Bal Gangadhar Tilak Death Anniversary: स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा, जानिए बाल गंगाधर तिलक का जीवन

Bal Gangadhar Tilak Death Anniversary: बाल गंगाधर तिलक, जिनका जन्म 23 जुलाई 1856 को हुआ था और मृत्यु हुई थी 1 अगस्त 1920 को, एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, और समाज सुधारक थे। वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले विचारक और नेता थे।

Update:2023-08-01 07:35 IST
Bal Gangadhar Tilak Death Anniversary (Photo: Social Media)

Bal Gangadhar Tilak Death Anniversary: बाल गंगाधर तिलक, जिनका जन्म 23 जुलाई 1856 को हुआ था और मृत्यु हुई थी 1 अगस्त 1920 को, एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, और समाज सुधारक थे। वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले विचारक और नेता थे। तिलक ने 'स्वराज्य अर्जुन' और 'केशरी' जैसी पत्रिकाएं संपादित की थीं जिन्होंने जनमत जागरूकता फैलाने में मदद की। उन्होंने स्वराज्य मोहीम की शुरुआत की थी, जो बाद में गांधीजी के सत्याग्रह के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तिलक को 'लोकमान्य' के नाम से पुकारा जाता था और उनके विचारधारा और क्रियाएं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण रही।

बाल गंगाधर तिलक का प्रारंभिक जीवन

बाल गंगाधर तिलक का प्रारंभिक जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा। उनका जन्म महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के चंपरान गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित गंगाधर रामचंद्र तिलक था और माता का नाम पर्वतीबाई था।

तिलक का प्रारंभिक शिक्षा में दिलचस्पी नहीं थी और उन्होंने जलगांव और पुणे के विद्यार्थी जीवन में अपने प्राधिकरणों को निभाना शुरू किया। उन्होंने बाद में पुणे के फर्गुसन कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की।

तिलक को विद्यार्थी जीवन में ही राजनीतिक क्रियाओं में जुटने की रुचि थी और उन्होंने देशभक्ति और समाज सुधार के मुद्दों पर काम किया। उनके प्रारंभिक जीवन ने उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में उभारा जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बचपन से ही पढ़ाई में मेधावी रहे तिलक ने1879 में उन्होंने बी.ए. तथा कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की लेकिन उन्होंने वकालत को पेशे के तौर पर नहीं अपना और देश सेवा का रास्ता चुना।

अंग्रेज़ों के खिलाफ की पत्रिकारिता

बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेज़ों के खिलाफ पत्रिकारिता की और अपनी पत्रिका "केशरी" के माध्यम से राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर विचारधारा फैलाई। उन्होंने यह पत्रिका १८८१ में मराठी भाषा में शुरू की थी। इसमें वे भारतीय स्वराज्य, राष्ट्रीय एकता और स्वदेशी आन्दोलन के मुद्दे पर चर्चा करते थे।

तिलक की पत्रिका "केशरी" ने अंग्रेज़ शासन के खिलाफ उठी हुई आवाज़ देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को प्रोत्साहित किया। तिलक ने स्वदेशी आन्दोलन की प्रेरणा देने वाले लेखों, संवादों और राष्ट्रीयता को भरने वाले नारों के माध्यम से लोगों को जागरूक किया था। उनकी पत्रिका ने भारतीय जनता के बीच राष्ट्रीय भावना और एकता को मजबूती से फैलाया था।

सामाजिक सेवा और गणेशोत्सव

उन्होंने बम्बई में अकाल और पुणे में प्लेग के समय काफी सामाजिक कार्य किया। 1893 में उन्होंने गणेशोत्सव मानाने का सोचा। तिलक ने सोचा गणेश जी को घर से निकाल कर सामाजिक तौर पर गणेश उत्सव मनाया जाए। इस तरह सभी जाती के लोग त्यौहार एक साथ मना सकेंगे।

