Chief Election Commissioner Appointment: चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, सुप्रीमकोर्ट का आदेश और सरकार की मंशा
Chief Election Commissioner Appointment: मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कैसे होनी चाहिए, इस पर अब नया विवाद शुरू हो गया है। सुप्रीमकोर्ट का आदेश है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भारत के चीफ जस्टिस, पीएम और नेता विपक्ष इन तीन लोगों का पैनल करे।
Chief Election Commissioner Appointment: मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कैसे होनी चाहिए, इस पर अब नया विवाद शुरू हो गया है। सुप्रीमकोर्ट का आदेश है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भारत के चीफ जस्टिस, पीएम और नेता विपक्ष इन तीन लोगों का पैनल करे। सरकार की मंशा है कि पीएम, नेता विपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री, इन लोगों का पैनल बने। यानी चीफ जस्टिस को पैनल में न रखा जाए। अभी तक सरकारों ने चुनाव आयोग की नियुक्तियों को अपने नियंत्रण में रखा है।
क्यों शुरू हुआ विवाद
दरअसल, चुनाव आयोग में अरुण गोयल की नियुक्ति पर शुरू हुआ विवाद यहां तक पहुंच गया है। लेकिन चुनाव आयोग के बारे में ये कोई पहला विवाद नहीं है। पहले भी ऐसे कई विवाद सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर पहुँच चुके हैं, खास कर जबसे चुनाव आयोग बहुसदस्यीय बनाया गया है।
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जरा इतिहास देखिए
चुनाव आयोग 1950 से 15 अक्तूबर, 1989 तक एक सदस्यीय था लेकिन वीपी सिंह सरकार ने 16 अक्तूबर, 1989 को पहली बार एक अधिसूचना के जरिये इसे बहुसदस्यीय बना दिया। इस अधिसूचना के अंतर्गत मुख्य चुनाव आयुक्त आरवीएस पेरी शास्त्री के साथ दो चुनाव आयुक्तों - एसएस धनोवा और वीएस सैगल की नियुक्ति की गयी थी। नयी व्यवस्था शुरू हो पाती इसके पहले ही राष्ट्रपति ने 1 नवंबर 1990 को इसे भंग कर दिया था।
शेषन का ज़माना
इसके बाद टीएन शेषन देश के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर 12 दिसंबर 1990 को नियुक्त किये गए थे। रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट शेषन ने पदभार ग्रहण करने के साथ ही आयोग के अधिकारों का इस्तेमाल सख्ती से करना शुरू कर दिया जिससे राजनीतिक दल परेशान हो उठे और नरसिंह राव सरकार ने 1 अक्तूबर 1993 को अध्यादेश जारी करके आयोग को बहुसदस्यीय बना दिया गया। साथ ही एक जीवीजी कृष्णामूर्ति और मनोहर सिंह गिल को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया।
कामकाज भी बदल दिया
अध्यादेश के माध्यम से मूल कानून चुनाव आयोग के कामकाज से संबंधित अध्याय में धारा नौ और 10 जोड़ी गई। इसमें प्रावधान था कि सारे कामकाज सर्वसम्मति से किये जाएंगे लेकिन किसी मामले में एकमत नहीं होने पर बहुमत की राय से फैसला किया जायेगा। इसके चलते आयोग में कामकाज और अधिकारों को लेकर घमासान होने लगा। यह मामला उच्चतम न्यायालय तक पहुँच गया जहां प्रधान न्यायाधीश एएम अहमदी की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले में 14 जुलाई, 1995 को फैसला सुनाते हुए अध्यादेश और दो चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की अधिसूचना को वैध करार दिया।
ताजा विधेयक
केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले को बदलने के लिए राज्यसभा में एक विधेयक पेश किया है। शीर्ष अदालत ने मार्च 2023 में कहा था कि सीईसी और ईसी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा पीएम, नेता विपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश की समिति की सिफारिश पर की जाएगी। कोर्ट ने नियुक्तियों को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से बचाने का प्रयास किया था। मार्च में फैसले में कहा गया था कि नया कानून बनने तक सीईसी का चयन करने के लिए सीजेआई उस तीन सदस्यीय पैनल का हिस्सा होंगे, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करेंगे और इसमें लोकसभा में विपक्ष के नेता भी शामिल होंगे।
अब जो विधेयक पेश किया गया है उसमें कहा गया है कि सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे। प्रस्तावित विधेयक में यह भी कहा गया है कि सीईसी या ईसी की नियुक्ति केवल चयन समिति में किसी रिक्ति या चयन समिति के संविधान में किसी दोष के कारण अमान्य नहीं होगी। अगले साल की शुरुआत में चुनाव आयोग में एक रिक्ति निकलेगी जब चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडे 14 फरवरी को 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर कार्यालय छोड़ देंगे। उनकी सेवानिवृत्ति चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित 2024 लोकसभा चुनावों की संभावित घोषणा से कुछ दिन पहले होगी। पिछले दो मौकों पर आयोग ने मार्च में संसदीय चुनावों की घोषणा की थी।
समिति की सिफारिश
इत्तेफाक की बात है ताज़ा विधेयक सरकार की अपनी समिति द्वारा की गई सिफारिश के विपरीत है। न्यायमूर्ति (अब सेवानिवृत्त) के.एम. जोसेफ की अध्यक्षता वाली एक संविधान पीठ ने चुनाव सुधारों को शुरू करने और भारत के चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को मजबूत करने के लिए 1990 में तत्कालीन कानून मंत्री दिनेश गोस्वामी के तहत गठित एक समिति द्वारा की गई सिफारिश की पुष्टि करते हुए चयन समिति में मुख्य न्यायाधीश को शामिल किया था।
गोस्वामी समिति ने अपनी रिपोर्ट में ईसीआई को एक बहु-सदस्यीय निकाय बनाने की सिफारिश करने के अलावा, कहा था कि सीईसी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा चीफ जस्टिस और विपक्ष के नेता के परामर्श से की जानी चाहिए उपलब्ध है, अगर विपक्ष का नेता नहीं है तो परामर्श लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी समूह के नेता के साथ होना चाहिए। रिपोर्ट में परामर्श प्रक्रिया को वैधानिक समर्थन देने का सुझाव दिया गया था।
गोस्वामी की सिफारिशों को भारत के विधि आयोग ने 12 मार्च 2015 को अपनी 255वीं रिपोर्ट में अपनाया था। विधि आयोग "भारत के चुनाव आयोग के कार्यालय को मजबूत करने" के विषय पर काम कर रहा था। विधि आयोग ने कहा था, "ईसीआई की तटस्थता बनाए रखने और सीईसी और चुनाव आयुक्तों को कार्यकारी हस्तक्षेप से बचाने के महत्व को देखते हुए, यह जरूरी है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक परामर्श प्रक्रिया बन जाए।"
विधि आयोग ने यह सुझाव देकर गोस्वामी की सिफारिश को संशोधित किया था कि "सभी चुनाव आयुक्तों [सीईसी सहित] की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा तीन सदस्यीय कॉलेजियम या चयन समिति के परामर्श से की जानी चाहिए, जिसमें प्रधान मंत्री, चीफ जस्टिस और नेता विपक्ष शामिल हों।"