किसान आंदोलन पर RSS का चर्चा के लिए प्रस्ताव, क्या बदल रहा बीजेपी का मन
आंदोलनकारी किसानों की तेजी से केंद्र सरकार के मंत्रियों से बातचीत होती रही वहीं 20 जनवरी को आखिरी दौर की बातचीत के बाद से वार्ता में गतिरोध बना हुआ है। दोनो पक्ष एक दूसरे पर अड़ियल रुख अपनाने का आरोप लगाते रहे हैं।
रामकृष्ण वाजपेयी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शीर्ष संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बेंगलुरु में शुरू हुई बैठक के पहले दिन जो आरएसएस की 2021 रिपोर्ट आई है। उसमें किसान आंदोलन को लेकर बहुत गंभीर सवाल उठाए गए हैं, जिसमें पहला सवाल यह है कि राष्ट्रविरोधी और असामाजिक ताकतें समाधान निकालने के प्रयासों को विफल करने का प्रयास कर रही हैं और दूसरा यह है कि किसी भी प्रदर्शन का बहुत लंबे समय तक जारी रहना किसी के भी हित में नहीं है।
एक दूसरे पर अड़ियल रुख अपनाने का आरोप
इसमें पहली बात जहां किसान आंदोलन के नेताओं के विचार करने के लिए है तो दूसरी केंद्र सरकार के विचार के लिए है। गौरतलब है कि 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों का आंदोलन चलते लगभग चार महीने का वक्त पूरा होने जा रहा है। आंदोलन की शुरुआत में जहां आंदोलनकारी किसानों की तेजी से केंद्र सरकार के मंत्रियों से बातचीत होती रही वहीं 20 जनवरी को आखिरी दौर की बातचीत के बाद से वार्ता में गतिरोध बना हुआ है। दोनो पक्ष एक दूसरे पर अड़ियल रुख अपनाने का आरोप लगाते रहे हैं।
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दोनो पक्षों की आखिरी बैठक में केंद्र सरकार ने डेढ़ साल के लिए नये कृषि कानूनों के स्थगन का प्रस्ताव किया था यदि उस समय किसान ये बात मान जाते तो उनकी जीत हो सकती थी लेकिन किसान अड़ गए कि कृषि कानूनों की वापसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के बगैर कोई बात मंजूर नहीं है। किसानों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कमेटी को भी खारिज करते हुए उससे बात करने से मना कर दिया जबकि सुप्रीम कोर्ट ने नये कृषि कानूनों को स्टे किया हुआ है।
गणतंत्र दिवस पर हिंसा
इसके बाद किसान आंदोलन के नेताओं ने 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के दिन ट्रैकटर रैली का आयोजन किया। जिसमें लालकिला जैसी ऐतिहासिक इमारत में अराजकता हुई और दिल्ली में कई स्थानों पर हिंसा हुई। किसानों ने इसके लिए केंद्र पर आरोप लगाया जबकि दिल्ली पुलिस की जांच में अराजक तत्वों द्वारा एक दिन पहले ही किसानों का मंच हाईजैक कर लिए जाने की बात सामने आई।
इसके बाद किसानों और सरकार के बीच बातचीत की जगह टकराव ने ले ली। किसान नेता शक्ति प्रदर्शन के जरिये रास्ता रोको, रेल रोको, महापंचायतों के आयोजन और फिर आंदोलन को देशव्यापी बनाने की रणनीति में जुट गए। किसान नेतृत्व ने बार बार आंदोलन को लंबा चलाने के संकेत दिये। संघ ने अपने प्रस्ताव में इस बिन्दु पर कहा है कि किसी भी तरह का आंदोलन लंबे समय तक चले यह किसी के हित में नहीं है।
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चर्चा आवश्यक है लेकिन यह समाधान निकालने के विचार के साथ होनी चाहिए। संभव है कि सभी मुद्दों पर सहमति न बन पाए लेकिन किसी न किसी सहमति पर पहुंचना भी आवश्यक है। अगर संघ के चर्चा वाले पहलू पर गौर करें तो यह बात केंद्र सरकार और किसान दोनों के लिए महत्वपूर्ण है कि साथ आकर बैठने के लिए न बैठें बल्कि समाधान निकालने के विचार के साथ बैठना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा सभी मुद्दों पर सहमति न बन पाए तो भी किसी न किसी सहमति पर पहुंचना आवश्यक है।
किसानों को अपने नेतृत्व को टटोलना होगा
अब किसानों को अपने नेतृत्व को टटोलना होगा कि उनकी मंशा क्या है क्योंकि संघ ने इससे आगे एक और बात कही है कि समस्या और गंभीर हो जाती है जब राष्ट्र विरोधी और असामाजिक ताकतें समाधान निकालने के प्रयासों को विफल करने के प्रयास करती हैं। इसके अलाव संघ ने यह भी कहा, ‘‘हमें ऐसा महसूस हो रहा है कि कुछ समय से ऐसी राष्ट्र विरोधी ताकतें देश में गड़बड़ी और अस्थिरता का माहौल बनाने की कोशिश कर रही है ताकि वे अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को पा सकें।
ऐसे में संघ की बात को न तो भाजपा शासित केंद्र के पक्ष में कहा जा सकता है न ही किसानों के पक्ष में। इसे सिर्फ इस नजरिये से देखा जा सकता है कि संघ ने इस मसले पर लटकाए रखने पर कड़ा रूख अपनाया है।