मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप से गरमाई छत्तीसगढ़ की सियासत

Update:2017-08-04 16:13 IST

राम शिरोमणि शुक्ल

रायपुर। अभी भ्रष्टाचार के आरोपों पर बिहार में सत्तापलट पर सियासी तकरार खत्म भी नहीं हुई है कि छत्तीसगढ़ में भी एक मंत्री विवादों में घिर गए हैं। इसके चलते राज्य में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है। आरोप-प्रत्यारोप और जांच की मांग के साथ ही विरोध प्रदर्शन भी हो रहे हैं।

सत्ताधारी पार्टी के भीतर अंतर्कलह की बातों के साथ ही मंत्री के इस्तीफे और बर्खास्तगी की मांग भी जोर पकड़ रही है। इस सबके बीच आरोपी मंत्री ने सारे आरोपों को बेबुनियाद और खुद के साथ साजिश बताया है, लेकिन विवाद न केवल बढ़ता जा रहा है बल्कि पीएमओ तक पहुंच चुका है। दूसरी तरफ ग्रामीणों ने भी मोर्चा खोल रखा है। ऐसे में आरोपों से घिरे मंत्री की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं।

यह पूरा मामला छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से जुड़ा हुआ है। आरोप है कि वन विभाग की 4.12 एकड़ जमीन खरीदकर उस पर उनकी पत्नी और बेटा रिसॉर्ट बनवा रहे हैं। बताया जाता है कि यह जमीन विष्णु साहू की थी जिसे उन्होंने वन विभाग को दान कर दिया था। रिसॉर्ट महासमुंद जिले के पुरातात्विक महत्व वाले सिरपुर इलाके के पास श्याम वाटिका के नाम से बन रहा है।

2009 में रिसॉर्ट बनाने के लिए आदित्य सृजन प्राइवेट लिमिटेड और पुरबासा वाणिज्य प्राइवेट लिमिटेड ने यह जमीन खरीदी थी। आदित्य सृजन की निदेशक बृजमोहन अग्रवाल की पत्नी सविता अग्रवाल और बेटे अभिषेक अग्रवाल पुरबासा वाणिज्य के एक डायरेक्टर हैं। जमीन रजिस्ट्री के मुताबिक मंत्री की पत्नी ने खसरा नंबर 1.38 और 1.37 की कुल 4.12 एकड़ जमीन पांच लाख 30 हजार 600 रुपये में खरीदी थी। 2013 के विधानसभा चुनाव के समय चुनाव आयोग को दिए हलफनामे में मंत्री बृजमोहन ने इस जमीन का जिक्र अपनी पत्नी की संपत्ति के रूप में किया था।

अफसरों के सवालों की हुई अनदेखी

जब यह जमीन खरीदी गई थी, तब भी रमन सिंह सरकार के कई अधिकारियों ने इस पर सवाल उठाए थे, लेकिन तब इस मामले में कुछ नहीं हुआ। तब बृजमोहन के मंत्रालय ने लिखित रूप में कहा था कि इस मामले में कोई कार्रवाई करना संभव नहीं है। जमीन खरीदते समय बृजमोहन शिक्षा, लोकनिर्माण, संसदीय कार्य, पर्यटन और संस्कृति मंत्री थे।

अब यह मामला नए सिरे से उठ खड़ा हुआ है। मामले पर विवाद तब बढ़ा जब दिल्ली से प्रकाशित एक अंग्रेजी समाचार पत्र ने इससे जुड़ी खबर प्रमुखता से प्रकाशित कर दी। इसके बाद छत्तीसगढ़ में सरगर्मी बढ़ गई।

इस पर कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि उन पर लगे आरोप बेबुनियाद हैं। उन्होंने कहा कि जमीन नियमों के तहत खरीदी गई है जिसमें कुछ भी गलत नहीं है। जब जमीन खरीदी गयी थी तब वह किसान के नाम पर थी। उन्होंने यह भी कहा कि अगर आरोप साबित हो जाते हैं तो वे जमीन सरकार को सौंप देंगे।

मुख्य सचिव ने सीएम को सौंपी रिपोर्ट

विवाद बढऩे के साथ ही मुख्यमंत्री रमन सिंह ने मुख्य सचिव विवेक ढांड को इससे संबंधित पूरी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। मुख्य सचिव ने रिपोर्ट सौप दी है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि वह रिपोर्ट पर कानूनी राय ले रहे हैं। इसके बाद ही कुछ करेंगे। हालांकि उनका यह भी कहना था कि इस मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह फैसला करेंगे। पूरा प्रकरण केंद्रीय नेतृत्व के संज्ञान में है। नेतृत्व से चर्चा के बाद ही कोई निर्णय लिया जाएगा।

