UP News: बिजली निजीकरण के खिलाफ कर्मचारी संगठनों का विरोध जारी, RFP डॉक्यूमेंट पर सवाल
UP News: 15 जनवरी से यह अभियान पूरे सप्ताह जारी रहेगा, जिसमें बिजली कर्मी काली पट्टी बांधकर काम करेंगे और बाद में विभिन्न जनपदों और परियोजनाओं पर विरोध सभाएं आयोजित करेंगे।;
UP News: विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने 14 जनवरी 2025 को बिजली के निजीकरण के खिलाफ काली पट्टी बांधने के अभियान को लगातार जारी रखने की घोषणा की है। 15 जनवरी से यह अभियान पूरे सप्ताह जारी रहेगा, जिसमें बिजली कर्मी काली पट्टी बांधकर काम करेंगे और बाद में विभिन्न जनपदों और परियोजनाओं पर विरोध सभाएं आयोजित करेंगे।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि हाल ही में पावर कार्पोरेशन प्रबंधन द्वारा जारी किए गए बिडर के चयन के आरएफपी डॉक्यूमेंट (रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल) से यह साफ हो गया है कि निजीकरण के नाम पर बड़े घोटाले की तैयारी की जा रही है। समिति ने बताया कि इस डॉक्यूमेंट में निजीकरण की प्रक्रिया को लेकर बहुत सख्त समय सीमा तय की गई है, जो दर्शाता है कि पावर कार्पोरेशन का मुख्य उद्देश्य सुधार नहीं बल्कि जल्द से जल्द निजीकरण करना है।
संघर्ष समिति ने यह भी आरोप लगाया कि आरएफपी डॉक्यूमेंट में सुधार की बात एक भी जगह नहीं की गई है। इसके बजाय इसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम का पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल के तहत निजीकरण किया जाएगा। इसमें निजी कंपनियों को बहुसंख्यक इक्विटी और प्रबंधन नियंत्रण का अधिकार दिया जाएगा, जो कि 42 जनपदों की पूरी बिजली व्यवस्था को निजी हाथों में देने के बराबर है।
इसके अलावा, समिति का यह भी कहना है कि बिडर का चयन क्वालिटी एंड कॉस्ट बेस्ड सिलेक्शन के आधार पर किया जा रहा है, जिसमें चयन का अधिकार मुख्य रूप से प्रबंधन के पास होगा। इससे यह अनुमान लगता है कि टेंडर प्रक्रिया सिर्फ एक औपचारिकता है और प्रबंधन ने पहले से ही किसी विशेष कंपनी को चुनने का मन बना लिया है।
संघर्ष समिति ने यह भी उल्लेख किया कि पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली और उड़ीसा में पीपीपी मॉडल के तहत बिजली वितरण का निजीकरण किया गया था, जो विफल साबित हुआ। उड़ीसा में 1999 में रिलायंस कंपनी को बिजली वितरण का जिम्मा सौंपा गया था, जो पूरी तरह से विफल हो गया था और 2015 में इसका लाइसेंस रद्द कर दिया गया। 2020 में टाटा पावर को उड़ीसा की बिजली वितरण का काम सौंपा गया, लेकिन अब भी कर्मचारियों का उत्पीड़न जारी है।
संघर्ष समिति ने चेतावनी दी है कि ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में जबरिया निजीकरण थोपने से इसके भयानक दुष्परिणाम हो सकते हैं, जिनका अनुमान प्रबंधन में बैठे आईएएस अधिकारियों को भी नहीं है। समिति ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि निजीकरण की प्रक्रिया को जबरन लागू किया गया, तो इसके खिलाफ उनका संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक इसे वापस नहीं लिया जाता।