Bibek Debroy Article Row: नए संविधान पर मचा घमासान, लालू ने प्रधानमंत्री पर साधा निशाना, तो मायावती भी चुप नहीं रही

Bibek Debroy PM Modi Economic Advisor: लेख में बिबेक देबरॉय ने कहा, “हम जो भी बहस करते हैं, वो अधिकतर संविधान से शुरू और खत्म होती है। महज कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा। हमें ड्राइंग बोर्ड पर वापस जाना चाहिए और शुरू से शुरुआत करना चाहिए। ये पूछना चाहिए कि संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, स्वतंत्रता और समानता जैसे शब्दों का अब क्या मतलब है। हमें खुद को एक नया संविधान देना होगा।”

Update:2023-08-18 16:31 IST
Bibek Debroy Article Row (Photo: Social Media)

Bibek Debroy PM Modi Economi Advisor:अभी समान नागरिक संहिता को लेकर केंद्र सरकार विरोधियों के निशान पर थी ही कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएएसी-पीएम) के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय के लेख में नए संविधान की वकालत ने विरोधियों को एक नया मुद्दा दे दिया है। लेख पर घमासान मच गया है। बसपा सुप्रीमो मायावती, आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रयास यादव, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी सहित कई नेताओं ने लेख को लेकर सरकार और पीएम मोदी पर हमला बोलते हुए कड़ी प्रतिक्रिया दी है। यह लेख देबरॉय ने एक अखबार में लिखा था जिसमें नए संविधान की मांग की गई है।
वहीं जब लेख पर विवाद बढ़ा तो प्रधानमंत्री पैनल से सफाई पेश करते हुए खुद को और केंद्र सरकार को इससे अलग कर लिया।

ईएएसी-पीएम ने दिया स्पष्टीकरण-

वहीं ईएएसी-पीएम ने सोशल मीडिया पर स्पष्टीकरण देते हुए गुरुवार को लिखा, “डॉ बिबेक देबरॉय का हालिया लेख उनकी व्यक्तिगत राय थी, वो किसी भी तरह से ईएएसी-पीएम या भारत सरकार के विचारों को नहीं दर्शाता।” ईएएसी-पीएम भारत सरकार, खासकर प्रधानमंत्री को आर्थिक मुद्दों पर सलाह देने के लिए गठित की गई बॉडी है।

लेख में ऐसा क्या लिखा है देबरॉय ने जिस पर मचा है बवाल?-

देबरॉय ने 15 अगस्त को एक अखबार में ‘‘देयर इज ए केस फॉर वी द पीपल टू इंब्रेस अ न्यू कॉस्टिट्यूशन‘‘ शीर्षक से एक लेख लिखा था। इसमें लिखा था, “अब हमारे पास वह संविधान नहीं है जो हमें 1950 में विरासत में मिला था। इसमें संशोधन किए जाते हैं और हर बार वो बेहतरी के लिए नहीं होते, हालांकि 1973 से हमें बताया गया है कि इसकी ‘बुनियादी संरचना‘ को बदला नहीं जा सकता है। भले ही संसद के माध्यम से लोकतंत्र कुछ भी चाहता हो। जहाँ तक मैं इसे समझता हूं, 1973 का निर्णय मौजूदा संविधान में संशोधन पर लागू होता है, अगर नया संविधान होगा तो ये नियम उस पर लागू नहीं होगा।”

महज 17 साल होता है लिखित संविधान का जीवनकाल-

देबरॉय ने एक स्टडी का हवाला देते हुए बताया कि लिखित संविधान का जीवनकाल केवल 17 साल होता है। भारत के वर्तमान संविधान को औपनिवेशिक विरासत बताते हुए उन्होंने लिखा, “हमारा वर्तमान संविधान काफी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है। इसका मतलब है कि यह एक औपनिवेशिक विरासत है।”

हमें खुद को एक नया संविधान देना होगा-

लेख में उन्होंने कहा, “हम जो भी बहस करते हैं, वो अधिकतर संविधान से शुरू और खत्म होती है। महज कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा। हमें ड्राइंग बोर्ड पर वापस जाना चाहिए और शुरू से शुरुआत करना चाहिए। ये पूछना चाहिए कि संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, स्वतंत्रता और समानता जैसे शब्दों का अब क्या मतलब है। हमें खुद को एक नया संविधान देना होगा।”

विवाद बढ़ा तो देबराॅय बैकफूट पर आ गए। गुरुवार को एक समाचार एजेंसी से बात करते हुए उन्होंने कहा, “पहली बात तो यह है कि जब भी कोई कॉलम लिखता है तो हर कॉलम में यह नोट जरूर होता है कि यह कॉलम लेखक के निजी विचारों को दर्शाता है। यह उस संगठन के विचारों को नहीं दर्शाता है, जिससे व्यक्ति जुड़ा हुआ है।‘‘ ‘‘दुर्भाग्य से इस मामले में मेरे विचारों को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद से जोड़ा जा रहा है। जब भी प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद इस तरह के विचार लेकर आएगी तो वह उन्हें ईएसी-पीएम वेबसाइट पर या अपने सोशल मीडिया हैंडल से सार्वजनिक करेगी। इस मामले में ऐसा तो कुछ हुआ नहीं है।”
उन्होंने यह भी कहा कि यह पहली बार नहीं है, जब उन्होंने इस तरह के मुद्दे पर लिखा है। वे कहते हैं, “मैंने पहले भी ऐसे मुद्दे पर इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए लिखा है।”

