खेती योग्य नहीं रह जातीं। पीने के पानी के स्रोत बेकार हो जाते हैं। ये सब प्रभाव भारत में दिखाई भी देने लगे हैं।

मानसून के स्वरूप में बदलावों के चलते अब केरल में मानसून के पहुंचने और उत्तर-पश्चिम भारत से विदा होने की तिथियों में बदलाव हो सकते हैं। मुमकिन है कि केरल में अब मानसून की दस्तक की तारीख सात या आठ जून तय हो सकती है। राजस्थान से मानसून के छंटने की तारीख में करीब तीन सप्ताह तक की बढ़ोतरी कर इसे सितंबर के आखिरी सप्ताह निर्धारित किया जा सकता है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछले दो दशकों के दौरान दो बड़े बदलाव दिखे हैं। एक, केरल में मानसून अब करीब एक सप्ताह की देरी से पहुंचता है। अगर समय से आ भी गया तो वह निर्धारित तिथियों के अनुसार देश के दूसरे हिस्सों में नहीं पहुंचता है। दूसरा, बदलाव यह है कि उत्तर भारत में मानसून करीब तीन सप्ताह या इससे अधिक देरी से विदा हो रहा है।

उत्तर भारत पर व्यापक असर

उत्तर भारत में हाल के ज्यादातर साल में देखा गया है कि मानसून सितंबर के अंत तक सक्रिय रहता है। इसलिए विदाई होने की तारीख सितंबर के आखिर सप्ताह प्रस्तावित की जा रही है। मौसम विभाग के अनुसार, उत्तर भारत में देरी से मानसून के विदा होने से कोई नुकसान नहीं है बल्कि इससे आगामी फसलों की तैयारी में मदद मिलती है। नुकसान सिर्फ तब होता है जब विकराल बारिश की घटनाएं होती हैं।

मानूसन की बिगड़ती रफ्तार

भारत की आधे से अधिक खेती दक्षिण-पूर्वी मानसून पर आश्रित है। लेकिन यही मानसून अब अनियमित होने लगा है। बारिश कई कई हफ्ते नहीं होती है और फिर अचानक कई दिनों तक भारी बरसात होती है। कुछ इलाके बरसात के लिये तरसते हैं जबकि कुछ इलाकों में अतिवृष्टï होती है। गंभीर बात ये है कि ये पैटर्न अभी और बिगडऩे की भविष्यवाणी है। बिगड़ते मानसून के पीछे वैश्विक मौसम में बदलाव है जो अल नीनो के कारण हो रहा है। अल नीनो यानी प्रशांत क्षेत्र में तामपान का बढऩा पहले कभी कभार होता था लेकिन अब ये बारबार हो रहा है और आने वाले बरसों में स्थितियां और भी खराब होंगी।

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