उस रात को याद कर आज भी सहम जाते हैं लोग, जानिए क्या हुआ था?

आज से 36-37 साल पहले  2-3 दिसंबर 1984 को देश के इतिहास में काला दिन के रुप में मनाया जाता है। 2-3 दिसंबर की रात को जो हुआ उसकी वजह से करीब 16 हजार लोगों की मौत हो गई थी।  इस रात को भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। इस हादसे की वजह यूनियन कार्बाइड कंपनी

Update:2019-12-02 22:50 IST

भोपाल: आज से 35-36 साल पहले 2-3 दिसंबर 1984 को देश के इतिहास में काला दिन के रुप में मनाया जाता है। 2-3 दिसंबर की रात को जो हुआ उसकी वजह से करीब 16 हजार लोगों की मौत हो गई थी। इस रात को भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। इस हादसे की वजह यूनियन कार्बाइड कंपनी के कारखाने में हुआ जहरीली गैस का रिसाव था। पूष की सर्दी में यह हादसा उस वक्‍त हुआ जब सब लोग अपने घरों में सो रहे थे। रिसाव इतना तेज था कि इसने कुछ ही समय में काफी बड़े हिस्‍से को अपनी चपेट में ले लिया था। लोगों को सांस लेने में दिक्‍कत, आंखों में जलन शुरू हो गई थी।

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पांच लाख लोग इस हादसे के शिकार

रात मे शुरू हुई ये परेशानी धीरे-धीरे बहुत बड़े एरिया में फैल चुकी थी। इसकी चपेट में हजारों लोग आ चुके थे। सुबह होने तक जहां तहां लोगों की मौत की खबरें आने लगी थीं। सांस न ले पाने की वजह से सड़कों पर मवेशियों के साथ लोगों की लाशें पड़ी थीं। कोई ये नहीं समझ पा रहा था‍ कि ये सब कुछ क्‍यों हो रहा है। इस दौरान मारे गए लोगों की संख्‍या को लेकर कई एजेंसियों की भी अलग-अलग राय है। मध्‍य प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3787 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की पांच लाख लोग थी, जबकि अनाधिकृत तौर पर इनकी गिनती 16 हजार तक पहुंच गई थी। इस हादसे की चपेट में आए थे।

हादसे की वजह

अचानक से काफी मात्रा में जहरीली गैस का रिसाव होने से यहां के लोगों की मौत भी कीड़ों की तरह हुई थी। इस हादसे की भयावह तस्वीरें आज भी लोगों का दिल दहला देती हैं। ऊपर जो तस्‍वीर आप लोग देख रहे हैं इसको फोटोग्राफर रघु राय ने लिया था जो बाद में इस हादसे की पहचान बन गई थी। यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी से जिस गैस ने रातों रात हजारों लोगों की जान ले ली थी उसका नाम मिथाइल आइसो साइनाइट था। इस गैस का उपयोग कीटनाशक के लिए किया जाता था।

 

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ऐसे हुआ था भोपाल गैस कांड

*कारखाने में मौजूद कई सुरक्षा उपकरण ठीक नहीं थे , यहां पर मौजूद सिक्‍योरिटी मैन्‍यूल अंग्रेजी में थे जबकि यहां पर काम करने वाले ज्‍यादातर कर्मचारियों को अंग्रेजी नहीं आती थी। न ही इन लोगों को सुरक्षा उपायों के बारे में बताया ही गया था।

*पाइप की सफाई करने वाले हवा के वेन्ट ने काम करना बंद कर दिया था। 610 नंबर के टैंक में नियमित रूप से ज्‍यादा एमआईसी गैस भरी थी। इसके अलावा गैस का तापमान भी निर्धारित ४.५ डिग्री की जगह २० डिग्री था।

* इस प्‍लांट में तीन अंडरग्राउंड टैंक थे जो ई-610, ई-611 और ई-619। इनमें से हर टैंक की कैपेसिटी 68 हजार लीटर लिक्विड एमआईसी की थी। लेकिन इनको केवल 50 फीसद तक ही भरा जाता था।

2-3 दिसंबर की रात करीब ऐसे हुआ था भोपाल गैस कांडआधा दर्जन कर्मचारी कंपनी के अंदर मौजूद एक अंडरग्राउंड टैंक 610 के पास एक पाइपलाइन की सफाई करने जा रहे थे। इसी दौरान टैक का तापमान जो पांच डिग्री सेल्सियस होना चाहिए था 200 डिग्री तक पहुंच गया था। टैंक का तापमान अचानक बढ़ने की वजह एक फ्रीजर प्‍लांट का बंद करना था जिसे बिजली का बिल कम करने की वजह से बंद किया गया था। टैंक का तापमान बढ़ने पर गैस पाइपों में पहुंचने लगी। रही सही कसर उन वॉल्‍व ने पूरी कर दी थी जो ठीक से बंद तक नहीं थे। गैस इनके रास्‍ते लीक हो रही थी। इन कर्मचारियों ने इस वॉल्‍व को बंद करने की कोशिश की लेकिन तापमान बढ़ने की वजह से खतरे का सायरन बज गया। और गैस रिसाव होने लगा जिसका शिकार लोग होने लगे।

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यूनियन कार्बाइड कारखाने की जहरीली गैस से ही मौतों के मामलों और बरती गई लापरवाहियों के लिए फैक्ट्री के संचालक वॉरेन एंडरसन को मुख्य आरोपी बनाया गया था। हादसे के तुरंत बाद ही वह भारत से रातों रात गायब हो गया। सालों तक उसको भारत लाने की कोशिशें होती रहीं लेकिन नाकामी ही हाथ लगी। 29 सितंबर 2014 को उसकी मौत हो गई। इस हादसे ने कई जिंदगियां बर्बाद कर दी और कई घर तबाह कर दिए। सरकार ने पीड़ितों को मरहम के रुप में मुआवजा दिया जो इस जख्म का मरहम कतई न रहा। आज भी इस घटना के बारे में सुनकर दिल दहल जाता है। जिसने उसे झेला होगा उनपर क्या गुजरी होगी। इसका बस अहसास ही कर सकते हैं।

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