नीतीश बनाएंगे रिकार्ड: सत्ता में सबसे आगे सुशासन बाबू, सजने जा रहा ताज
बिहार के मुख्यमंत्रियों में नीतीश कुमार पहले हैं जो सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने को तैयार हैं। अब तक वह छह बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। चार बार मुख्यमंत्री पद की शपथ तो उन्होंनेएनडीए के कंधे पर सवार होकर ली है।
अखिलेश तिवारी
पटना। बिहार के सुशासन बाबू ने एनडीए के साथ लोकप्रियता का जो ग्राफ छुआ वह राजद से नजदीकियां बढऩे के साथ ही लगातार गिरता गया। दस साल में लगातर जनाधार खोते रहे सुशासन बाबू को एक बार फिर एनडीए ने ही संभाला है जो आधी से भी कम सीट होने के बावजूद उनकी ताजपोशी करने के लिए तैयार है। नीतीश कुमार दीपावली के बाद एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के लिए तैयार हैं। इस बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही वह सातवीं बार मुख्यमंत्री बनने वाले देश के पहले नेता बन जाएंगे।
लालू-राबड़ी राज के घनघोर कुशासन के बाद नीतीश कुमार
लालू-राबड़ी राज के घनघोर कुशासन के बाद नीतीश कुमार ने जब बिहार की सत्ता संभाली तो जल्द ही उन्हें सुशासन बाबू का तमगा मिल गया। अपराध मुक्त समाज व विकास की आकांक्षा से लबरेज बिहार के मतदाताओं ने संभावनाओं को टटोलते हुए उन्हें सिर-माथे पर बिठाया। उन्हें 115 सीटों का जादुई आंकड़े पर भी पहुंचाया लेकिन 2015 में एनडीए से अलग होने के बाद सुशासन बाबू नीतीश कुमार अपनी लोकप्रियता की रेलगाड़ी को पटरी पर बनाए रखने में कामयाब नहीं रहे। यही वजह है कि पिछले दस साल के दौरान उन्हें राजद के तेजस्वी से लेकर जीतन मांझी तक बार -बार समझौता करना पड़ा है।
2010 में लोकप्रियता के शीर्ष पर दिखे नीतीश कुमार
बिहार के मुख्यमंत्रियों में नीतीश कुमार पहले हैं जो सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने को तैयार हैं। अब तक वह छह बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। चार बार मुख्यमंत्री पद की शपथ तो उन्होंनेएनडीए के कंधे पर सवार होकर ली है। कहा यह भी जाता है कि बिहार में सुशासन बाबू भी एनडीए की ही देन हैं। उनकी राजनीति के तौर -तरीकों को सबसे पहले भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना समर्थन दिया। इसके बाद ही वह बिहार की राजनीति में स्थापित हो पाए। राजनीति में शुचिता व स्वच्छ छवि के बड़े समर्थक रहे अटल- आडवाणी-जोशी ने कम सीटों का समर्थन होने के बावजूद उन्हें अपना साथी बनाया और भाजपा विधायकों की बड़ी संख्या पर तरजीह देकर उन्हें मुख्यमंत्री का ओहदा सौंप दिया।
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एनडीए ने उन्हें बिहार में अपना नेता चुना
लालू-राबड़ी राज से तंग आ चुकी बिहार की जनता ने जब बदलाव का मंत्र फूंका तो वर्ष 2000 में 34 विधायकों को जिता कर लाने की वजह से एनडीए ने उन्हें अपना नेता चुना और उन्होंने तीन मार्च 2000 को पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। बहुमत नहीं मिलने पर उन्होंने दस मार्च को त्यागपत्र दे दिया। 2005 में 88 विधायक और 2010 में 115 विधायकों को जिताकर लाने वाले नीतीश ने भाजपा के सहयोग से सरकार बनाई। लालू-राबड़ी विरोध के प्रतीक बन चुके नीतीश ने 2015 में उनके बेटे तेजस्वी से हाथ मिला लिया और अलोकप्रियता की ट्रेन पर सवार होकर 71 विधायकों के दम पर सरकार बनाने में कामयाब रहे।
तेजस्वी के साथ नाता तोड़ एनडीए का दामन थाम लिया
जुलाई 2017 में उन्होंने तेजस्वी के साथ नाता तोडक़र दोबारा एनडीए का दामन थाम लिया लेकिन अलोकप्रियता की जिस डगर पर वह चल पड़े थे उसका खामियाजा चुनाव में भुगतना पड़ा। अंतिम पारी का ऐलान करने के बावजूद वह 2020 में 43 सीट ही जीतने में कामयाब रहे। अपना वादा पूरा करने के इरादे से भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपने के लिए तैयार है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सुशासन बाबू क्या अपनी खोई लोकप्रियता की एक्सप्रेस ट्रेन पर दोबारा सवार हो पाएंगे या उन्हें अगले जंक्शन से नई गाड़ी बदलनी होगी।
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नीतीश कुमार को विधानसभा में मिली जीत
2000: 34 विधायक
2005: 88 विधायक
2010: 115 विधायक
2015: 71 विधायक
2020: 43 विधायक
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