बाल गंगाधर तिलक ने समाज सेवा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने जनसंख्या वृद्धि, शिक्षा, महिला शिक्षा, और विधवा विवाह के प्रसंगों पर जागरूकता फैलाई और समाज के निम्नवर्ग के लोगों की समृद्धि के लिए काम किया।

क्रान्तिकारियों की पैरवी

बाल गंगाधर तिलक ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों की पैरवी की और उन्हें समर्थन दिया। उन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्रता के प्रचार-प्रसार के लिए विभिन्न क्रांतिकारियों के संघर्षों के प्रशंसा की और उनके योगदान को अपनी पत्रिका "केशरी" में प्रकाशित किया।

तिलक ने राजगुरु सावरकर, बालगंगाधर टिलक, लोकमान्य बाल गंगाधर टिलक जैसे महान क्रांतिकारियों का साथ दिया और उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेता और विचारक के रूप में प्रोत्साहित किया। उनके द्वारा संगठित की गई "महाराष्ट्र आन्दोलन" ने नायकों और क्रांतिकारियों को सम्मानित किया और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।

तिलक ने स्वराज्य मोहीम को प्रोत्साहित किया, जिसमें उन्होंने देश के लोगों को राजद्रोह के विरुद्ध विशाल आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने संगठन किए गए समाज सुधारक कार्यक्रमों में भी समर्थन दिया, जिससे देशवासियों के जीवन में सुधार हुआ और उन्हें स्वदेशी आन्दोलन के पक्ष में उत्साहित किया। तिलक ने भारतीय स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए समूचे देश के क्रांतिकारियों के संघर्ष में अपना योगदान दिया और राष्ट्रीय एकता को मजबूती से बढ़ाया। वें गरम डाल के नेता थे और इनके समर्थन में लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पल भी थे।तीनो को साथ के सभी लाल बाल पाल कहते थे।

बर्मा का मांडला जेल

1908 में तिलक ने क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) में जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। जेल में तिलक न तो किताबें पढ़ सकते थे न ही किसी को पत्र लिख सकते थे। उन्होंने जेल में गीता रहस्य नाम की एक किताब लिखी जो काफी प्रसिद्ध हुई। उन्हें अपनी पत्नी के अंतिम दर्शन करने की इज़ाज़त तक नहीं मिली थी।

आल इंडिया होम रूल लीग

आल इंडिया होम रूल बाल गंगाधर तिलक ने 1905 में आल इंडिया होम रूल लीग की स्थापना की थी। यह एक प्रभावशाली राष्ट्रीय संगठन था जिसका उद्देश्य भारतीय स्वराज्य को प्राप्त करना था। इस संगठन का मुख्य लक्ष्य ब्रिटिश राज सरकार को भारतीयों को राजनीतिक नियंत्रण प्रदान करने और राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करना था।

आल इंडिया होम रूल लीग का मूल मंत्र "स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम उसे पा लेंगे" था। इस संगठन के द्वारा भारतीयों को स्वतंत्रता के लिए सामाजिक एवं राजनीतिक जागरूकता प्रदान की गई और उन्हें अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया गया। इस संगठन ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता की मांग को बढ़ावा दिया और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के उदय को प्रस्तुत किया।

1920 में निधन हुआ

बाल गंगाधर तिलक का निधन 1 अगस्त 1920 को हुआ था। उन्हें गणेश चतुर्थी के उत्सव के दौरान निधन हुआ था। उनकी मृत्यु ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को भारी क्षति पहुंचाया और देशवासियों में अद्भुत शोक उत्पन्न किया। उनके निधन से राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन को भारतीय जनता के द्वारा विभाजित विचारों और भावनाओं को एकत्रित करने का काम रुक गया था, लेकिन उनकी विचारधारा और योगदान ने देशवासियों के हृदय में चिरस्थायी प्रभाव छोड़ दिया। उन्हें "लोकमान्य" के नाम से पुकारा जाता है और उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में अमूल्य है।

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