चला गया नोटबंदी का नायक, जाते-जाते बता गया क्या थे कारण
भारतीय जनता पार्टी के अभ्युदय के साक्षी और कर्णधार रहे अरुण जेटली का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। अरुण जेटली सरल सहज और ईमानदार राजनीतिक मूल्यों के नायक थे और मुद्रा विमुक्तिकरण को लेकर इस देश के साहसी राजनीतिक के रूप में याद किये जाएंगे।
लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी के अभ्युदय के साक्षी और कर्णधार रहे अरुण जेटली का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। अरुण जेटली सरल सहज और ईमानदार राजनीतिक मूल्यों के नायक थे और मुद्रा विमुक्तिकरण को लेकर इस देश के साहसी राजनीतिक के रूप में याद किये जाएंगे। राजग सरकार में कई दलों का साथ होते हुए भी उन्होंने मुद्राविमुक्ति करण के फैसले को सफलतापूर्वक अमलीजामा पहनाया।
यह एक अलग बहस का सवाल हो सकता है कि मुद्रा विमुक्तिकरण का फैसला कितना सही या गलत था। या फिर देश को इस फैसले को क्या दुष्परिणाम झेलने पड़े या झेलने पड़ेंगे। लेकिन जेटली अंत तक इस फैसले के साथ एक शूरवीर की तरह खड़े नजर आए। अस्वस्थता के चलते एनडीए 2 से वह अलग रहे। लेकिन जब तक सक्रिय रहे। भाजपा के विजय पथ को प्रशस्त करते रहे।
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मुद्रा विमुक्तिकरण के दो साल पूरे होने पर अरुण जेटली ने अपने इस कदम के समर्थन में एक विस्तृत विश्लेषणात्मक लेख में इसे अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए सरकार की ओर से उठाया गया महत्वपूर्ण कदम बताया था।
जेटली के मुताबिक नोटबंदी का प्रमुख उद्देश्य काले धन के प्रसार पर काबू पाना और भारतीय अर्थव्यवस्था में औपचारिक लेनदेने को बढ़ाना था, जिसमें पहली राजग सरकार को पूरी तरह से सफलता मिली।
लेख में कहा गया था कि भारतीय अर्थव्यवस्था को एक ढांचागत स्वरूप प्रदान करने की दिशा में सरकार के विभिन्न निर्णयों की शुरूआत विमुद्रीकरण थी।
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कालाधन वापस लाना
वित्त मंत्री ने कहा था कि सरकार का पहला उद्देश्य देश के बाहर से काले धन को वापस लाना था। सरकार ने विदेशों में पैसा रखने वाले लोगों से कहा था कि वे भारत में पैसा वापस लेकर आएं और तय कर को अदा करें। जो ऐसा नहीं कर सके उनके खिलाफ काला धन कानून के तहत कानूनी कार्रवाई की गई।
टैक्स फाइलिंग आसान बनायी
जेटली के अनुसार विदेशों में मौजूद जिन खातों के बारे में सरकार को जानकारी थी, उन पर कार्रवाई की गई। डायरेक्ट और इनडायरेक्ट दोनों प्रकार के टैक्स के रिटर्न की फाइलिंग के लिए तकनीक की मदद ली गई। जिससे लोगों को रिटर्न फाइल करने में आसानी हो और टैक्स का दायरा बढ़े। और इस मायने में सरकार को कामयाबी भी मिली।
एक बड़ी आबादी को बैंकों से जोड़ा
तत्कालीन वित्त मंत्री ने लिखा था कि वित्तीय समावेशन इस पूरी कवायद का अगला बड़ा उद्देश्य था। इसकी मदद से सरकार की कोशिश थी कि कमजोर तबका भी बैंकिंग सिस्टम से जुड़े। जनधन खाते की मदद से लोगों को बैंकों से जुड़ने में मदद मिली है।
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यह सुनिश्चित किया है कि डायरेक्ट बेनिफिटि ट्रांसफर की मदद से सरकारी लाभ लोगों को सीधे उनके खातों में मिलें। इसके अतिरिक्त जीएसटी की मदद से भी यह सुनिश्चित किया गया कि अप्रत्यक्ष कर की प्रणाली भी आसान हो। अब भारत में टैक्स से बच पाना वाकई में बहुत मुश्किल है।
लेख में कहा गया कि भारत एक नकदी प्रधान देश रहा है। नकदी के लेनदेन में घपले की सबसे ज्यादा संभावना होती है। इसमें बैंकिंग प्रणाली शामिल नहीं होती जिसके चलते टैक्स चारी की संभावना सबसे ज्यादा होती है। नोटबंदी ने ऐसे सभी नकदी धारकों को अपना पैसा बैंक में जमा करने को बाध्य किया।
जमा की गई नकदी की भारी मात्रा और मालिक की पहचान के परिणामस्वरूप 17.42 लाख खाता धारक संदिग्ध पाए गए हैं। उल्लंघन करने वालों को दंडकारी कार्रवाई का सामना करना पड़ा है।
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ज्यादा जमा से बैंकों की लोन देने की क्षमता बढ़ी है। इसमें से बहुत सा पैस म्यूचुअल फंड में पुनर्निवेश के लिए निवेशित किया गया है। यह पैस अब एक औपचारिक प्रणाली का हिस्सा बन गया है।
गौरतलब है कि नोटबंदी पर तथ्यों से परे ये अफवाह फैलाई गई थी कि नोटबंदी के बाद लगभग सारा बैंकों में पैसा वापस आ गया है। जेटली ने स्पष्ट किया कि मुद्रा की जब्ती नोटबंदी का उद्देश्य था ही नहीं। एक औपचारिक अर्थव्यवस्था को अपनाना और कर दाताओं से रिटर्न फाइल करवाना इसके बड़े लक्ष्यों में से एक था।