इस बीच वन मंत्री महेश गागड़ा ने भी कहा कि जांच के आदेश पीससीएफ को दे दिए गए हैं। पता लगाया जा रहा है कि क्यों जमीन का नामांतरण नहीं किया जा सका। रिपोर्ट आने के बाद उचित कार्रवाई की जाएगी। उल्लेखनीय है कि उक्त जमीन जल संसाधन विभाग से वन विभाग को मिली थी।

महासमुंद जिला प्रशासन ने भी समिति गठित कर जांच की और पाया कि जमीन गलत तरीके से खरीदी गई। समिति ने पाया कि किसानों ने जमीन जल संसाधन विभाग को दान में दी थी, जिसे बाद में वन विभाग को दिया गया था। समिति की सिफारिश को जल संसाधन विभाग और वन विभाग को भेज दिया गया।

महासमुंद कलेक्टर हिमशिखर गुप्ता का कहना है कि कलेक्टर को रजिस्ट्री पर किसी तरह का फैसला करने का सीधा अधिकार नहीं है। रजिस्ट्री बहाल रखने या रद्द करने का आदेश सिविल न्यायालय ही दे सकता है। सरकार सिविल कोर्ट में परिवाद दायर करेगी। गौरतलब है कि जल संसाधन विभाग भी मंत्री बृजमोहन के पास ही है।

मंत्री ने आलाकमान को दी सफाई

इस बीच पहले मुख्यमंत्री रमन सिंह ने दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व के साथ इस विवाद पर विचार-विमर्श किया। बाद में खुद मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने भी दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष अपनी स्थिति स्पष्ट की। माना जा रहा है कि उन्होंने विस्तार से अपना पक्ष रखा और कहा कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है।

सब कुछ नियमों के तहत हुआ है। उन पर लगाए जा रहे आरोपों में कुछ भी सत्यता नहीं है। यह भी पता चला है कि जमीन को जिला प्रशासन ने वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सरकारी वकील की सलाह पर प्रशासन रजिस्ट्री को शून्य करने के लिए सिविल कोर्ट में परिवाद दायर करेगा।

दो साल पहले भी हुई थी मामले की शिकायत

इस मामले की शिकायत किसान नेता ललित ने 2015 में ही की थी, लेकिन तब उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया था। ललित ने महासमुंद के तत्कालीन कलेक्टर उमेश अग्रवाल को पत्र लिखा था कि अधिग्रहित जमीन सरकार के राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है। 2016 में फिर ललित ने शिकायत की। इसके बाद कमिश्नर बृजेश मिश्र ने वन और जलसंसाधन विभाग को जमीन मामले में रिकॉर्ड उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था। इसके बाद भी मामला जहंा का तहंा ही रह गया था।

एफआईआर और बर्खास्तगी की मांग तेज

कांग्रेस नेता और छत्तीसगढ़ के प्रभारी पीएल पुनिया ने कहा कि बृजमोहन ने मंत्री पद का दुरुपयोग किया है। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो और उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त किया जाए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने कहा कि मुख्यमंत्री को अपने मंत्री पर लगे आरोपों को गंभीरता से लेना चाहिए। सभी आरोपी मंत्रियों को जांच तक पद से हटाया जाना चाहिए। नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने कहा है कि हम चाहते हैं कि मुख्यमंत्री पूरे मामले की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराएं।

पूर्व महापौर किरणमयी नायक ने आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) पहुंचकर मंत्री की शिकायत की और एफआईआर दर्ज करने की मांग की। उन्होंने मंत्री पर वन अधिनियम और भ्रष्टाचार निवारण कानून के उल्लंघन और धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए उनकी गिरफ्तारी की भी मांग की।

छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस नेता और विधायक अमित जोगी ने पूरे मामले की केंद्रीय जांच एजेंसी से जांच कराने,मंत्री बृजमोहन को मंत्रिमंडल से बाहर करने और उन पर आापराधिक मामला दर्ज करने की मांग की है।

कोई विवाद नहीं, रमन हमारे नेता: बृजमोहन

इस बीच राजनीतिक हलकों में ऐसी चर्चाएं भी चलीं कि मुख्यमंत्री रमन सिंह और मंत्री बृजमोहन के बीच कुछ विवाद भी चल रहा है। मंत्री ने अपनी सफाई में यह भी कहा था कि विवाद खड़ाकर उनके खिलाफ साजिश की जा रही है। गुपचुप यह भी कहा जा रहा था कि मंत्री ने मुख्यमंत्री को देख लेने की धमकी दी है।

इस पर बृजमोहन अग्रवाल ने सफाई दी कि मुख्यमंत्री रमन सिंह उनके नेता हैं। मंत्री ने यह भी कहा कि उनके खिलाफ आठ साल से षडयंत्र चल रहा है। अगर उनके विरुद्ध कोई प्रमाण होता तो इतना लंबा इंतजार नहीं किया गया होता। उन्होंने यह भी कहा कि मैंने अपने 37 साल के राजनीतिक जीवन में कभी कोई ऐसा काम नहीं किया जिससे किसी को कोई परेशानी हो।

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