Balaji Wafers Success Story: 90 रुपये की नौकरी से 4000 करोड़ का साम्राज्य , ये कहानी है विराणी बंधुओं की

Balaji Wafers Success Story:ये कहानी है राजकोट के "बालाजी वेफर्स" की जो "लेज़" के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी चिप्स निर्माता कंपनी है।

Update:2023-07-19 11:37 IST
Balaji Wafers (photo: social media )

Balaji Wafers Success Story: 10वीं पास एक कैंटीन कर्मचारी ने अपने भाइयों के साथ एक कमरे से शुरुआत करके आज 4000 करोड़ रुपये का चिप्स साम्राज्य खड़ा कर दिया है। इस सफर में मेहनत, लगन, धैर्य और किस्मत सबका योगदान रहा है। ये कहानी है राजकोट के "बालाजी वेफर्स" की जो "लेज़" के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी चिप्स निर्माता कंपनी है।

एक कहावत है : एक दरवाजा बंद होता है तो भगवान दस दरवाजे खोल देता है। इसको चरितार्थ किया है गुजरात के विराणी बंधुओं ने। गांव में सूखे से मजबूर हो कर इन्हें पलायन करना पड़ा। 90 रुपये महीने की नौकरी से शुरुआत की लेकिन जल्द ही एक अवसर को पहचान लिया और उसी अवसर को सफलता की सीढ़ी बना दिया। आज उन्हीं भाइयों की कम्पनियों में 5000 से ज्यादा लोग काम करते हैं। पेप्सी जैसे ब्रांड कंपनी खरीदने के लिए आतुर हैं।

बात शुरुआत से

बात 1974 की है जब गुजरात में जामनगर के एक गांव से तीन भाई चंदूभाई विराणीऔर उनके भाई-भीखूभाई और कनुभाई को रोजी रोटी के लिए पलायन करने और राजकोट आने के लिए मजबूर होना पड़ा। उनके पिता ने अपना खेत बेच दिया और अपने बेटों को गाँव से बाहर जाकर नया जीवन शुरू करने के लिए 20,000 दे दिए।

तीनों भाइयों ने राजकोट में कृषि उत्पादों और कृषि उपकरणों का एक छोटा उद्यम शुरू किया। दो साल बाद यह फ्लॉप हो गया जिसके बाद उन्होंने ने राजकोट के एस्ट्रोन सिनेमा की कैंटीन में काम करना शुरू कर दिया।

लेकिन सपने बड़े थे

कुछ समय बाद एस्ट्रोन सिनेमा में ही चंदूभाई को सिनेमा कैंटीन चलाने का ठेका मिल गया। उन्होंने देखा था कि सिनेमा हॉल में बेचे जाने वाले वेफर्स यानी चिप्स की इतनी डिमांड रहती थी कि सप्लाई कम पड़ जाती की थी। विरानी बंधुओं ने अपने एक कमरे वाले घर में आलू के चिप्स बनाने का फैसला किया। उनके प्रोडक्ट को न केवल सिनेमा हॉल के भीतर बल्कि बाहर भी खरीदार मिलने लगे।

बालाजी ब्रांड

विराणी भाइयों में सबसे बड़े चंदूभाई ने अपने चिप्स को एक नाम दिया - बालाजी। यह हनुमान जी से प्रेरित ब्रांड नाम था। बिजनेस की वास्तविक दुनिया की शुरुआत एक बड़े सबक के साथ हुई: तत्काल सफलता नाम की कोई चीज़ नहीं होती। विराणी बंधुओं को झटके भी लगे। कुछ खुदरा दुकानदार भुगतान में डिफ़ॉल्ट कर देते, या उनका माल खराब बता कर धोखा दे देते।

पीछे नहीं हटे

चंदूभाई और उनके भाई पीछे नहीं हटे,निराश नहीं हुए। बल्कि उनने अपनी पहुंच बढ़ाने का फैसला किया। अपनी साइकिलों पर और बाद में बाइकों पर वेफर्स के बैग लादकर, वे लोग एक इलाके से दूसरे इलाके तक जाने लगे। उनके प्रोडक्ट की क्वालिटी और स्वाद को इतनी सराहना मिलने लगी कि बालाजी कुछ वर्षों में शहर में चर्चा का विषय बन गया।

धीरे धीरे विस्तार किया

प्रारंभिक सफलता के बावजूद, चंदूभाई कई क्षेत्रों में एक साथ कदम रखने के इच्छुक नहीं थे। उनका सूत्र था - एक समय में एक ही लड़ाई। उनकी पहली प्राथमिकता करीब चार दशकों में गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में 'बालाजी' ब्रांड का निर्माण करना था, और उसके बाद ही आसपास के क्षेत्रों में कदम रखना था। दिल और दिमाग दोनों से काम करते हुए विराणी आज पेप्सी समेत टॉप ब्रांड्स के सामने डट कर खड़े हैं। न कोई आईपीओ, न कोई अधिग्रहण और न कोई बंटवारा।

टाइम लाइन

1974 : भीखूभाई, चंदूभाई और कानूभाई काम की तालाश में राजकोट आये। एस्ट्रोन सिनेमा में नौकरी की फिर वहीं कैंटीन का ठेका ले लिया।

1981-88 : घर पर वेफर्स यानी आलू चिप्स बनाना शुरू किया जिसकी बिक्री सिनेमा कैंटीन में करते थे। इसे बालाजी ब्रांड नाम दिया। अगले कुछ वर्षों में बालाजी ब्रांड खुदरा दुकानों तक पहुंच गया।

1989 : राजकोट में चिप्स बनाने का सेमीऑटोमैटिक प्लांट लगाया।

1995 : राजकोट में ही फुली ऑटोमैटिक प्लांट लगाया। चिप्स के अलावे नमकीन और अन्य आइटम भी बालाजी ब्रांड में जोड़े।

2002 : राजकोट में अत्याधुनिक प्लांट लगाया। बालाजी ब्रांड का विस्तार महाराष्ट्र और राजस्थान तक किया गया।

2008 : एक और प्लांट गुजरात के वलसाड में लगाया गया। ये एशिया के बड़े प्लांटों में से एक था। नमकीन और अन्य स्नैक्स के लिए अलग अलग यूनिटें लगाईं। बालाजी ब्रांड मध्यप्रदेश तक फैला।

2015 : एक प्लांट इंदौर में स्थापित किया गया। कम्पनी की पहुंच उत्तर भारत तक हुई।

2020 : बालाजी वेफर्स के 59 प्रोडक्ट, 1000 से ज्यादा डीलर नेटवर्क है। 5000 से ज्यादा कर्मचारी हैं। बिजनेस में विराणी बंधुओं की दूसरी पीढ़ी भी उतर गई है।

2021 : 4000 करोड़ की कमाई। गुजरात के बाजार में 90 फीसदी हिस्सेदारी।

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