हमें संविधान पर दोबारा विचार करना चाहिए-

उन्होंने कहा कि मामला बहुत आसान है। मुझे लगता है कि हमें संविधान पर दोबारा विचार करना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि यह विवादास्पद है क्योंकि समय-समय पर दुनिया का हर देश संविधान पर पुनर्विचार करता है। हमने ऐसा संशोधन के जरिए किया है।

“भारतीय संविधान के कामकाज को देखने के लिए एक आयोग की स्थापना की गई थी। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर भी संविधान सभा के सामने कई बार और दो सितंबर, 1953 को राज्यसभा में दिए गए बयान में बहुत स्पष्ट थे कि संविधान पर दोबारा विचार करना चाहिए। अब ये एक बौद्धिक परामर्श का मुद्दा है। मैंने वो नहीं कहा है जैसा कुछ लोग कहते हैं कि संविधान बकवास है। किसी भी सूरत में ये मेरे विचार हैं न कि आर्थिक सलाहकार परिषद या सरकार के।

लालू ने साधा निशाना, बोले-क्या ये सब पीएम के मर्जी से हो रहा है-

देबरॉय के लेख पर कई नेता और सासंद प्रतिक्रिया दे रहे हैं। आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने भी इस लेख पर कहा है कि क्या ये सब कुछ पीएम के मर्जी से हो रहा है।
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (ट्विटर) पर लिखा, “प्रधानमंत्री मोदी का कोई आर्थिक सलाहकार है बिबेक देबरॉय। वह बाबा साहेब के संविधान की जगह नया संविधान बनाने की वकालत कर रहा है। क्या प्रधानमंत्री की मर्जी से यह सब कहा और लिखा जा रहा है?

हकीकत में वह हिंदू राष्ट्र की वकालत करते हैं-

वहीं सीपीएम के सांसद जॉन ब्रिटास ने भी लेख पर आपत्ति जताते हुए लिखा है, “बिबेक देबरॉय नया संविधान चाहते हैं, उनकी मुख्य समस्या संविधान के बुनियादी ढांचे में दर्ज समाजवादी, सेक्युलर, लोकतांत्रिक जैसे शब्दों से हैं। हकीकत में वह हिंदू राष्ट्र की वकालत करते हैं। अगर उन्होंने निजी हैसियत से लिखा है तो अपना पद लेख के साथ क्यों लिखा?”

बीते दिनों केंद्र सरकार ने एनसीईआरटी के लिए एक हाई पावर्ड कमेटी बनाई और इसमें बिबेक देबरॉय को सदस्य बनाया।
शिव सेना (उद्धव ठाकरे) की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा है, “वो एक नया संविधान चाहते हैं जो उनके फायदे के लिए काम करे। वो एक नया विचार चाहते हैं ताकि इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाए। उन्हें नए स्वतंत्रता सेनानी चाहिए क्योंकि अभी उनके पास कोई नहीं है। वो भारत में नफरत का एक नया आइडिया चाहते हैं। वो एक नया अनैतिक लोकतंत्र चाहते हैं। मिलिए भारत के नए बौद्धिक लोगों से।”

जब मंत्री ने कहा था-हम संविधान बदल देंगे-

2017 में तत्कालीन केंद्रीय राज्य मंत्री अनंत हेगड़े ने भी संविधान बदलने को लेकर बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि बीजेपी ‘‘संविधान बदलने‘‘ के लिए सत्ता में आई है और ‘‘निकट भविष्य‘‘ में ऐसा किया जाएगा। कर्नाटक के कोप्पल में ब्राह्मण युवा परिषद के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए हेगड़े ने ‘‘धर्मनिरपेक्षतावादियों‘‘ पर भी निशाना साधा था। उन्होंने कहा था, “अब धर्मनिरपेक्ष बनने का एक नया चलन आ गया है। अगर कोई कहता है कि मैं मुस्लिम हूं, या मैं ईसाई हूं, या मैं लिंगायत हूं, या मैं हिंदू हूं, तो मुझे बहुत खुशी होती है क्योंकि वह अपनी जड़ों को जानता है, लेकिन ये जो लोग खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं, मुझे नहीं पता कि इन्हें क्या कहूं।” “वे उन लोगों की तरह हैं जिनके माता-पिता नहीं हैं या जो अपना वंश नहीं जानते। वे खुद को नहीं जानते। वे अपने माता-पिता को नहीं जानते, लेकिन वे खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं। अगर कोई कहता है कि मैं धर्मनिरपेक्ष हूं तो मुझे संदेह हो जाता है।”

अनंत कुमार हेगड़े केंद्र सरकार में स्किल डिवेलपमेंट राज्य मंत्री थे और मंत्री रहते हुए उन्होंने कहा था, “कुछ लोग कहते हैं कि संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द का उल्लेख है, तो आपको सहमत होना होगा क्योंकि यह संविधान में है, हम इसका सम्मान करते हैं लेकिन निकट भविष्य में यह बदल जाएगा. संविधान में पहले भी कई बार बदलाव किया गया है. हम यहां संविधान बदलने आए हैं। हम इसे बदल देंगे।”

देबरॉय के लेख ने बैठे बिठाए विरोधियों को एक मुद्दा दे दिया है। अब विरोधी इस को लेकर पीएम मोदी और केंद्र सरकार पर हमलावर हो गए हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष इस इसे मुद्दा भी बना सकता है।

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