सरकार की मंशा भारत को नकद से डिजिटल लेनदेन में स्थानांतरित करने के लिए सिस्टम को हिलाने की थी और वह इसमें कामयाब भी रही। उच्च टैक्स राजस्व और टैक्स बेस के बढ़ने से इसका फायदा दिखा।
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जेटली ने विमुद्रीकरण के फायदों पर बात करते हुए कहा कि यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) की शुरूआत 2016 में हुई थी। यह प्रारंभ में मोबाइल फोन धारकों के बीच पेमेंट के लिए था। अक्टूबर 2016 में 0.5 बिलियन के भुगतान से शुरू हुआ यह ग्राफ सितंबर 2018 तक बढ़कर 598 बिलियन रुपए हो गया था।
भारत इंटरफेस फॉर मनी(भीम) को 1.25 करोड़ लोग प्रयोग कर रहे हैं। इसी तरह सितंबर 2016 में 0.02 बिलियन रुपए से बढ़कर सितंबर 2018 तक इससे होने वाला ट्रांजेक्शन बढ़ कर 70.6 बिलियन रुपए हो गया। सभी यूपीआई ट्रांजेक्शन में भीम की हिस्सेदारी 48% थी।
रुपे कार्ड की बात करें तो इसका उपयोग पॉइंट ऑफ सेल (पीओएस) के अलावा ईकॉमर्स दोनों में बढ़ा। नोटबंदी से पहले पीओएस पर इससे होने वाला 8 बिलियन रुपए का ट्रांजेक्शन सितंबर 2018 में 57.3 बिलियन हो गया। वहीं ईकॉमर्स में यह 3 से बढ़कर 27 बिलियन रुपए हो गया।
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अरुण जेटली के अनुसार नोटबंदी का सीधा असर व्यक्तिगत आयकर के कलेक्शन पर पड़ा। वित्त वर्ष 2018-19 (31 अक्टूबर 2018 तक) में टैक्स कलेक्शन पिछले साल के मुकाबले 20.2 प्रतिशत अधिक रहा। वहीं कारपोरेट टैक्स कलेक्शन में भी 19.5 फीसदी का उछाल आया। नोटबंदी से दो साल पहले डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 6.6 फीसदी और कॉरपोरेट टैक्स 9 फीसदी ही बढ़ा था।
वहीं अगले दो साल में, यह 14.6 फीसदी (2016-17 में उस साल जब नोटबंदी लागू हुई थी।) और 2017-18 में 18 फीसदी रही। 2017-18 में, 6.86 करोड़ टैक्स रिटर्न फाइल हुए। जो कि पिछले साल से 25 प्रतिशत ज्यादा थे। 2018 में 31 अक्टूबर तक 5.99 करोड़ रिटर्न फाइल हुए। जिसमें से 86.35 लाख नए फाइल करने वाले थे। जिसके चलते रिटर्न फाइल करने वालों की संख्या में 54.33 फीसदी का इजाफा हुआ। 2014 में नई सरकार का गठन हुआ था तब इनकम टैक्स रिटर्न की संख्या 3.8 करोड़ थी। पहले चार साल में यह संख्या 6.86 करोड़ हो गई है।
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जेटली कहते हैं कि सरकार के दो कदमों विमुद्रीकरण और जीएसटी ने कैश लेनदेन पर बड़े पैमाने पर रोक लगाई। अप्रत्यक्ष कर का रिटर्न फाइल करने वालों की संख्या 6.4 से जीएसटी के बाद बढ़कर 12 मिलियन हो गई। जीएसटी के लागू होने के बाद से टैक्स चोरी भी घटी।
जीएसटी का लाभ केंद्र और राज्य दोनों को मिला है। सभी राज्यों को जीएसटी के बाद से निश्चित रूप से 14 फीसदी की वृद्धि देखने को मिल रही है। व्यापारी को अपना टर्नओवर बनाने की बाध्यता ने जहां अप्रत्यक्ष कर के क्षेत्र में फायदा दिया है वहीं इससे व्यक्तिगत आय कर के एकत्रण में भी सुधार आया है।
2014-15 में अप्रत्यक्ष कर जीडीपी का 4.4 प्रतिशत था, वहीं अब यह बढ़कर 5.4 प्रतिशत हो गया है। छोटे कर दाताओं को मिली 97000 करोड़ की वार्षिक आयकर राहत और जीएसटी असेसी को मिली 80000 करोड़ की राहत के बावजूद टैक्स कलेक्शन में तेजी से सुधार हुआ है।
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सरकार ने इन सभी संसाधनों को बेहतर आधारभूत ढांचे के निर्माण, सामाजिक सुधार और ग्रामीण भारत पर खर्च किया है। सड़क पर बिजली, हर घर में बिजली से जुड़े गांवों को हम और कैसे देख सकते हैं। सड़क से जुड़े गांवों, हर घर में बिजली, ग्रामीण स्वच्छता से जुड़े 92% गांवों, एक सफल आवास योजना, 8 करोड़ गरीब घरों में एक खाना पकाने गैस कनेक्शन आदि को आप कैसे देख सकते हैं।
आयुष्मान भारत के तहत दस करोड़ परिवार शामिल हैं, सब्सिडी वाले भोजन पर 1,62,000 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं, किसानों के लिए एमएसपी में 50% की वृद्धि और सफल फसल बीमा योजना ये सब प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों में वृद्धि से ही संभव हुआ। यह अर्थव्यवस्था का औपचारिकरण है जिसकी मदद से 13 करोड़ उद्यमियों को मुद्रा ऋण प्राप्त कर लिया है। सातवें वेतन आयोग को हफ्तों के भीतर लागू किया गया और अंत में ओआरओपी लागू किया गया था।