एलएसी को बताया भारत-तिब्बत सीमा, इस सीएम के बयान पर ड्रैगन को लगी मिर्ची
चीन ने 1951 में तिब्बत के ढाई लाख स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था और तब से तिब्बत में चीन का ही शासन चल रहा है।
नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद बढ़े तनाव के बीच अरुणाचल प्रदेश के सीएम पेमा खांडू ने एलएसी को नया नाम देकर चीन को चिढ़ा दिया है। पेमा खांडू ने एलएसी को भारत- तिब्बत सीमा बताया है जिससे चीन को मिर्ची लगना लाजमी है। असलियत यह है कि भारत की सीमा तिब्बत के साथ ही लगती है जिस पर चीन ने जबरन कब्जा कर लिया है। चीन अरुणाचल प्रदेश पर भी अपनी दावेदारी जताता रहा है और खांडू के इस बयान से उसे निश्चित रूप से चोट लगना तय है।
अरुणाचल प्रदेश के सीएम ने किया ट्वीट
खांडू ने अरुणाचल प्रदेश में सेना के कार्यक्रम की तस्वीर पोस्ट करते हुए ट्वीट में ऐसी बात लिख दी जो चीन को चुभने वाली है। खांडू ने अपने ट्वीट में लिखा है कि हम भारतीय सेना की वीरता आजादी के बाद से ही देखते रहे हैं। आज भारत-तिब्बत सीमा पर स्थित बुमला पोस्ट पर वीर जवानों से मुलाकात करने का मौका मिला। उनका जोश सर्वोच्च स्तर पर है। जब बात सीमा की होती है तो हम निश्चित रूप से सुरक्षित हाथों में है।
खांडू का बयान इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि चीन ने तिब्बत पर अवैध ढंग से कब्जा किया हुआ है। चीन ने 1951 में तिब्बत के ढाई लाख स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था और तब से तिब्बत में चीन का ही शासन चल रहा है। चीन ने तिब्बत में अपने विरोध में उठने वाली हर आवाज को निर्ममता पूर्वक चला है। तिब्बतियों के आध्यात्मिक धर्मगुरु दलाई लामा भारत में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं। तिब्बत की निर्वाचित सरकार भी भारत से ही अपना काम कर रही है। खांडू ने भारत- तिब्बत सीमा का जिक्र करके चीन को एक बार फिर सच्चाई याद दिला दी है।
अरुणाचल पर भी दावा जताता है चीन
अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है मगर चीन अरुणाचल प्रदेश पर भी अपना दावा करता रहा है। 84000 स्क्वायर किलोमीटर वाले इस प्रदेश की जनसंख्या करीब 25 लाख है। आजादी से पहले भारत की सीमा का निर्धारण अंग्रेजों की ओर से किया गया था, लेकिन बाद में चीन ने युद्ध के बाद अक्साई चिन को हथिया लिया था। चीन अभी भी इस इलाके पर अवैध कब्जा किए हुए है और इसके साथ ही अरुणाचल प्रदेश पर भी अपना दावा जताता है। पिछले कुछ वर्षों से केंद्र सरकार भी तिब्बती समुदाय से कुछ दूरी बनाकर चलती हुई दिख रही है।
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2018 में तिब्बत निर्वासन के 60 साल पूरा होने पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था मगर सरकार ने अपने प्रतिनिधियों को इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने से रोक दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई बैठक से ठीक पहले यह फैसला किया गया था। केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद निर्वासित तिब्बती सरकार की ओर से दिल्ली में कार्यक्रम का आयोजन ही रद्द कर दिया गया था।
अंशुमान तिवारी